कर्नल (रि) आरएसएन सिंह ने बूढ़े को बूढ़ा बोल दिया तो मोमिनों सहित समर्थकों की भभा गयी. इतनी भभा गयी कि अब सिंह की योग्यता पर प्रश्न किये जा रहे हैं. यह समझ के बाहर है कि आपत्ति किस बात पर है : मोहम्मद को बूढ़ा कहने पर, आयेशा से उनके सम्बंध पर, कर्नल सिंह के सुरक्षा विशेषज्ञ होने पर अथवा रॉ में उनके संक्षिप्त कार्यकाल पर?
कुछ वेबसाइट्स आर के यादव के ट्वीट को लेकर उछल रही हैं. सिंह तो फिर भी सेना में सर्विस कर चुके हैं लेकिन पूर्व में सर्जिकल स्ट्राइक की झूठी खबर फ़ैलाने वाली वेबसाइट की क्या प्रमाणिकता है? क्या वेबसाइट ने इतने संवेदनशील मसले पर मिथ्या जानकारी देकर देश के लोगों को बरगलाने पर माफ़ी मांगी थी?
पूर्व इंटेलिजेंस अधिकारी आरके यादव ने भी बेसिरपैर का ट्वीट किया है. उन्होंने सिंह को फर्जी रॉ अधिकारी घोषित किया है. यादव को यह समझ में नहीं आया कि उनके एक ट्वीट से देश विरोधी मीडिया को कितना बड़ा मुद्दा मिल जायेगा.
मैं पूछना चाहता हूँ कि जो व्यक्ति सेना में रहकर कर्नल रैंक तक पहुँचा और रॉ में कम समय के लिए ही सही किंतु सेवाएं दीं, वह राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक विशेषज्ञ की हैसियत से क्यों नहीं बोल सकता?
यदि कर्नल सिंह को सुरक्षा विशेषज्ञ नहीं माना जा सकता तो इस पर स्पष्टीकरण देना भी आवश्यक है कि 1947 से अब तक इस देश में एक सिविलियन को रक्षा मंत्री क्यों बनाया जाता रहा है? तीनों सेनाध्यक्षों को समग्र रक्षा नीति निर्धारण में सम्मिलित क्यों नहीं किया जाता? सुरक्षा नीति निर्धारण की पूरी कमान कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यूरिटी के हाथों में क्यों होती है जिसमें एक भी सदस्य सेना का अधिकारी नहीं होता?
क्या एक सिविलियन नेहरु को देश के इतिहास में राष्ट्रीय सुरक्षा का सबसे बड़ा ब्लंडर करने का अधिकार देवताओं से प्राप्त था? नौ वर्षों तक ले. कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित को जेल में रखकर यातनाएं देने का अपराध जिस सरकार ने किया है क्या उस पार्टी के नेता देश से और सशस्त्र सेनाओं से माफ़ी मांगेंगे?
मैं आरके यादव से भी कुछ प्रश्न करना चाहता हूँ. क्या इन्हें पता नहीं है कि देश का मीडिया कितना दोगला और नीच है? अपने ही डिपार्टमेंट के पूर्व सहकर्मी के विरुद्ध ट्वीट उलीचने से पहले एक बार सोच तो लिया होता कि यही मीडिया मोहम्मद को बूढ़ा कहने पर माफीनामा दे सकता है किंतु किसी हिन्दू देवी देवता के अभद्र चित्रण पर माफ़ी नहीं मांग सकता.
कर्नल सिंह तो टीवी पर आकर कम से कम देश के लोगों को खतरों से आगाह करते हैं लेकिन आपने सर्विस छोड़ने के बाद देश को क्या दिया यादव जी? एक विदेशी इंटेलिजेंस विशेषज्ञ ने अपनी समीक्षा में आपकी पुस्तक को जासूसी कहानियों का फंतासी पिटारा बताया है यादव जी. आपने भारतीय इंटेलिजेंस पर जो पुस्तक लिखी है वो कहीं से विश्वसनीय नहीं लगती न ही किसी एंगल से पाठक को इंटेलिजेंस सर्विसेज में जाने के लिए प्रेरित करती है.
कभी देखिये NSA-CSS या मोसाद की वेबसाइट तब आपको पता चलेगा कि उनके यहाँ इंटेलिजेंस इतना सशक्त क्यों है. अमरीकी और इस्राएली इंटेलिजेंस में जनभागीदारी का महत्व समझते हैं. NSA की वेबसाइट पर आपको बच्चों के खेलने के लिए जासूसी के गेम्स मिल जाएंगे और मोसाद देश विदेश की आम जनता से जानकारी जुटाने को प्रयासरत रहती है और यहाँ आर के यादव जैसे महान क्रांतिकारी इंटेलिजेंस अधिकारी के ऊपर सेक्यूलर दिखने का ऐसा शौक चढ़ा है कि अपने ही डिपार्टमेंट के लोगों को फ्रॉड कहते शर्म नहीं आती.