जून 2014 को कुछ लिखा था उसी को फिर प्रस्तुत कर रहा हूँ. हां, यह ज़रूर है कि उन दिनों मेरी हिंदी अच्छी नहीं थी, इसलिये उसको ठीक कर दिया है. यह लेख, कल रात अंग्रेज़ी के जो लाइन लिखी थी, There Are Always Wrong One, Even If They Are Driving Ultra Right, का ही निचोड़ है.
मैं आज यहाँ कुछ कहना चाहता हूँ. वह व्यक्तिगत भी है और आज से पहले यह सोचा ही नहीं था कि यह कहने की कोई जरुरत पड़ेगी. मुझे फेसबुक पर मिले दो तरह के मित्रों से विरक्ति हो गयी है. पहले वे, जो मुझ से इस लिए जुड़े है क्योंकि उन्हें लगा कि मैं सही बात कहता हूँ और मेरी विवेचनाएं धर्म से ऊपर होती है.
मुझे भी वही लोग अच्छे लगे, जो सत्य लिखते थे और तटस्थ होते थे. लेकिन 16 मई के परिणामों के बाद उनकी तटस्थता पर पड़ा घूँघट हट गया है. वह लोग यह कहते ज़रूर थे कि वही आयेगा लेकिन जब वो आ गया तो हिम्मत ही नहीं हुई कि उसे अपने दर्पण में ही देख लें. अनुच्छेद 370 पर भी उनसे यह गवारा नहीं हुआ कि उसको पढ़ लें, समझ लें. उनकी इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि इस मसले को देश की आँख से देख लें और धर्मनिरपेक्षता के मरे हुए शव और धर्म से देखना बन्द कर दें.
दूसरे लोग तो उनसे भी गज़ब है. ये लोग तो उन लोगों से भी आगे बढ कर है. इन सब लोगों ने अपने-अपने मैनिफेस्टो बना रक्खे हैं और उसके साथ उन्होंने घंटों की समय रेखा भी बांध रक्खी है. इन जैसे लोगों की और ही विकट स्थिति है! इन जैसे लोगों को जिन्होंने इस उद्देश्य से, इसके लिये, तन, मन और धन से समर्थन किया था, उन्हें सबसे ज्यादा कष्ट होने वाला है.
यह कष्ट इस लिये नहीं होने वाला है कि वे गलत हैं या उनके उद्देश्य गलत हैं बल्कि इसलिये होगा क्योंकि इन लोगों ने वही गलती की जो अब तक, मोदी जी को लेकर, ज्यादातर सभी राजनैतिक दलों, पत्रकारों, मीडिया, बुद्धिजीवी वर्ग, विभिन्न पंथ के सेवक, विभिन्न जातिपोषक क्षत्रप और बीजेपी के भीष्मों, द्रोणाचार्यों और दुर्योधनों ने की है.
इन सबने सबसे बड़ी गलती यह की है कि इन्होंने जिसका विरोध किया है या चुना है, उसका आंकलन उन्होंने उस स्थापित मापदंडों पर किया है जो भारत की अब तक की राजनीतिक यात्रा में आये हुये राजनीतिक महानुभावों ने स्थापित किये हैं.
उन्होंने इस चुने गये व्यक्ति के व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन से कोई शिक्षा नहीं ली बल्कि उसे अपने में से एक होने का विश्वास किया है. उन्होंने उसको पहचान तो लिया है लेकिन जाना बिल्कुल भी नहीं है. इन लोगो ने केवल और केवल, अपने बौद्धिक अहंकार का चश्मा पहन कर, उसके हर संकेत व उठे कदम को, अपनी अपेक्षाओं के परिणामो में, परिभषित होने का दिवास्वप्न देखा है.
ऐसे लोगों को और तकलीफ होनी है क्योंकि वो 49 दिन… 100 दिन की सरकार मान कर अपनी मांगों की प्राथमिकता पूरी होने की अपेक्षा कर बैठे हैं. यह एक शाश्वत नियम है कि बच्चा 9 महीने में ही पैदा होता है, पर यह लोग तो सतमासे बच्चे की अभिलाषा को भी तिलांजलि दे बैठे हैं और एक महीने में ही बच्चे को पैदा होने और उसे गोद में खिलाने की अभिलाषा पाले बैठे है!
नरेंद्र मोदी को हमने 5 साल के लिए चुना है भाई! उनको इन 5 सालो में काम तो करने दीजिये! आप और हमारे लिए 2019 ही सही समय होगा जब हम अपने से पूछ सकते है कि बच्चा हुआ या नहीं.
अंत में यही कहूंगा कि 2019 के बाद दोबारा आया व्यक्ति, ऐसे लोगो को और कष्ट देने वाला है. आज 2014 को लिख रहा हूँ कि यह 2019 में फिर आयेगा, भले ही जिन्होंने 2014 में वोट दिया है वह उसको दोबारा वोट न करें. यह प्रारब्ध है.