दुर्जनों की दुर्जनता ने उतना नुकसान नहीं किया, जितना सज्जनों की निष्क्रियता ने

स्पाइडरमैन (प्रथम) फ़िल्म में एक अद्भुत दृश्य है, फाइट जीतकर कैशियर द्वारा तय पैसे से कम देने की वजह से नाराज स्पाइडरमैन उस कैशियर को लूटने वाले चोर को देखकर कुछ नहीं करता क्योंकि वह सोचता है कि अच्छा हुआ वह (फाइट क्लब का कैशियर ) इसी योग्य था.

इस घटना से प्रसन्न वह जब नीचे सड़क पर आता है तो देखता है कि वही चोर उसके संरक्षक प्रिय चाचा को गोली मारकर भाग गया है, तब उसे उन्हीं के कहे हुए वे शब्द याद आते है कि,”ग्रेटर पावर कम्स विथ ग्रेटर रिस्पांसिबिलिटी” और आंखों में आंसू भरे स्पाइडरमैन उस चोर का पीछा करता है और उसे उसके अंजाम तक पहुंचाता है.

 

आपने अक्सर यह वाक्य सुने होंगे कि
“दुर्जनों की दुर्जनता ने उतना नुकसान नहीं किया समाज का जितना सज्जनों की निष्क्रियता ने किया है.” आखिर क्यों निष्क्रिय रहते है सज्जन? अपने हितों के मोह से? अपने प्राणों के मोह से? अशक्त एवं अभ्यासहीन होने के कारण? संस्कार, आत्मबल और नैतिक साहस की कमी के कारण?

पूरी बोगी भरी थी लोगो से लेकिन कोई आगे नहीं आया!

कई ब्राह्मण भी रहे होंगे जो दिन रात यहाँ वहां “जय परशुराम” कहकर दिशाओं को कम्पायमान कर देते होंगे, कहाँ गया उनका वह अपरिमित सामर्थ्य जब कुछ भ्रष्ट, निर्दय, दुष्ट, शक्तिशाली समुच्चयतः “क्षत्रिय” मिलकर उस एक सच्चे “क्षत्रिय ” को इतने वहशियाना तरीके से दबोच रहे थे?

कई बाहुबली शक्तिउपासक सर्वसमर्थ राजपूत भी रहे होंगे उस बोगी में जो फेसबुक पर और सामान्य जीवन में भी जरा सा अपमान अथवा “धिक्कार” दिख जाए तो साक्षात महादेव के समान रौद्र रूप धर लेते हैं. किसने उन्हें सर्पमंत्र से उच्चारित कर कीलित कर दिया था कि उनके बाहु तो क्या आंखों की पुतलियां तक हरकत ना कर पाई ऐसी अमानवीय घटना देखकर जो उस दिन राहुल के साथ उन राक्षसों द्वारा की गई?

सामाजिक न्याय के अजेय दलित योद्धा भी रहे होंगे उस बोगी में जो किरान्ति के लिए सज्ज रहे होंगे जैसे कि वे आरक्षण के विषय में ज़रा सा नकारात्मक सुनने भर से ही “भीम ” के समान क्रोध से भर उठते हैं अक्सर.

क्या हुआ उन्हें उस दिन क्या भौतिक रूप से दलित जिसे वो राक्षस थूक चटवा रहे थे उनमें उन्हें अपने दलित भाईयो के दर्शन नहीं हुए जिनके साथ कभी तथाकथित दबंगो ने ऐसी ही अमानवीयता की होंगी जिसका अंधप्रतिशोध आज तक आप लेने को सन्नद्ध दिखते हो.

भगवान परशुराम जी मेरे आदर्शो में से एक इसलिए नहीं है कि वे ब्राह्मण अस्मिता के ध्रुवस्तम्भ है बल्कि इसलिए है कि उन्होंने दुर्बल लाचार और प्रताड़ित न्यायार्थी के लिए अजेय योद्धाओं से भी भिड़ने में संकोच नहीं किया.

“दूषित क्षत्रियों” जो किसी भी प्रकार से शक्ति सम्पन्न है और उसका दुरूपयोग करते हैं सामान्यजन पर, उनका नाश करने वाले परशुराम की सदैव अपेक्षा एवं प्रतीक्षा रहेगी लेकिन स्मरण रहे कि वे किसी महेंद्र पर्वत से नहीं आएंगे, वे चिरंजीव है अन्याय के विरुद्ध आपके हृदय में निर्भयता के भाव के रूप में और जब भी आप उस शक्ति को अपने हृदय में प्रकाशित होते देखेंगे तो आपके शरीर से उठते शुद्ध क्षात्रतेज से विचलित राहुल के हत्यारों जैसे “नकली क्षत्रिय ” भागते फिरेंगे.

आप कब तक चुप रह लेंगे? कब तक सहन कर लेंगे? कभी तो असहनीय होगा ही जब कोई राहुल आपका नजदीकी होगा? इंतजार मत कीजिये ऐसे किसी भी दुर्दिन का, बाढ़ आने के पहले तालाब की पाल बांध लीजिये, इसी में सामाजिक समझदारी है.

विवेकानंद जी के वचन चरितार्थ कीजिये
“बलि हमेशा बकरों की चढ़ती है शेर की नहीं”
बकरियों की तरह काटे जाने से बेहतर है शेर की तरह प्रतिकार कीजिये, जिएंगे तो भी शान से और मारे भी गए तो बकरी की मृत्यु से तो बेहतर ही अनुभव करेंगे.

*******************
प्रधानमंत्री जी /रेलमंत्री जी /यूपी मुख्यमंत्री योगी जी / DGP रेलवे सुरक्षा एवं सम्बद्ध जन !

यह हत्या एक नागरिक की हत्या नहीं है बल्कि एक “विसलब्लोअर” की हत्या है जो भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी पूर्ण बहादुरी से लड़ा और शहीद हुआ, यह जनहानि नहीं है बल्कि आपकी निजी हानि है जो एक ऐसा योद्धा भ्रष्टाचारियों के हाथों मारा गया जो आपके भ्रष्टाचार मुक्त सिस्टम के स्वप्न को साकार करने का प्रयास कर रहा था.

” यह आपकी भ्रष्टचार के विरुद्ध संघर्ष की प्रतिबद्धता और गुडविल की हत्या है.”

यह आपकी निजी हानि है वो भी ऐसे समय में जब कोई ऐसी हिम्मत दिखाने की जुर्रत भी नहीं करता, इस हत्या ने ना केवल भारतीयों का विश्वास तोड़ा है बल्कि भ्रष्टाचार से लड़ने का उनका हौसला भी तोड़ा है, जिसकी क्षतिपूर्ति निश्चित ही अत्यंत कठिन है.

बताइये कौन करेगा अब दुष्टों के विरुद्ध प्रतिकार का पुरुषार्थ? कौन अपने जीवन को दांव पर लगाएगा जनहितार्थ? इस क्षतिपूर्ति के लिए आप सभी तत्परता के साथ न्याय सुलभ करावें और यह उदाहरण प्रस्तुत करें कि की सरकार भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने वालों के साथ खड़ी है ना कि सिस्टम के भ्रष्टाचारी सहयोगियों के साथ.

ना केवल राहुल को न्याय मिले बल्कि दोषियों को ऐसी सजा मिले कि कोई भविष्य में ऐसा कुछ दोहराने का विचार भी ना कर सके.
दोषियों पर ना केवल धारा 302 के अंतर्गत कार्यवाई की जाए बल्कि “रक्षकों द्वारा भक्षण” (killing the faith of duty) के अंतर्गत “दुर्लभतम ” मान कर उपलब्ध अधिकतम सजा सुनिश्चित करवाई जाये.

#justice_for_rahul

Comments

comments

LEAVE A REPLY