आशा-अमृत : हाँ, बात कुफ़्र की, की है हमने

आशा अमृत

किसी के लिए भी यह महज संयोग होगा कि जब मानस माँ अमृता कहती है –

अम्बर की एक पाक सुराही,
बादल का एक जाम उठा कर
घूँट चांदनी पी है हमने

हमने आज यह दुनिया बेची
और एक दिन खरीद के लाए
बात कुफ़्र की की है हमने

तो उसे एक ऐसी फिल्म में गीत बना लिया जाता है जिसका नाम है कादम्बरी जिसके दो अर्थ होते हैं- शराब और कोकिला, यानी कोयल….

और इस संयोग को मैं यूं कहती हूँ जैसे किसी एक बात ने दुआ में हाथ उठाये और दूसरी बात “आमीन” कहती हुई उस पर मुहर लगाने आ जाती है.

एमी ने जब जब अम्बर की सुराही से बादल का जाम उठाया, उसे हमेशा अपने पाक़ शब्दों के साथ पाक़ एहसासों से भी भर दिया… और बहुत कम लोग होते हैं, जो अपने कायनाती रिश्तों की स्वीकार्यता और दुनियावी रवायतों की अस्वीकार्यता दोनों को पूरी तरह अपनाते हैं, और इसे आप ही कुफ्र बताकर दुनियावी रवायतों के आगे रूहानी रिश्ते की पाकीज़गी की मिसाल बन जाते हैं.

अम्बर की एक पाक सुराही,
बादल का एक जाम उठा कर
घूँट चांदनी पी है हमने

हमने आज यह दुनिया बेची
और एक दिन खरीद के लाए
बात कुफ़्र की की है हमने

सपनों का एक थान बुना था
गज एक कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी है हमने

कैसे इसका कर्ज़ चुकाएं
माँग के अपनी मौत के हाथों
यह जो ज़िन्दगी ली है हमने

और एमी की कविता के इस जाम को जब एक कोकिला आशा भोंसले अपने होठों से लगाती है तो लगता है गीत दुनियावी रवायतों के पार कायनाती दर्जा पा गया.

यह एक बहुत विरल और अद्भुत संयोजन है जो सिनेमा में बहुत कम ही घटित हुआ है कि एक उछलते कूदते झरने जैसी आवाज़ की मलिका आशा, स्याह बादलों से स्याही मांगकर लिखने वाली गंभीर कवियित्री अमृता का लिखा गीत गाये.

यूं तो आशा ने अपनी शोख़ और सदा जवान आवाज़ में बहुत से गीत गाये हैं, लेकिन आज उनके जन्मदिन पर यह आशा-अमृत, उन पाठकों को समर्पित करती हूँ जो अमृता को उस स्तर पर जाकर कर पढ़ पाते हैं जिस कायनाती स्तर पर वो शक्ति कणों की लीला की तरह शब्द-शक्ति की लीला को रचती है और ब्रह्माण्ड में हमेशा के लिए स्थान पा जाती है और आशा को उस स्तर पर सुन पाते हैं जहां जीवन अपने पूर्ण यौवन के साथ गीत में मदहोश होकर प्रकट होता है.

सपनों का एक थान बुना था
गज एक कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी है हमने…

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