अच्छे-अच्छे महलों में भी एक दिन अपना घोंसला बना लेते हैं कबूतर

सेठ घनश्याम के दो पुत्रों में जायदाद और ज़मीन का बँटवारा चल रहा था और एक चार पट्टी के कमरे को लेकर विवाद गहराता जा रहा था. एक दिन दोनों भाई मरने मारने पर उतारू हो चले. तो उनके पिता सेठ घनश्याम बहुत जोर से हँसे. पिता को हँसता देखकर दोनो भाई लड़ाई को भूल गये और पिता से हँसी का कारण पूछा.

तो सेठ घनश्याम ने कहा – इस छोटे से ज़मीन के टुकडे के लिये इतना लड़ रहे हो… छोड़ो इसे… आओ मेरे साथ… एक अनमोल खज़ाना बताता हूँ मैं तुम्हे!

पिता घनश्याम जी और दोनों पुत्र उनके साथ रवाना हुये. सेठ घनश्याम ने कहा, “देखो यदि तुम आपस में लड़े तो फिर मैं तुम्हें उस खज़ाने तक नहीं लेकर जाऊँगा और बीच रास्ते से ही लौटकर आ जाऊँगा”!

अब दोनों पुत्रों ने खज़ाने के चक्कर में एक समझौता किया कि चाहे कुछ भी हो जाये पर हम लड़ेंगे नहीं, प्रेम से यात्रा पे चलेंगे!

गाँव जाने के लिये एक बस मिली पर सीट सिर्फ दो ही मिल सकीं. वे तीन थे. अब पिताजी के साथ थोड़ी देर एक बैठे तो थोड़ी देर दूसरा. ऐसे चलते-चलते लगभग दस घण्टे का सफर तय किया फिर गाँव आया.

सेठ घनश्याम दोनों पुत्रों को लेकर एक बहुत बड़ी हवेली पर गये. हवेली चारों तरफ से सुनसान थी. घनश्याम ने जब देखा कि हवेली में जगह-जगह कबूतरों ने अपना घोंसला बना रखा है, तो घनश्याम वहीं पर बैठकर रोने लगे… दोनो पुत्रों ने पूछा, “क्या हुआ पिताजी आप रो क्यों रहे है”?

तो रोते हुये उस वृद्ध पिता ने कहा, “ज़रा ध्यान से देखो इस घर को, ज़रा याद करो वो बचपन जो तुमने यहाँ बिताया था. तुम्हे याद है पुत्र, इस हवेली के लिये मैंने अपने भाई से बहुत लड़ाई की थी. सो ये हवेली तो मुझे मिल गई पर मैंने उस भाई को हमेशा के लिये खो दिया क्योंकि वो दूर देश में जाकर बस गया. फिर समय बदला और एक दिन हमें भी ये हवेली छोड़कर जाना पड़ा”!

“अच्छा तुम ये बताओ बेटा कि जिस सीट पर हम बैठकर आये थे, क्या वो बस की सीट हमें मिल जायेगी? और यदि मिल भी जाये तो क्या वो सीट हमेशा-हमेशा के लिये हमारी हो सकती है? मतलब कि उस सीट पर हमारे सिवा कोई न बैठे”.

तो दोनो पुत्रों ने एक साथ कहा कि “ऐसे कैसे हो सकता है. बस की यात्रा तो चलती रहती है और उस सीट पर सवारियाँ बदलती रहती है. पहले कोई और बैठा था. आज कोई और बैठा होगा और पता नहीं कल कोई और बैठेगा. और वैसे भी जो थोड़ी सी देर के लिये हमारी है, ऐसी सीट में धरा क्या है”!

सेठ घनश्याम फिर हँसे, फिर रोये और फिर बोले, “देखो यही तो मैं तुम्हें समझा रहा हूँ, कि जो थोड़ी देर के लिये तुम्हारा है, तुमसे पहले उसका मालिक कोई और था, बस थोड़ी सी देर के लिये तुम हो और थोड़ी देर बाद कोई और हो जायेगा”.

“बस बेटा एक बात ध्यान रखना कि इस थोड़ी सी देर के लिये कहीं अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना. यदि कोई प्रलोभन आये तो इस घर की इस स्थिति को देख लेना कि अच्छे-अच्छे महलों में भी एक दिन कबूतर अपना घोंसला बना लेते है”.

“बस बेटा मुझे यही कहना था कि बस की उस सीट को याद कर लेना जिसकी रोज़ उसकी सवारियां बदलती रहती हैं. उस सीट की खातिर अनमोल रिश्तों की आहुति न दे देना. जिस तरह से तुम दोनों ने बस की यात्रा में तालमेल बिठाया था, बस वैसे ही जीवन की यात्रा में भी तालमेल बिठा लेना”.

दोनो पुत्र, पिता का अभिप्राय समझ गये, और उनके चरणों में गिरकर रोने लगे!

शिक्षा : मित्रों, जो कुछ भी ऐश्वर्य-सम्पदा हमारे पास है वो सब कुछ बस थोड़ी देर के लिये ही है. उस ऐश्वर्य-संपदा का कौन, कैसे उपयोग करेगा यह हम नहीं तय कर सकते. थोड़ी-थोड़ी देर में यात्री भी बदल जाते है और मालिक भी. रिश्ते बड़े अनमोल होते हैं. छोटे से ऐश्वर्य या सम्पदा के चक्कर में कहीं किसी अनमोल रिश्ते को न खो देना.

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