जेएनयू छात्र संघ के चुनाव नतीजे जिसमें केवल शीर्ष पद अध्यक्ष के अलावा… जहां वामपंथी ‘यूनाईटेड’ लेफ्ट को एबीवीपी से 464 मतों के अंतर की कड़ी चुनौती मिली… बाकी सारे पदों पर ‘यूनाइटेड’ लेफ्ट… बापसा (बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन) से लड़ता मिला. बापसा दलित, आदिवासी, ओबीसी छात्रों का संगठन है जो पिछले जेनएयू छात्र संघ चुनाव में उभरा.
यहां से कुछ बातें निकलती हैं :
– अब अपनी वैचारिक पहचान की एक मात्र बची चुनावी राजनीतिक नर्सरी में अस्तित्व की लड़ाई के लिए खुद में ‘यूनाइट’ उर्फ महागठबन्धन कर ‘यूनाइटेड लेफ्ट’ के नाम से लड़ना पड़ रहा है, तो आप इसे विपक्ष की विचारधारा के खिलाफ अपनी चुनावी राजनीति की जीत कैसे कह सकते हैं?
यह तो खुद के एकीकरण के संघर्ष में आपकी जीत कही जाएगी न!
– ‘आप लड़े किससे हैं’? बापसा से न? सिर्फ शीर्ष अध्यक्ष को छोड़ सभी पदों पर?
क्या इसका अर्थ यह हुआ कि आपके वैचारिक राजनीति की लड़ाई उर्फ क्रांति उर्फ संघर्ष… दलित, आदिवासी, ओबीसी के खिलाफ है अब?
ऐसे तो केवल शीर्ष अध्यक्ष पर तथाकथित मनुवाद से मिलते संघर्ष को छोड़ कर बाकी सभी जगह वामपंथी ‘यूनाइटेड लेफ्ट’… सर्वहारा दलित, आदिवासी, ओबीसी छात्र संगठन बापसा से लड़ता दिख रहा है.
यानी तथाकथित मनुवाद के साथ दलित, आदिवासी, ओबीसी के संघर्ष, वैमनस्य का अंत हुआ, या वह कभी था ही नहीं! : क्योंकि यहां वह तबका तो एकीकृत वाम से लड़ रहा है!
कामरेडी क्रांति अब सर्वहारा के खिलाफ… के ऐतिहासिक दूसरे साल को… एक कैंपस भर की चुनावी ज़मीन पर… अगर कोई जीत कह सके वामपंथी एका की, तो इससे बड़ी अस्तित्व की गरीबी और गलत पोजिशनिंग नहीं.
पिछले चुनावों के दौरान भी लिखा था : बधाई हो कामरेड!
जेनयू में तेज़ चलती मुखालफत की आंधी में… पेंग्विनों की तरह एक-दूसरे के संग लिपट-चिपट के अस्तित्व रक्षा की जुगत करते हुए… सारे वाम फेडरेशनों ने गिरोह की शक्ल में एक होकर… चुनावों में आखिर हराया किसे है?
महज़ एक कैम्पस भर बिसात वाले वामपंथ ने आखिर जेनयू में हराया किसको?