जीवन से संवाद : पुल पार करने से नदी पार नहीं होती

ma jivan shaifaly poem

कुछ बातें तितलियों की मानिंद हवा में उड़ती हुई अच्छी लगती हैं, तो कुछ बातें फूल की तरह शाख पर झूलती हुई… लेकिन कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिसे डाल से तोड़ कर बालों में खोंस लेने को जी चाहता है…

उसे मैं उन दिनों से जानती हूँ जब वो एक शावक की तरह इधर-उधर कुलांचे मारता हुआ जीवन यात्रा के अनुभवों को उम्र में जोड़ता हुआ आगे बढ़ रहा था.. हालांकि फिर भी हमारी उम्र के बीच लगभग 10 साल का फर्क था… वो मुझसे 10 साल छोटा था…. लेकिन उम्र इन सालों से नहीं, अनुभव से नापी जाती है… और मैंने देखा था कि उसके भीतर की यात्रा और अनुभव ने हमारे उम्र के बीच का फासला बहुत कम कर लिया था ….

उसने मुझे एक दिन दीदी कहकर संबोधित किया तो मैंने कहा तुम दीदी मत बोलो मुझे, हम एक ही ऑफिस में काम करते हैं मैडम बोलो … और जैसी बातें तुम करते हो … आगे पीछे मुझे तुमसे इश्क़ भी हो सकता है… कर लूं तुमसे प्यार?

वो हंस दिया … बहुत कम लोग होते हैं जो बातों की तितलियों को उसी खूबसूरती के साथ देखते हैं जिस खूबसूरती के साथ प्रकृति ने उसे बनाया है…

एक दिन कहने लगा आप कितनी लम्बी लम्बी कविताएँ लिखती हैं… कविता तो दो लाइन में भी ख़त्म हो सकती है फिर किसी कवि का उदाहरण देते हुए कहने लगा “पुल पार करने से नदी पार नहीं होती” … देखा कविता यहीं ख़त्म हो जाती है… इसके आगे कुछ कहना बाकी नहीं रह जाता…

मैं उसकी बातें समझ रही थी… चाहती तो समझा सकती थी लेकिन कुछ बातें फूल की तरह होती है जो शाख पर झूलते हुए ही अच्छी लगती है… इस बार मैं हंस दी….

फिर कई साल बाद एक सुबह उसका फोन आया कहने लगा आप उम्र के मध्यांतर से गुज़र रही हैं, जीवन के सबसे सुन्दर दौर से … जैसे एक नदी अपने मध्य भाग में पूरे वेग के साथ, जीवन से भरपूर, और सबसे अधिक उर्वरा होती है… ठीक वैसे ही आपका लेखन उस दौर से गुज़र रहा है, जहां …छायावाद और रहस्यवाद नए तरीके से उजागर हुआ है … आपके अन्दर विरोध बहुत सूक्ष्म तरीके से काबिज़ हुआ है… आप उसी नदी की तरह जीवन से भरपूर और सबसे अधिक उर्वरा हैं इस समय…

उसकी उन बातों को मैंने अपने शब्दों में पिरो लिया और जाना… भीतर की यात्रा का मार्ग कभी कभी बाहर से होता हुआ भी आता है….

तभी तो मुझे उससे उस समय सच में इश्क़ हो आया जब उसने कहा कि विवाह के बाद पत्नी ने उसका नाम बदल दिया है. विवाह के बाद पत्नी का नाम बदलते तो सुना था लेकिन सच में विवाह के सही मायने तो उसीसे जाने जिसने पत्नी का दिया हुआ नाम धारण कर लिया…. मैंने How romantic कहते हुए उसकी फूलों सी महकती बातों को बालों में खोंस लिया…

ऐसे ही जीवन के घाट पर कई लोग मिल जाते हैं, जो नदी किनारे बैठ उसकी शांत लहरों और बहती ठंडी बयारों के साथ एकाकार होकर ऊर्जा लेकर लौट जाते हैं. उन्हें पता होता है कि नदी का धर्म प्यासे को पानी देना होता है… हर कोई नदी के घाट पर पाप धोने ही नहीं आता.

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