पीके मंदिरों के आगे ज़हर उगलने के बाद जब मस्जिद के सामने जाता है तो अगले ही दृश्य में उसे भागते हुए बताया जाता है. बीच में क्या हुआ था, ये निर्देशक राजकुमार हिरानी ने फिल्माया ही नहीं था, फिल्माया जा भी नहीं सकता था. पीके जब तक ‘भुवन’ था, हमारी आंखों का तारा हुआ करता था लेकिन आज एक धर्म विशेष के लिए उसकी हिकारत, उसके कॅरियर के ताबूत की आखिरी कील बन गई है.
जिस बयान का हवाला दिया जा रहा है, वो आमिर ने 2016 जुलाई में दिया था. जब उनसे पूछा गया कि अभिनेता इरफ़ान खान ‘क़ुरबानी’ का विरोध कर रहे हैं क्योंकि कई बेगुनाह जानवर कत्ल हो जाते हैं, इस पर वे क्या कहेंगे. आमिर ने कहा ‘हर धर्म की अपनी मान्यताएं होती हैं, उनमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
हालांकि ये ज्ञान देने से पहले वे पीके में हिंदू मान्यताओं पर आघात कर चुके थे. ये आघात परेश रावल के दिए आघात से कम नहीं था. ओह माय गॉड फिल्म ने भी आमिर खान की पीके से कम ज़हर नहीं उगला था.
दंगल बड़ी हिट हो गई और मुझे बेहद अफ़सोस है कि मैंने इस उम्दा फिल्म की सकारात्मक समीक्षा की थी. अफ़सोस इसलिए कि मिस्टर आमिर खान ने इस वक्त अपने प्रशंसकों से ही पंगा ले लिया है. वे पीके जैसी फिल्मों से दर्शा रहे हैं कि देश के बहुसंख्यक हिंदू धर्मावलम्बियों को वे ऐसे ही चिढ़ाते रहेंगे और माफ़ी तक नहीं मांगेंगे. ये दुःसाहस वे तब तक आराम से कर सकेंगे, जब तक हम उनकी फिल्मों को 300 करोड़ कमाकर देंगे.
आमिर की चर्चा को रोककर अब एक फिल्म की चर्चा करते हैं. कीनू रिव्ज की ‘मेट्रिक्स’ सभी को याद होगी. फिल्म में मारफियस निओ से कहता है ‘मेरे हाथ में दो गोलियां हैं, नीली और लाल. यदि तुम लाल गोली खाते हो तो इस आभासी विश्व से बाहर निकलकर वास्तविकता देख सकते हो, ज्ञान प्राप्त कर सकते हो. और यदि नीली गोली खाते हो तो इसी आभासी विश्व में शान्ति से रह सकते हो, एक बेहोशी में, वास्तविकता से दूर. निओ शुरू से जानता है कि जो उसे दिखाया जा रहा है, उसमें कुछ तो गड़बड़ है. इसलिए निओ लाल गोली चुनता है.
ये वाली लाल और नीली गोली यहां फेसबुक पर प्रचुरता से उपलब्ध है. लाल गोली ‘जागरण’ की और नीली गोली ‘सेकुलरिज़्म’ का जहर देती है, मीठा-मीठा, भाईचारे वाला. हम तो यहाँ लोगों को ‘निओ’ बनाने बैठे हैं लेकिन ये गुरूद्वारे, गणेश पांडाल वाले खुद ही ‘नीली गोली ‘ बाँट रहे तो कोई क्या करे.
देखो भाई ये जो लाल गोली है ना, तकलीफ देती है. वास्तविकता दिखाती है. दोस्त ख़त्म करवा देती है. ये नहीं चाहते तो भाई अपनी ‘नीली गोली’ गटको और खुश रहो. कोई खतरा नहीं दिखेगा, कोई गजवा ए हिंद की आहट नहीं होगी. रविश कुमार और बरखा दत्त भाने लगेंगे. ईद की बधाई दो, पंडाल में नमाज़ करवाओ. नीली गोली खाओ भाई, निओ बनना तुम्हारे बस का नहीं.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति मेकिंग इंडिया उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार मेकिंग इंडिया के नहीं हैं, तथा मेकिंग इंडिया उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.