चीन के प्रति अविश्वास इतना गहरा है कि अच्छी खबरें भी सशंकित करती हैं. और अच्छी खबरें अगर एक के बाद एक आने लगें तो कान खड़े होना स्वाभाविक है. कल ब्रिक्स घोषणापत्र में लश्कर ए तैयबा, जैश ए मुहम्मद और हक्कानी नेटवर्क को आतंकी करार दिया गया. पिछले साल उड़ी हमले व जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद गोवा में ब्रिक्स सम्मेलन हुआ था तब भी चीन ने घोषणापत्र में इन रिश्तेदारों के नाम नहीं आने दिए थे.
विभिन्न डिफेंस वेबसाइट्स पर ऐसी खबरों की बाढ़ है कि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी करार दिए जाने पर वीटो के उपकार के बदले चीन बलूच लड़ाकों के सफाए के लिए जैश को मोहरा बना रहा है ताकि चीन-पाक आर्थिक गलियारे (CPEC) की अड़चनें कुछ कम हों. फिर ऐसा क्या हो गया?
गोल मोल और प्रेस कांफ्रेंस में बहुत टालमटोल के बाद चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पीटीआई को लिखित जवाब में स्वीकार किया कि इसके लिए सदस्य देशों का दबाव था. इसका मतलब यह कि जिस संगठन को खड़ा करने में चीन ने इतना पसीना बहाया, उसी में वह अलग-थलग पड़ गया. आगे फजीहत भले न हो लेकिन दिक्कत है.
चीन के सरकारी चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कांटेम्परेरी स्टडीज के निदेशक हू शिशेंग ने कहा कि चीन को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. उन्होंने माना कि यह भारत की बड़ी जीत है, पर कहा कि मेरी समझ से परे है कि चीन इसके लिए क्यों तैयार हुआ. उनका मानना है कि इससे चीन व पाकिस्तान के रिश्तों में खटास आएगी और उन्हें पाकिस्तान को समझाने में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.
ट्रंप की नई दक्षिण एशिया नीति के घोषणा के बाद पाकिस्तान का दिल वैसे ही क्षतिग्रस्त हो गया था. अब तो उसे चीन से ही रिपेयर और वफा की उम्मीद की उम्मीद थी. पर लगता है कि इस दिल के टुकड़े हजार होंगे. कतरी, कुवैती और सऊदी तो दगा दे ही रहे थे.
अब चीन समझाए पाकिस्तान को. पर हमें समझ में नहीं आ रहा कि यह हो क्या रहा है विशेषकर जब पिछले कुछ महीनों से हालात 1962 जैसे हैं. चंद महीने पहले भारत ने चीन की सबसे महत्त्वाकांक्षी वन बेल्ट-वन रोड (OBOR) परियोजना में शामिल होने से इनकार ही नहीं किया बल्कि सख्त बयान जारी कर उसकी सारी चमक फीकी कर दी.
फिर डोकलाम में सारी दुनिया के सामने चीनी रैंबो के कपड़े उनके अपने गलत गुणा-भाग के चलते उतर गए और अब अपने ही घर में एक न चली. ब्रिक्स से पहले चीन ने कहा कि आतंकवाद के मूलभूत कारणों पर ध्यान देने की जरूरत है. समझे नहीं! कि मूलभूत कारण यह कि जब तक कश्मीर “हिंदू भारत” में रहेगा तब तक आतंकवाद फैलेगा ही. फिर पाकिस्तान की निंदा ना हो जाए इसलिए कहा – ब्रिक्स आतंकवाद पर चर्चा का उचित मंच नहीं. और फिर उसी मंच से जीती मक्खी निगल ली. जो भी हो, शुभ-शुभ हुआ.
पाकिस्तानी अखबारों में कल गजब सन्नाटा रहा. डॉन, एक्सप्रेस ट्रिब्यून, द न्यूज़ और द नेशन में रात 12 बजे तक ब्रिक्स के नाम पर सिर्फ उत्तर कोरिया रहा. बाकी जगह रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचारों ने घेर ली. देर रात छोटी खबरें एक साथ चारों अखबारों में दिखी पर कोई सरकारी प्रतिक्रिया नहीं. हिमालय से ऊंची और सागर से गहरी इस मित्रता के लिए यह बहुत बड़ा धोखा है. इसलिए सदमा भी गहरा
बाकी इसका मोदी-डोभाल को कोई श्रेय नहीं जाता. मोदी भाई से कुपित राष्ट्रवादियों से कहूंगा कि वे इसका श्रेय राहुल गांधी और सीताराम येचुरी को दें. पर हां, इसके लिए जरूरी तर्क भी गढ़ लें.