प्रधानमंत्री मोदी ने जो किया ठीक किया

उधमसिंह 13 अप्रैल 1919 को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे. इसके 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में एक बैठक में मौजूद जालियाँवाला बाग नरसंहार के जिम्मेदार अपराधी माइकल ओ डायर को ऊधम सिंह ने गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था.

उन पर मुकदमा चला. 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई. 34 साल बाद 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने इस अमर क्रांतिकारी के अवशेष (अस्थियां) भारत को सौंपे. उधम सिंह की अस्थियां सम्मान सहित उनके गांव लाई गईं जहां आज उनकी समाधि बनी हुई है.

एक अन्य अमर क्रांतिवीर थे श्यामजीकृष्ण वर्मा जिनकी मृत्यु 30 मार्च 1930 को जेनेवा के एक हॉस्पिटल में हुई थी. उनकी अस्थियां जेनेवा की सेण्ट जॉर्ज सीमेट्री में सुरक्षित रख दी गईं थी.

73 साल बाद 22 अगस्त 2003 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जेनेवा की धरती से श्यामजीकृष्ण वर्मा की अस्थियों को जेनेवा से भारत लेकर आए.

ध्यान दीजिए कि तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य के दो सबसे बड़े शत्रुओं की अस्थियों को भी 34 और 73 साल तक सम्हाल कर रखा था ब्रिटिशों ने. उन्होंने ऐसा किसी दबाव में नहीं किया था. एक अघोषित किन्तु नैतिक अंतरराष्ट्रीय आचारसंहिता होती है जिसका पालन सब करते हैं.

आज उपरोक्त दोनों प्रसंगों सहित यह उदाहरण इसलिए क्योंकि बर्मा (अब म्यांमार) में बहादुर शाह जफर की मजार पर प्रधानमंत्री मोदी के जाने के खिलाफ परम् चरम राष्ट्रवादियों को आगबबूला होते हुए, हुड़दंग करते हुए देख रहा हूं.

अतः इनको याद दिलाना जरूरी है कि बहादुरशाह ज़फ़र की बर्मा स्थित मज़ार हमारे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की इतिहास पुस्तिका का एक अत्यंत करुणाजनक अध्याय है. देश के प्रधानमंत्री का वहां जाना शत प्रतिशत प्रासंगिक भी था और आधिकारिक रूप से औचित्यपूर्ण भी.

उनकी इस यात्रा की तुलना आडवाणी की जिन्ना की मजार यात्रा से नहीं हो सकती. आडवाणी प्रधानमंत्री नहीं थे, चाहते तो ना भी जाते. लेकिन वहां जाकर जिन्ना के सेक्युलर होने का जो करेक्टर सर्टिफिकेट आडवाणी ने जारी किया था, उसके बाद देशव्यापी आक्रोश उभरना स्वाभाविक था.

प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा कुछ नहीं किया. प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक पुरुषों में से एक बहादुरशाह ज़फ़र की मजार पर जाकर श्रद्धांजलि देने की उनकी नीति और नीयत में कुछ भी गलत नहीं है.

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