काहे बौरा रहे हो… गुरु पूर्णिमा नहीं, ‘टीचर्स डे’ उर्फ़ शिक्षक दिवस है आज… उसी शिक्षक का दिवस जो आज शिक्षा कर्मी कहलाता है… तनख्वाह का रोना रोता है… उसके लिए हड़ताल और घेराव भी कर लेता है…और इसके चलते लट्ठ भी खा लेता है.
सो, ‘बंदऊं गुरु-पद कंज, कृपासिन्धु नर रूप हरि…’, और ‘गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर: गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:’ को गुरु के लिए रहने दें.
प्रत्येक गुरु, शिक्षक तो होता है पर, शिक्षक गुरु नहीं होता. (गुरु और शिक्षक का अंतर न पता हो तो पता करिए)
आज डॉ. राधाकृष्णन की जयन्ती है… संयोगवश वे कभी शिक्षक थे.
जैसे नेहरू कभी बच्चे थे तो बाल दिवस. (इसको ऐसे भी पढ़ा जा सकता है कि नेहरू के कभी बाल थे तो…)
बहरहाल, शिक्षक के राष्ट्रपति बन जाने से शिक्षक का मान नहीं बढ़ा (राधाकृष्णन केस)… जैसे किसी चायवाले के प्रधानमंत्री बनने से चायवाले का नहीं बढ़ता (नमो केस)
चायवाले का मान तब बढ़ता जब कोई चायवाला बनने के लिए प्रधानमंत्री पद ठुकरा दे… ऐसे ही शिक्षक की महत्ता तब है जब कोई राष्ट्रपति शिक्षक बनने को उत्सुक हो (डॉ कलाम केस)
खैर, शिक्षक दिवस है तो शिक्षा पर चिंतन हो, शिक्षक पर स्वयमेव हो जाएगा.
शिक्षा सुधरे तो शिक्षक खुदबखुद बेहतर होंगे.
शिक्षक बेहतर होंगे तो खुदबखुद गुरु हो जाएंगे.
शिक्षा की व्यवस्था सुधारने, सबसे पहला कदम… देश भर के बेहतरीन शिक्षकों को ही प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 5 तक) का दायित्व सौंपा जाए. इसके लिए भले उन्हें मानदेय किसी भी विश्वविद्यालय के आचार्य जितना ही क्यों न देना पड़े.
प्राथमिक शिक्षा, महज़ अक्षर ज्ञान, जोड़-घटाना सिखाना, पहाड़े रटाना और देश-प्रदेश के नाम व उनकी राजधानियों का नाम सिखाना मात्र नहीं है. वो क्या है, ये जानते हैं ये बेहतरीन शिक्षक.
अपनी बात… मेरे पास ऐसा कोई नाम नहीं जिसे याद करके मैं आज के दिन आह्लादित हो सकूं.. शिक्षक मिले पर वे जीवन की पाठशाला में मिले.. मिल रहे हैं.. मिलते रहेंगे..