अब समझाने योग्य जितनी बात नहीं है… खुद समझिये

जम्मू कश्मीर, नागालैंड और मिज़ोरम! इनकी स्थिति से तो सब परिचित होंगे ही. अरुणाचल प्रदेश भी है. नागालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश में जाने के लिए आपको ILP अर्थात Inner Line Permit की जरूरत होती है. अगर आप बिना ILP के जाते है तो आप अंदर जा सकते है. ये एक वीज़ा की तरह ही होता है जो लिमिटेड समय सीमा तक ही वैध रहता है और फिर विशेष परिस्थितियों में ही एक्सटेंशन किया जा सकता है. ध्यान रहे कि ये अंग्रेजों ने अपने सुरक्षित व्यापार हेतु 1873 में बनाया था जिसे 1950 में कुछ संशोधनों के साथ ज्यो का त्यों रहने दिया गया.

ये क्यों बता रहा मैं… क्योंकि संविधान की 5वीं अनुसूची की आड़ में अब भारत की मुख्य भूमि से भी इस तरह की माँग उठने लगी है… अनुसूचित क्षेत्रों में बाहरियों का ‘प्रवेश निषेध’ के बोर्ड के साथ नो एंट्री. अगर जाना ही है तो ऊपर उल्लेखित राज्यों की सरकार के द्वारा जारी ILP की तर्ज़ पर ग्राम प्रधान ILP जारी करेगा…

अगर ग्राम प्रधान अनुमति जारी नहीं करता है तो आप प्रवेश नहीं कर सकते… झारखंड के राँची, लोहरदगा, खूँटी, पश्चिमी सिंहभूम आदि जिलों में जगह-जगह ऐसे बोर्ड और पत्थर पर उकेरे संविधान की जानकारी के साथ प्रवेश निषेध के बोर्ड देखने को मिलने लगे हैं जो पिछले एक डेढ़ साल में ही हुए हैं.

इसका आशय स्पष्ट है कि अब मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना आदि राज्यों में जहाँ अनुसूचित क्षेत्र है वहाँ अब छोटे-छोटे नागालैंड, मिजोरम बनने जा रहे हैं. अब इससे थोड़ा आगे बढ़ते हैं…

इनकी चर्चाओं में शामिल होने पर पता चलता है कि हो क्या रहा है… ये बात-बात पर अंडमान के ‘जारवा आदिवासियों’ का उदाहरण देते रहते हैं… बताते हैं कि आज भारत में सबसे शक्तिशाली जनजाति अगर कोई है तो वो जारवा जनजाति है… आप उनके इलाके में बस के बताइये, घुस के बताइये. आप क्यों नहीं घुस सकते उसके इलाके में, क्यों नहीं बस सकते उसके इलाके में? अगर वो जनजाति होते हुए उनके इलाके में कोई बाहरी प्रवेश नहीं कर सकता तो फिर हमारे इलाके में कोई बाहरी, गैर आदिवासी कैसे प्रवेश कर सकता है, कैसे बस सकता है? डॉट.. डॉट.. डॉट!!! हमें भी जारवा बनना है.

तो भैया ऐसा है कि मेरे भी कुछ सवाल है –

1. क्या जारवा देश के अन्य हिस्से में बस सकते है?
2. क्या जारवा वालों ने कोई आंदोलन किया कि हमारे इलाके में प्रवेश मत करो?
3. कोई पत्थलगढ़ी कर संविधान के अनुच्छेद उप-अनुच्छेद वर्णन कर प्रवेश निषेध के बोर्ड लगाए?
4. अगर इन्हें बाकी दुनिया से आइसोलेट कर एक विशेष प्रोटेक्शन दिया गया है तो क्यों दिया गया है और कारण क्या है?

तो भाई ऐसा है कि वहाँ जारवा जनजाति में आपके जैसे बुद्धिजीवी लोग नहीं हैं और न ही संविधान जैसी कोई चीज जानते भी हैं, लेकिन हाँ संविधान के तहत ही उन्हें विशेष प्रोटेक्शन दिया गया है… अब इन्हें प्रोटेक्शन दिया गया तो क्यों दिया गया?

एक अंतरराष्ट्रीय धारणा है कि जनजातियों के अस्तित्व को दो तरीके से बचाया जा सकता है –
1. उन्हें जागरूक कर मुख्य धारा में शामिल करवा के, या
2. उनके क्षेत्र को संरक्षित कर उनके समाज में न्यूनतम हस्तक्षेप.
तो जारवा के संबंध में दूसरा तरीका अपनाया गया है. अब दूसरा तरीका ही क्यों?

तो वो इसलिए कि ये हजारों वर्षों से अलग रहे हैं, बाहरी दुनिया से बिल्कुल ही कटा हुआ… अलग थलग… कोई सम्पर्क नहीं बाहरी दुनिया से… जो उस आइलैंड में प्रकृति प्रदत्त चीजें हैं उन्हीं से ये अपना पालन-पोषण कर रहे हैं और अपना अस्तित्व बचाये हुए हैं…

बाहरी दुनिया से सम्पर्क में न आने के कारण इनकी प्रतिरोधक क्षमता बहुत ही कम है, हालांकि इनकी इम्यून सिस्टम वहाँ के हिसाब से ठीक है… लेकिन मॉडर्न वर्ल्ड में पाए जाने वाले वायरसों के विरुद्ध इनकी इम्यून सिस्टम बहुत ही कमजोर है…

तो बाहरी आदमी जब इनसे घुलने-मिलने लगे तो इनमें नई-नई बीमारियां होने लगीं… बाहर से दिए जाने वाले भोजन इनके योग्य नहीं. बाहरी पर्यटकों द्वारा दिये जाने भोजन को खाकर ये बीमार पड़ने लगते हैं.

इन्हीं चिंताओं के मद्देनजर जनवरी 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इनके क्षेत्र से गुजरने वाला अंडमान ट्रंक रोड (ATR) को बंद किया जाय… लेकिन अंडमान में इसका तीखा विरोध हुआ जिसके बाद वहाँ के प्रशासन ने आश्वासन दिया कि उनके संरक्षण के लिए नियम बनाएगी व सख्ती से लागू करेगी.

जिसके बाद इनके क्षेत्र में बसों का रोका जाना बिल्कुल भी मना है… पुलिस इनके मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती… इनकी जो सामाजिक संरचना है उसी के आधार पर ये रहेंगे!!

तो ये हुई जारवा जनजाति जो सुदूर एक द्वीप में बसी हुई है… और नागालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश उत्तर-पूर्व सीमांत राज्य.

लेकिन भारत की मुख्य भूमि में इन्हें जारवा जैसी सुविधाएं चाहिए… यानी पुलिस इनके मामलों में हस्तक्षेप न करे… कोई इनके इलाके में ठहरे नहीं, अगर ठहरे तो बिना अनुमति नहीं… इनकी अपनी शासन व्यवस्था है पारंपरिक व रूढ़िवादी… इनकी इस व्यवस्था में संविधान लागू नहीं होता… न इनके निर्णयों को न्यायालयों में चैलेंज किया जा सकता है… वगैरह… वगैरह…

तो मुख्य भूमि के इन आदिवासियों से पूछना चाहूँगा कि –
क्या आप जारवा जैसे हैं? क्या आपका इम्यून सिस्टम कमजोर है? बाहरी लोगों का खाना खा के आप बीमार हो जाते हो? बाहरी लोगों के वायरस को आप झेल नहीं पाते हो? कोई ऐसे लक्षण हैं क्या आप में!

जारवा के एक आदिवासी को दिल्ली में लाकर छोड़ दो, यहाँ तक कि झारखण्ड में भी ला के छोड़ दो फिर देखो वो जारवा कितना दिन तक सर्वाइव कर सकता है! और आप मेन लैंड के आदिवासी दिल्ली तो क्या अमेरिका, यूरोप तक झंडे गाड़ रहे हैं! आप तो मॉडर्न दुनिया के हिस्से बन चुके हैं. मॉडर्न दुनिया के वायरस आप झेल लेते हैं तो फिर जारवा बनना है? किस आधार पर?

अंग्रेजों ने नॉर्थ-ईस्ट में ILP जारी की… फिर धर्मांतरण का जबरदस्त खेल खेला गया… और अब परिणाम सामने है… मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर में कितने वहाँ प्रकृति पूजक और हिन्दू ट्राइब्स? जरा खोजियेगा!

और अब मेन लैंड में भी ILP की वकालत… फिर कनवर्जन की पूरी छूट… ग्राम प्रधान ही कन्वर्ट तो शुद्ध सरना और हिन्दू क्यों न कन्वर्ट करें! और इनके मामलों में बाहरी लोग हस्तक्षेप नहीं कर सकते, न कोई कानून लागू होगा!

अर्थात चर्चों के दल्ले ग्राम प्रधानों की मनमानी चलेगी… आज से डेढ़ दो साल पहले मेन लैंड में ऐसी कितनी गतिविधियां देखने को मिलती थी! उत्तर है एक भी नहीं! बीजेपी गवर्मेंट का आना, फिर अन्य राज्यों में भी बीजेपी का परचम लहराना और फिर एक के बाद एक मिशनरी षडयंत्रों के विरुद्ध कदम उठाना, धर्मान्तरण निषेध बिल जैसे कानून लाना, इनकी छटपटाहट का मुख्य कारण है!

फिर इसके बाद शुरू होती है इनकी संविधान व्याख्या… जगह-जगह 5वीं अनुसूची को उल्लेखित करते हुए ‘प्रवेश निषेध’ ‘प्रतिबंधित क्षेत्र’ कर के पत्थलगढ़ी करना… और जारवा जैसी माँग करना! ध्यान देने योग्य बात ये कि जितने भी पत्थलगढ़ी हो रहे हैं वो ज्यादातर ईसाई बहुल क्षेत्रों में ही हो रहा है… अब समझाने योग्य जितनी बात नहीं है… खुद समझिये.

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