बचें Sadist प्रवृति के लोगों से, चाहे वो आपके शिक्षक ही क्यों ना हो

करीब सात साल की थी जब माँ की डिलेवरी होने वाली थी. माँ हॉस्पिटल में थी और मैं आया के साथ घर पर. रात में पापा का फोन आया कि छोटी बहन आ गई हैं.

पूरी रात मैं ढंग से सो नहीं पाई. बहन के आने की खुशी और माँ की चिंता. माँ का हॉस्पिटल होना बच्चों के लिए बहुत बड़ी बात होती है. सुबह उठ कर सबसे पहले हमेशा मनहूस शक्ल रखने वाले मेरे ट्यूशन टीचर को फोन किया कि आप आज मत आओ, बहन हुई है. वैसे महीने में पांच दिन नागा रहने वाले उस मुए की आज ही वर्क एथिक्स जाग गयी. नहीं, मैं तो आऊँगा.

इधर पापा आये मुझे ले जाने के लिये हॉस्पिटल, उधर से वो पहुंच गया. बाकी दिनों से ज्यादा वक्त का पाबन्द. पापा को समझाया कि आज का सेशन बड़ा जरूरी है. अब पापा शिक्षक की बात क्या टालते तो मुझ से एक घण्टे और सब्र करने को कहा गया.

अब उसने कुटिल मुस्कान के साथ पढ़ाना शुरू किया. जमीन पर पसर कर जिद मनवाना शान के खिलाफ था तो मैंने दो बार, तीन बार, चौथी बार बड़ी विनम्रता से रिक्वेस्ट किया सर आज रहने देते हैं.

नालायक और आराम से पढ़ाने लगा. आज मैं पहली बार इंसानी व्यवहार को इतने गौर से ऑब्जर्व कर रही थी. उस कामचोर को आज पता नहीं क्यों मेहनत करने में बड़ा मजा आ रहा था. एक घण्टा बिता तो नया टॉपिक शुरू कर दिया. अब मेरा दिमाग गर्म हो गया. मैंने बड़ी शांति से बोला, ” मेरी बहन पैदा हुई है, मुझे जाना है.”
कुटिलता से मुस्कुराते हुए जवाब आया,” भारत में बच्चे पैदा होते रहते हैं. No big deal.”

बस फिर ना तो उसे समझ आया ना मुझे. मेरी आँखों के सामने तेज हलचल हुई और अगले ही पल उसके गाल और मेरे हाथ का झन्नाटेदार मिलन हो रहा था. वो जब तक कुछ समझता मैं तब तक सीखी गयी सबसे गन्दी गाली “चोट्टा” चिल्ला-चिल्ला कर दोहराते हुए निकल गयी कमरे से.

उस शिक्षक से मुझे बड़े काम की चीज पता चल गयी बड़ी कम उम्र में. आप लाख अच्छे हो पर कई लोग सैडिस्ट प्रवृति के होते हैं. उनकी खुशी सिर्फ दूसरों के दुःख पर निर्भर करती है. दूसरों की जिंदगी को मुश्किल बनाने की ताकत होने का एहसास ही उन्हें खुश करता हैं. ऐसे लोग किसी भी रिश्ते में हो या किसी भी उम्र में, इनकी मानसिकता का कभी पोषण मत कीजिये.

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