मानसिकता ( Mentality ) और विचारधारा ( Ideology ) एक नहीं हैं, ये अलग-अलग होते हैं. आवश्यक नहीं कि एक जैसी मानसिकता वाले लोग समान विचारधारा को मानने वाले हों. और यह भी ज़रूरी नहीं की एक जैसी विचारधारा वाले व्यक्ति समान मानसिकता वाले हों.
हमारे दुःख, क्लेश, आपसी संघर्ष, मनमुटाव, विवाद, क्षरण, मरण, विनाश का कारण हमारे विचारों की भिन्नता नहीं होती, बल्कि इस टकराव का मूल कारण हमारी मानसिकता होती है.
कोई भी विचार सहिष्णु या असहिष्णु नहीं होता, ये हमारी मानसिकता होती है जो विचार को सहिष्णु या असहिष्णु बना देती है.
विचार कट्टर या लचीले नहीं होते, हमारी मानसिकता कट्टर या लचीली होती है.
विचार कल्याणकारी या अकल्याणकारी नहीं होते, ये हमारी मानसिकता होती है जो किसी विचार को कल्याणकारी या अकल्याणकारी बना देती है.
इसलिये हमें चाहिये कि मानसिकता से प्रभावित होकर हम किसी विचार का मूल्याँकन कर, उसके खंडन या मंडन के फेर में ना पड़ें. क्योंकि आवश्यक नहीं की कोई विचार हमारी मानसिकता में परिवर्तन करे सके, किंतु यह निश्चित है की हमारी मानसिकता अवश्य ही विचार को परिवर्तित कर देती है.
ध्यान रखिये, विवादी मानसिकता वाले दो व्यक्ति निर्विवाद स्थिति को भी विवाद ग्रस्त कर देते हैं. और संवादी मानसिकता वाले व्यक्ति समस्त विवादों को ध्वस्त कर, विवादित स्थिति को निर्विवाद कर देते हैं.
इसलिए सुसंपन्न संस्कारित राष्ट्र हो या व्यक्ति, वे निंदा या निषेध विचारों का नहीं मानसिकता का करते हैं. क्योंकि वे जानते हैं की व्यक्ति की मानसिकता का निर्माण सूचना के प्रभाव या सूचना के अभाव के कारण होता है.
वे जानते हैं कि व्यक्ति हो या राष्ट्र उसकी सभ्यता का प्रमाण उसके विचार नहीं उसकी मानसिकता होती है.
वे इस सत्य से भलीभाँति परिचित होते हैं कि कभी-कभी अच्छे विचारों से सम्पन्न व्यक्ति भी ओछी मानसिकता वाला हो सकता है.
वे यह जानते हैं कि किसी भी गौरवमयी सभ्यता या संस्कृति के विनाश का या विकास का कारण व्यक्ति के विचार नहीं व्यक्ति की मानसिकता होती है, इसलिये चर्चा या चिंतन विचार पर नहीं, मानसिकता पर होना चाहिये.
– आशुतोष राणा
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