इतने सारे बाबा ढोंगी निकलने पर भी क्या कोई असर पड़ा भारत में भक्तों के पर. हर कोई यही कहते हुए मिलता है; मेरे बाबा अलग हैं वह इनके तरह नहीं हैं. मेरे बाबा के मुख पर तो बड़ा तेज है.
वैसे तो मानव इतिहास धार्मिक संतों, बाबाओं, स्वामियों से भरा पड़ा है. गौतम बुद्ध, महावीर, गुरुनानक, जीसस क्राइस्ट, मुहम्मद पैगम्बर, इत्यादि महान संतों में गिना जाता है. क्योंकि उन्होंने उस समय की मौजूद परिस्थितिओं के खिलाफ बोला था और मानव जाति को एक नया रास्ता व दिशा दिखाई थी. उदहारण के तौर पर गुरु नानकजी ने जब देखा कि ब्राह्मण पंडित गंगा का पानी पूर्व दिशा में छिड़क रहे हैं तो वह पश्चिम दिशा में पानी छिड़कने लगे, इस पर पंडित हंसने लगे, तो गुरुनानकजी बोले कि आप लोग पूर्व में क्यों फ़ेंक रहे हो वह बोले की पूर्व में हमारे पूर्वज हैं इस पर गुरुनानक जी बोले की इसका क्या प्रमाण है कि वह पूर्व में हैं और यह पानी उन तक पहुँच रहा है, और अगर यह पानी वहां तक पहुँच सकता है तो मेरे खेत तो इस धरती पर पश्चिम में हैं, यह पानी कम से कम मेरे खेतों को सींचेगा. इसी तरह का तर्क व समाज की मान्यताओं के खिलाफ मोहम्मद व जीसस बोले थे.
परन्तु, आजकल के संत तथा बाबा, मौलाना या पादरी पुरानी परम्पराओं को सिर्फ कॉपी पेस्ट ही कर रहे हैं. किसी ने भी कोई नयी दिशा देने की कोशिश नहीं की है. वह तो सिर्फ भक्तों को रूढ़िवादी बना रहे हैं. किस तरह से नमाज़ पढ़नी चाहिए, किस तरह से पूजा या आरती करनी है, किस तेल का दिया जलाना है, शिवजी ने क्या कहा था कि जीसस ने क्या बोला था वही राग अलापते रहते हैं.
आज क्या मानव जाति के आगे नयी समस्याएं नहीं हैं जिनका हमें मानसिक व शारीरिक व आध्यात्मिक तौर पर सामना करना पड़ रहा है. ऐसा कहा जाता है कि; Where Science ends, Phylosophy begins अर्थात जहाँ विज्ञान का अंत होता है वहां से दर्शन शुरू होता है. परन्तु आज 21वीं शताब्दी में विज्ञान का दायरा बड़ा हो गया है. क्या यह ज़रूरी नहीं कि अब हम इस बदले हुए समाज और बदले हुए वातावरण में ईश्वर को समझने की कोशिश करें.
जबकि हम यह मानते हैं कि यहाँ पर एक पत्ता भी ईश्वर या अल्लाह या गॉड की मर्ज़ी के बगैर नहीं हिलता तो अब तक जो हुआ है वह उनकी मर्ज़ी से ही हुआ है. यह जो करोड़ों वर्षों की यात्रा मानव जाति ने की है जिसमें विज्ञान की खोजें, यह टेक्नॉलजिकल डेवलपमेंट सब उसकी ही मर्ज़ी से हुआ है. तो फिर यह सोचने की ज़रुरत नहीं है कि उसका अंडरलाइंग मैसेज, उद्देश्य क्या है. ईश्वर मानव जाति से क्या अपेक्षा रखता है.
यह अजीब नहीं लगता कि आज हम यह बोलें कि उसकी अपेक्षाएं मानव जाति से इतनी छोटी है कि हम कैसे नमाज़ पढ़ें, कैसे पूजा करें. क्या परमशक्ति जिसने यह सारी विशाल सृष्टि बनायी उसकी सोच इतनी छोटी हो सकती है?