कद्दू कटेगा तो सबमे बंटेगा

कद्दू की खेती अंटार्कटिका महाद्वीप को छोड़कर सभी जगह की जाती है. कद्दू का इतिहास बहुत पुराना है. इसके सबसे पुराने बीज ७,००० से ५,००० ईसा पूर्व के हैं. इसका इस्तेमाल मीठे व्यंजन बनाने में किया जाता है. आगरा की प्रसिद्ध मिठाई ‘पेठा’ भी इसी की प्रजाति की सब्जी से बनाई जाती है.

अमेरिका, मेक्सिको, चीन और भारत इसके सबसे बड़े कद्दू उत्पादक देश हैं. इसके साथ ही यह विश्व के अनेक देशों की संस्कृति के साथ जुड़ा है. भारत में विवाह जैसे मांगलिक अवसरों पर कद्दू की सब्जी और हलवा आदि बनाना-खाना शुभ माना जाता है. उपवास के दिनों में फलाहार के रूप में भी इससे बने विशेष पकवानों का सेवन किया जाता है.

कद्दू को काफीफल, कद्दू, रामकोहला, तथा संस्कृत में कुष्मांड, पुष्पफल, वृहत फल, वल्लीफल कहते हैं. इसका लेटिन नाम ‘बेनिनकासा हिष्पिड़ा’ है.

स्वरूप

कुम्हड़ा या कद्दू एक स्थलीय, द्विबीजपत्री पौधा है जिसका तना लम्बा, कमजोर व हरे रंग का होता है. तने पर छोटे-छोटे रोयें होते हैं. यह अपने आकर्षों की सहायता से बढ़ता या चढ़ता है. इसकी लता (बेल) लम्बी, मोटी व चारों तरफ पृथक, प्रथम शाखा के रूप में जमीन पर फैलकर बढ़ती जाती है. इसके पत्ते बड़े, हृदयाकार तथा पुष्प नीले रंग के व एकल होते हैं. फल के रूप में प्राप्त कद्दू बड़े-बड़े गोलाकार या गोल लम्बवत् होते हैं. फल के अन्दर काफी बीज पाये जाते हैं. फल का वजन ४ से ८ किलोग्राम तक हो सकता है. सबसे बड़ी प्रजाति मैक्सिमा का वजन ३४ किलोग्राम से भी अधिक होता है. इस पौधे की आयु एक वर्ष तक होती है.

पौष्टिक तत्व

कद्दू में मुख्य रूप से बीटा केरोटीन पाया जाता है, जिससे विटामिन ए मिलता है. यह बलवर्धक है, रक्त एवं पेट साफ करता है, पित्त व वायु विकार दूर करता है और मस्तिष्क के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है. प्रयोगों में पाया गया है कि कद्दू के छिलके में भी एंटीबैक्टीरिया तत्व होता है जो संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं से रक्षा करता है. कद्दू के बीज भी आयरन, जिंक, पोटेशियम और मैग्नीशियम के अच्छे स्रोत हैं. इसमें खूब रेशा यानी की फाइबर होता है जिससे पेट हमेशा साफ रहता है.

शायद इन्हीं खूबियों के कारण कद्दू को प्राचीन काल से ही गुणों की खान माना जाता रहा है. यह खून में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने में सहायक होता है और अग्नयाशय को भी सक्रिय करता है. इसी वजह से चिकित्सक मधुमेह के रोगियों को कद्दू के सेवन की सलाह देते हैं. लोहे की कमी या एनीमिया में कद्दू लाभदायक सिद्ध होता है.

नोट- गाँवो में कद्दू का उपयोग बारिश के दिनों में नहीं करते. नवरात्रि के बाद ही इसका उपयोग किया जाता है. जिसका मुख्य कारण कद्दू को काटकर एक दो दिन रखने से वह संक्रमित हो जाता है और बीमारियों की वजह भी बन सकता है.
इसी कारण एक कहावत भी है… कद्दू कटेगा तो सबमे बंटेगा ।।

Comments

comments

LEAVE A REPLY