लेख की शुरुआत में ही बता दूँ कि यह पोस्ट रंजक नहीं है, ज्ञानवर्धक है और जरा सी घूम घूमकर जाएगी. बहुत कुछ मिलेगा लेकिन मेरा उद्देश्य यह है कि geopolitics जैसे महत्वपूर्ण विषय में आप की रुचि जागे. अस्तित्व के लिए यह विषय महत्व का है और भारत में इसकी जानकारी नहीं के बराबर है. इस पर विस्तार लेख के अंत में होगा.
आप को अगर यह पोस्ट बोरिंग लगे तो छोड़ दीजिये, लाइक-कमेंट भी न करें लेकिन शेयर या कॉपी पेस्ट जरूर करें क्योंकि यह किसी और के काम आ सकती है. आज भारत को इस विषय में विशेषज्ञों की आवश्यकता है और ये बनते बहुत कम हैं. आप का एक मुफ्त में कॉपी पेस्ट इस महती कार्य में बड़ा योगदान दे सकता है. इसे एक बीज समझिए जो चलती ट्रेन में फल खाने के बाद खिड़की से बाहर फेंक दिया हो. अब मुख्य बात पर आते हैं.
जिस शत्रु से सीधी लड़ाई नहीं कर सकते उस शत्रु को परेशान करते रहने के लिए अक्सर प्यादे खोजे या बनाए जाते हैं. ऐसे लड़ाइयों को प्रॉक्सी (proxy) वॉर कहते हैं. ऐसी लड़ाइयों में ऐसे देशों को भी परेशान किया जाता है जो शत्रु के मित्र हैं या जहां से आप के शत्रु को आर्थिक और व्यापारिक लाभ मिलते हैं.
भारत एक बड़ा मार्केट है सब के लिए, इसलिए हमें सब से अधिक परेशानी झेलनी पड़ती है. दुनिया भर की कंपनियाँ यहाँ कमा रही हैं. उदाहरण के तौर पर यह समझ लें चीन की जापान से शत्रुता, वो भारत के वामियों द्वारा भारत में कार्यरत जापानी कंपनियों में हड़ताल करा के निभाता है. साथ साथ इससे भारत को भी नुकसान होता है यह एक बोनस है चीन के लिए.
युद्ध का सब से बड़ा पहलू आर्थिक होता है. याने आर्थिक क्षति सहने की क्षमता. युद्ध हर दिन सामरिक क्षति करता है उसकी आपूर्ति करनी पड़ती है. आगे बढ़ती सेना को रसद भी पहुंचाना होता है, अंतर के साथ उसकी कीमत बढ़ती जाती है. आक्रमण है, तो जाहिर है कि आप को वहाँ पैसे दे कर सब कुछ मिलेगा.
जब ज़मीन जीतने के लिए आप ही सब कुछ तबाह कर रहे हैं तो आप के लिए क्या मिलेगा. और यह भी हो सकता है कि ‘पीछे हट’ करता हुआ शत्रु आप के लिए कुछ छोड़ नहीं रहा ताकि आप की आती रसद पर हमले करके आप की सेना को भूखा मारे.
बहुत महंगा पड़ती है ऐसी सप्लाई और उसका ऑप्शन भी नहीं होता. इसीलिए अपने Art Of War में Sun Tzu दूसरे ही चैप्टर में इसके बारे में सचेत करते हैं कि आप कहाँ तक आगे बढ़ सकते हैं, आक्रमण के पहले ही तय कर लेना अच्छा होगा.
वैसे ये प्रॉक्सी हर समय किसी देश के भीतरघाती ही हों, यह ज़रूरी नहीं. उस देश के पड़ोसी देशों को भी प्रॉक्सी बनाया जाता है. भारत का पड़ोसी वाकई प्रॉक्सीस्तान ही है, पाकिस्तान बस दिखावे का नाम है. भारत द्वेष से निर्माण देश बनाने वाले लोगों से पहले से तय कर लिया कि भारत को निर्बल रखना कौन चाहता है उसके प्रॉक्सी बन जाएँ. इसलिए पहले अमेरिका की रखैल बन गए.
फिर भारत अमेरिका संबंध सुधर गए और अमेरिका को भारत से कमाई होने लगी तो उसके लिए पाकिस्तान के भारत में उपद्रव हानिकारक थे. हमें यह समझ लेना चाहिए कि अमेरिका भले ही अपना नाम US of A लिखती है, असल में वो US Inc है. अपने देश के कंपनियों के हितों के लिए वो प्रतिबद्ध है – War is a racket पढ़ लीजिये, नेट पर मुफ्त है और मेजर जनरल बटलर की लिखी है. वीरता के कई मेडल प्राप्त हैं उन्हें और वे मरीन्स के मेजर जनरल रहे हैं.
तो जब अमेरिका भारत से कमाने लगा तब पाकिस्तान पर अंकुश लगाना जरूरी हो गया. लेकिन अमेरिका पाकिस्तान को छोड़ भी नहीं सकता था क्योंकि पाकिस्तान की भौगोलिक और सामरिक स्थिति बहुत ही महत्व की हैं. नक़्शे में उसकी सीमाएं देखिये, और बाजू के देशों के क्या प्राकृतिक संसाधन पाये जाते हैं ये खोजिए, आजकल गूगल की बहुत मदद होती है इसमें.
पाकिस्तान को अच्छे से समझ थी अपने महत्व की. जानते हैं अमेरिका उन्हें छोड़ नहीं सकता, बस दबाव बनाएगा समय समय पर. रखैल ने नया सेठ खोज लिया, चीन. साथ साथ चीन की मदद से परमाणु बम भी बना लिया. अब उसे सब को ब्लैकमेल करने का साधन भी मिल गया.
हिंदुस्तान को उड़ा देने की धमकियों का अमेरिका पर भी असर होता है, उसके लिए ही ये धमकियाँ दी जाती हैं. और इसके लिए ही अमेरिका उन्हें जब टाइट करती है तो उसके भी पैसे देती है ताकि ये पैसों से टाइट हुए लोग सरफिरों के हाथों में बम न जाने दें.
प्रॉक्सी हमेशा कोई रिमोट से चलने वाला खिलौना नहीं होता. मनुष्य हैं और बुद्धि भी रखते हैं और हमेशा यह स्थिति लाने की कोशिश करेंगे कि वे हमेशा फील्डिंग ही न करें, उन्हें भी बैटिंग का मौका मिले. ऐसी परिस्थिति के लिए इंग्लिश कहावत है – tail wags the dog – दुम कुत्ते को हिलाती है.
पाकिस्तान अमेरिका के लिए ऐसी ही दुम बना है और अब चीन के लिए भी ऐसी ही दुम बनने की जुगत सोच ही रहा होगा जिसका एक कारण पाकिस्तान मुस्लिम देश होने में भी है. Geopolitics में संस्कृति का अध्ययन मायने रखता है क्योंकि देश में समाज रहता है और समाज की एक संस्कृति होती है. धर्म होता है. वामी यह समझते हैं इसलिए संस्कृति को हीन, हेय ठहरा कर उसे विनष्ट कर देना चाहते हैं यह भी समझ गए ही होंगे आप अब तक?
वैसे अमेरिका के लिए और एक दुम है इज़रायल, लेकिन उस पर फिर कभी, इस लेख का वो विषय नहीं.
चीन को हिलाने वाली दो दुम हैं, आज एक्टिव है उत्तर कोरिया. चीन पर पूरा पूरा निर्भर है लेकिन आज हायड्रोजन बम भी बना चुका है. और चीन का बड़ा इंडस्ट्रियल ज़ोन उसी सीमा से सटकर बना है. उत्तर कोरिया का सत्ताधारी सरफिरा भी है और शक्की भी. उसकी हत्या की कोशिशें कम नहीं हुई हैं लेकिन वो जानता है कि यह होगा इसलिए क्रूरता से सावधानी बरतता है. आज वो अमेरिका से नहीं डरता और जिस पर निर्भर है उस चीन को भी आँख दिखा रहा है.
चीन की दूसरी दुम है वियतनाम. रशिया जब अमेरिका वियतनाम युद्ध से बाहर निकला तब चीन ने खाली जगह भर दी. फिर एक बार वियतनाम और चीन के बीच ही ठनी, तब चीन ने वहाँ सेना भेज दी. कहा कि उद्दंड बच्चों को पिटाई की जरूरत होती. लेकिन सच ये है कि बच्चे से बहुत बुरी तरह से मार खाई चीन ने. Sino Vietnam War गूगल कर देखिये, पता चलेगा कि अपने यहाँ के कॉमरेड Shar Pei और कॉमरेड Kunming इस पर कभी क्यों नहीं बोलते. Shar Pei और Kunming भी देख लीजिये क्या होते हैं.
चलिये घूम लिए, उम्मीद है आप को भी इस विषय में कुछ रस जगा हो. अब बात करते हैं भारत में इस विषय के अध्ययन की. बहुत कम जगह होता है और लोगों को पता ही नहीं होता इसके लिए स्कोप क्या है. अमेरिका में हर नामचीन यूनिवर्सिटी में इसके ‘स्कूल’ मिलेंगे. वहाँ PhD के लिए ऐसे भी theses आते हैं जिसमें अध्ययन का विषय ‘किसी देश में क्रांति करवानी हो तो कैसे होगी’ यह बताना होता है.
लोग वहाँ से पढ़कर CIA, Pentagon, Defence में जाते हैं, सरकार की एम्बसीज़ में जाते हैं, मल्टीनेशनल कंपनियों में जाते हैं, बड़े अंतर्राष्ट्रीय बैंक्स में जाते हैं. बहुत ही वेल पेड कंसलटंट बन जाते हैं, थिंक टैंक के तौर पर धन और सम्मान पाते हैं. यूं समझ लीजिये कि एक बड़ा सर्कल है जिसमें उत्तरोत्तर तरक्की है.
और सब से महत्व की बात यह भी है कि सेवा निवृत्त होने पर अपने यूनिवर्सिटी में आकर अपने अनुभवों के आधार पर विद्यार्थियों का ज्ञानवर्धन करते हैं. जब इन लोगों के बायोडाटा में कहीं अध्यापन का उल्लेख दिखता है तो समझ में आता है उसका महत्व.
अपने यहाँ इस पर लगभग अंधेरा है. उम्मीद है मेक इन इंडिया में इसका भी अंतर्भाव होगा, जरूरत बहुत है. अगर सुपर पावर होना है तो Geopolitics की सूझ आवश्यक है.
वैसे एक बात बताता हूँ. अपने कहलाते internationalist लेकिन असल में imperialist expansionist विचारधारा के कारण इस्लाम और वामपंथ की इसमें काफी पैठ होती है. आप अक्सर उन्हें आप से ज्यादा जानकारी रखते हुए पाएंगे इन मामलात में. और ये क्यों है यह भी हमें पता नहीं होता.