क्यों शरणार्थियों को अंदर नहीं घुसने देता अरब का कोई भी इस्लामी देश

आज से करीब दो वर्ष पूर्व यह लेख मैंने सीरिया से यूरोप भागते हुये शरणार्थियों और इसके पीछे मानवतावाद की पीठ पर चढ़े इस्लामिक षडयंत्र पर लिखा था. आज जब फिर पढ़ा तो समझ में आया कि यह तो आज के भारत और म्यांमार से भागते हुये रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत में बसाने और रोक रखने के षडयंत्र की ही रूपरेखा है.

देखा जाय तो आज, उस लेख में से ‘टर्की के समुद्र पर एक बच्चे की पलटी हुई लाश’ की जगह ‘म्यांमार में रोहिंग्या पर अत्याचार’ लिख सकते हैं. उस बच्चे की फोटो की तरह आज कल रोहिंग्या चल रहा है. कांग्रेसी, वामपंथी व मुस्लिम संगठन, मीडिया, सोशल मीडिया और सुप्रीम कोर्ट तक यही चला रहे हैं.

सीरिया के शरणार्थियों की सहायता से, मानवतावाद के नाम पर, यूरोप की संस्कृति और उनकी ईसाई डेमोग्राफी को बदलने के लिये तब इस्लाम द्वारा यूरोप को फंसाया था, वहीं आज यही कट्टरपंथी इस्लाम, भारत के भ्रष्ट, हिन्दू विरोधी राजनीतिज्ञों और मानवतावादियों की सहायता से भारत की मूल हिन्दू संस्कृति और उसकी डेमोग्राफी को बदलने के लिए शरणार्थियों के नाम पर रोहिंग्या लोगों को भारत में रोकने का प्रयास कर रहा है.

मेरा स्पष्ट मानना है कि रोहिंग्या लोग भारत के लिये खतरा हैं. ये ही वे लोग हैं जो राष्ट्र को ही नहीं मानते है. ये ही वे लोग हैं जो जहां रहते हैं उसी को तोड़ देते हैं. ये ही वे लोग हैं जो किसी और धर्म के साथ नहीं रह सकते हैं. म्यांमार में रोहिंग्या मारे और काटे इस लिये जा रहे हैं क्योंकि उन्हें अपने लिये म्यांमार को काटना है. भारत 1947 में यह कहानी देख चुका है, शायद म्यांमार के बौद्ध वह गलती नहीं करना चाहते हैं.

बहरहाल, पढ़िए दो साल पूर्व लिखा वह लेख जिसमें सीरिया से यूरोप भागते हुये शरणार्थियों और इसके पीछे मानवतावाद की पीठ पर चढ़े इस्लामिक षडयंत्र पर लिखा था.

सुबह से टर्की के समुद्र तट पर एक बच्चे की पलटी हुयी लाश की फोटो चल रही है. उस पर एक से एक लोगों ने लिखा है और ज्यादातर लोगो ने सिर्फ एक बच्चे की लाश को देख कर लिखा है. ये नई बात नहीं है, शताब्दियों से इस तरह की मौतें होती रही हैं और आगे भी होती रहेंगी. केवल मूर्ख राष्ट्र ही ऐसों को अपने अन्दर जाने देता है जिनको सिर्फ अपने धर्म से मतलब होता है, राष्ट्र से नहीं.

मौत मौत होती है और मैंने अफ़सोस करने की रस्म अदायगी भी कर दी है लेकिन मुझे सख्त नफरत हो रही है उन घड़ियाली आंसुओं से जो इस मौत को लेकर कोहराम मचा रहे लोग बहा रहे हैं.

किस लिए रो रहे हो? इसलिए कि मानवता का खून यूरोप कर रहा है? किस बात की मानवता?

इस भारत में, इसी कश्मीर में 80 के दशक के बाद कितने 9 महीने के बच्चों ने दम तोड़ दिया तब क्या कुछ लिखा था? जिनके रियाल और दिनार पर यहां मानवतावादी मदरसे चल रहे हैं, उन्होंने क्या कश्मीर में हिन्दुओ के कटने पर, कभी आंसू निकाले थे?

यह सब बकवास है, फर्जी लोग हो तुम सब लोग, जो लिखने के लिए लिख रहे हो. मुझे भारत में कोई शरणार्थी, वह भी ख़ास तौर से इस्लाम का अरबी चश्मा पहने हुये भारत में नहीं चहिये.

मै उनकी मौत पर कोई मातम नहीं मनाऊंगा क्योंकि भारत ने इस का जहर पिया और कई बार टुकड़े होने की कीमत भी दी है.

हम तो खुद ही हिंदुत्व की उद्गमस्थली पर हिन्दू हो कर जीने की कोशिश कर रहे हैं, हमें मानवता से इससे ज्यादा क्या मतलब है? हमें मानवता से उतना ही मतलब है, जितना हम भारतीयों को अरब, सेंट्रल एशिया और ईसा का क्रॉस लिए वेटिकन के पादरियों ने सिखाया है. उन्होंने मानवता के एक एक हिज्जे के परखच्चे उड़ाए हैं.

टर्की के समुद्र तट पर फोटो खींची गयी… एक मौत सिर्फ इसलिए हुई है क्यूंकि सीरिया से उन्हें भागना था और अरब का कोई भी इस्लामी देश, अपने इस्लामी बिरादरों को, इसलिए पनाह नहीं देना चाहता था क्यूंकि उन्हें अपने राष्ट्र के अन्दर वो नहीं चाहिए थे जो जिस थाली में खाते है उसी में छेद करते हैं.

जानते है क्यों अरबों ने उन्हें शरणार्थी के रूप में नहीं आने दिया? क्यूंकि अरबों को इस्लाम सबसे बढ़िया तरीके से पता है.

हमारे यहाँ की तो खैर बात ही छोडिये, यहाँ तो ‘हर शाख पे उल्लू बैठा है’ जैसा आलम है. मुझे शिक्षा नहीं चाहिए और न मुझे दीजियेगा. मुझको इस उस मौत पर अफ़सोस नहीं है, वो एक हादसा है बस.

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