बिटिया के हाथों गोबर की संजा बनवाएं, पर्व और स्वास्थ्य दोनों बचाएं

भारतीय संस्कृति में गाय को पूजनीय माना गया है और इससे प्राप्त होने वाले गोबर का धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व है. वैज्ञानिक अनुसंधानो से यह सिद्ध हो चुका है कि गाय का गोबर एक एंटीबायोटिक्स है जो रोगजनक किटाणुओं को नष्ट करता है.

आज विश्व स्तर पर देशी गाय के गोबर की ऑनलाइन बिक्री चालू हो गई है. हम में से अधिकांश ने देखा है कि मृत्यु होने पर शव को गाय के गोबर से लिपि हुई जगह पर रखा जाता है. गाय का गोबर शव में मौजूद रोगजनक जीवाणुओ को बेअसर कर देता है. गोबर और गौमूत्र से पेपलीन आक्साइड उतपन्न होती है. जो बारिश लाने में सहायक होती है. इसी मिश्रण से इथिलीन ऑक्साइड गैस निकलती है जो ऑपरेशन थियेटर में जीवन रक्षक के रूप में उपयोगी है.

गाय के गोबर में विटामिन ई 12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. यह प्राणघातक रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है. विष प्रदार्थो को अवशोषित कर शरीर का रक्तचाप सामान्य बनाता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि गाय के गोबर में परमाणु बम हाइड्रोजन बम के प्राणघातक विकिरण को समाप्त करने का गुण है.

इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो जी ई बिगेड ने पाया कि ताजे गोबर से टीबी, मलेरिया, चिकनगुनिया के जीवाणु मर जाते हैं. जापान देश आज भी आणविक विकरण से बचने के लिए गाय के गोबर से बनी प्लेटों का उपयोग भवन निर्माण से लेकर रसोई तक इसका उपयोग लेते हैं. गाय के गोबर से संपर्क में आने से दाद खाज खुजली घाव स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं.

आओ इन महत्वों को जानकर अपनी बिटिया के हाथों से घर पर गोबर की संजा बनवाएं. पर्व और स्वास्थ्य दोनों को बचाएं.

क्या है संजा-पर्व

श्राद्ध पक्ष में मालवा-निमाड़ में मुख्य रूप से मनाया जाने वाला “संजा-पर्व” प्रमुख रूप से परिवार के स्वास्थ्य की कामना लिए होता है. यह पर्व हमें प्रकृति, स्वास्थ्य और गौमाता से जोड़ता है. इन दिनों कुँवारी कन्याओं द्वारा 15 दिनों तक घर के दरवाजे के पास गाय के गोबर और फूल पत्तियों से विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाई जाती है और प्रतिदिन शाम को बालिकाओं की टोलियाँ घर-घर जाकर आरती के साथ गीतों का गायन करती है और प्रसाद बांटती है. पर आज यह त्यौहार सिर्फ औपचारिकता मात्र बन गया है. कागजों के कालाकोट चिपकाकर पर्व की परम्परा को पिछड़ेपन की पहचान बना दी है.

विज्ञान सम्मत है संजा पर्व

गाय का ताजा गोबर और फूल पत्तियाँ, वाइरल बीमारियों से हमारी रक्षा करते हैं. परम्परा पल्लवित हो. इस हेतु हमारी टोली द्वारा संजा के सांस्कृतिक और वैज्ञानिक महत्व के साथ 40 गीतों को लेकर एक पुस्तक “संजा सोलही” संकलित की गई है.

संजा उत्सव – दिनांक 6 सितम्बर से 20 सितम्बर तक

आप भी अपने क्षेत्र में लोकसंस्कृति के इस उत्सव का वैज्ञानिक महत्व और गाय के गोबर की महत्ता को प्रसारित करें, प्रतियोगिता करवाएं. बालिकाओं को पर्व के प्रति उत्साहित करें.

किसी प्रकार के सहयोग के लिए संपर्क करें –
नंदकिशोर प्रजापति 9893777768,
विनोद पंवार 7898212728,
जगदीश कानवन9752343096,
विजय सिंह 9302047190
जितेंद्रसेन कानवन7898434444

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