तो भारत में इसलिए कम नहीं हो रही पेट्रोल की कीमत!

आम लोगों के मन में ये सवाल तैर रहा है कि जब पेट्रोल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में इतनी कमी आई है तो भारत में यह इतना महंगा क्यों मिल रहा है. लगभग दो साल पहले इस विषय पर कुछ लिखा था, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है. हो ये रहा है कि पेट्रोल के अंतर्राष्ट्रीय दाम तो लगभग आधे हो गए, तब भी भारत में पेट्रोल-डीज़ल की कीमत लगभग उतनी ही है. बड़ी मुश्किल से थोड़ी कम हुई थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में जरा सा भाव में उछाल आते ही तेल के दाम वापस अपनी जगह पर पहुँच गए.

मैं अपनी समझ से इसका जवाब देने की कोशिश करता हूँ. ये तो हम जानते ही हैं कि तेल के ऊपर हर तरह का टैक्स है, कस्टम ड्यूटी है, एक्साइज़ है, सेल्स टैक्स है, वैट है, और इन टैक्सों की दरें भी सबसे ज्यादा हैं. अगर 70 का तेल है तो मान कर चलिये कि लगभग आधा हिस्सा सरकारी टैक्सों का है और ये टैक्स केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के पास पहुंचता है.

यूपीए सरकार के समय में जब तेल के दामों में बढ़ोतरी हो रही थी, तब भारत में भी दाम लगातार बढ़ाए जा रहे थे, लेकिन सिर्फ अंतरराष्ट्रीय कीमतों में जो वृद्धि हो रही थी, वही नहीं बल्कि साथ में लगने वाला टैक्स भी बढ़ता जा रहा था. यदि सरकार को पहले, टैक्सों से मान लीजिये 10,000 करोड़ मिल रहे थे, और नए दाम में 2 रुपए की और वृद्धि हुई तो इसके साथ टैक्स भी 50 पैसे और बढ़ा दिया. इस तरह सरकार को 10,000 करोड़ की जगह 10,500 करोड़ मिलने लगे. इस तरह सरकार हमारी जेब खाली करके अपना खजाना और भरती जा रही थी.

फिर समय बदला, मोदी सरकार आयी, तेल के दाम लगातार नीचे आने लगे, भारत में भी पेट्रोल के दाम कम करने का दबाव बनने लगा, लेकिन दाम आधे नहीं हुए, थोड़े-थोड़े नीचे आने शुरू हुए, जैसे बहुत मजबूरी में फैसला लिया गया हो.

इसका कारण वही टैक्स से होने वाली आय था. यदि दाम में 10 रुपए की कमी की जाती तो सरकार को मिलने वाला टैक्स 9000 करोड़ रह जाता. उसने इन टैक्स से जो योजनाएं, खर्चे बना रखे थे, फिर वो पूरे कैसे होते. इसलिए सरकार दाम गिराने में परहेज करती रही.

यदि आपको याद हो तो बीच-बीच में सरकार एक-एक दो-दो रुपए टैक्स का बढ़ाती रही है. दिल्ली में जब दाम करीब 63 हुए तो एक बार फिर एक रुपया उसे टैक्स के नाम पर बढ़ा दिया और 64 कर दिया.

फिर जब 60 रुपए दाम किया गया तो आगे उसे कम करने की जगह उस कमी को जनता को फायदा पहुंचाने की जगह टैक्स में बदल दिया गया कि जो दाम कम करना था वो सरकार टैक्स के रूप में वापस वसूल लेगी.

तो ये गाथा है पेट्रोल की. सरकार मजबूर है उसे अपनी जनकल्याणकारी योजनाएं चलानी हैं. तमाम खर्चे उसके सर पर हैं. यदि तेल की कीमत चौथाई भी रह जाती है तब भी हमें चौथाई कीमत पर तेल नहीं मिल सकता. सरकार के साथ इतना सहयोग तो हमें करना ही होगा.

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