22 साल के फिलिप बुदुएकिंन द्वारा बनाया गया ऐसा खूनी गेम, जिसकी पहली शर्त होती है, खुद को प्रताड़ित करना… और इसकी गिरफ्त में है हमारे अतिसंवेदनशील बच्चे…. गेम का नाम है : blue whale game
आगे बढ़ने से पहले इस खेल को, इसके नियम को समझना ज्यादा जरूरी है.
इसे खेलने वाले व्यक्ति को कई तरह के चैलेंजेज दिये जाते हैं, जिसे 50 दिनों में पूरा कर लेना होता है. इसमें ट्रेनर 50 दिनों तक प्लेयर को नियंत्रित किये रहता है.
इसके अजीबोगरीब टास्क मसलन : हॉरर मूवी देखना, खुद को जितना ज्यादा हो सके जख्मी करना, होंठ को काटना, ब्लेड से या चाकू से हल्के हल्के हाथ की नस काटना (ताकि चैलेंज पूरी होते होते whale की शक्ल बन जाये), फिर इस कटे नस की फ़ोटो क्यूरेटर को भेजना, सबसे ऊँची बिल्डिंग से छलाँग लगाना, और अंत मे खुदकुशी कर लेना….
आखिर ऐसे गेम बनाने वाले का क्या है मनोविज्ञान? इससे इन्हें क्या मिलता है?
जब इस गेम के सूत्रधार इटली के फिलिप बुदिएकिन से एक इंटरव्यू में पूछा गया तो उसने कहा कि मैं लोगों को खुदकुशी के लिए उकसाता हूं. जो लोग अपनी जिंदगी की कद्र नहीं करते वे एक तरह से बायॉलजिकल वेस्ट यानी जैविक कचरा हैं. मैं ऐसे ही लोगों को दुनिया से बाहर भेजने का काम कर रहा हूं. ”
अब इसे मनोरोगी ना कहूँ तो क्या कहूँ?? ऐसे लोग खंडित मानस यानी (स्किजोफ्रेनिक), मनोन्मादी-अवसादी अस्वस्थता (मेनिक-डिप्रेसिव डिसआर्डर) और गंभीर मनोविकृतियां (साइकोसिस) आदि से पीड़ित होते हैं.
इस तरह के खतरनाक गेम्स बनाने के पीछे की असली वजह समाज के ऐसे वर्ग को टारगेट करना है जो अतिसंवेदनशील होते हैं, जो अपने दिमाग से नहीं अपने दिल से काम लेते है ताकि फिलिप बुदायेन जैसे लोग अपना पैसा और पावर का प्रदर्शन कर सकें साथ ही साथ ‘ऐसे खतरनाक गेम्स बनाने वालों के मन में ये भाव भी रहता है कि इस गेम के जरिए कोई तो उसके इशारे पर नाच रहा है.
अब प्रश्न यह है कि आखिर बच्चों की परवरिश में कहाँ और कैसे चूक हो गई कि आजकल के बच्चे इस गेम की गिरफ्त में आकर अपनी जान गंवाने पर आमादा हो जाते हैं. मनोरंजन से हमें पॉजिटिव ऊर्जा मिलती है, न कि अपनी ज़िंदगी खत्म कर लेने की ताकत. जहाँ तक इस गेम की बात है तो इसमें दिखाये गये हर झूठ को बच्चे सच समझ कर फैंटेसी वर्ल्ड में जीने लगते हैं. ये भूल जाते हैं कि ज़िन्दगी है तो ही खेल है और खेल का रोमांच भी.
इस विषय पर पटना सिटी की मनोवैज्ञानिक सलाहकार रश्मि सुमन कहती हैं कि आये दिन मेरे पास आने वाले बच्चे कहते हैं कि वे कंप्यूटर पर बिलियर्ड्स, स्नूकर जैसे खेल दूसरे अन्य देशों के खिलाड़ी के साथ खेलते हैं. उनका कहने का अभिप्राय यह है कि बच्चे अपनी खुद की बनाई दुनिया को ही सच मानकर जीने लगते हैं, जिससे उनका वास्तविक दुनिया से धीरे धीरे सरोकार खत्म होने लगता है.
अगर कोई बच्चा इस तरह के गेम में इन्वॉल्व है तो उसके बॉडी लैंग्वेज से इस बात का पता लग सकता है कि वह क्या कर रहा है. जैसे : बिना किसी कारण के मूड स्विंगस् का होना, चिड़चिड़ापन, छोटी छोटी बातों पर गुस्सा करना, देर रात तक जागना, अकेले रहने को अत्यधिक पसंद करना, गुमसुम खोये खोये रहना आदि.
ऊपर वर्णित बातों पर अगर गौर किया जाये तो यह कहना गलत न होगा कि इसमें वही बच्चे शिकार होते हैं जो अपनी फीलिंग्स, अपने इमोशन्स को किसीं से नही कह पाते और यही वजह है कि ऐसे बच्चों के मनमस्तिष्क को बुदाईंन जैसे लोग भाँप कर अपनी गिरफ्त में बड़ी आसानी से ले लेते हैं.
बच्चे मन के कच्चे और सच्चे होते हैं. इसीलिए हर पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ क्वांटिटी टाइम नहीं, बल्कि क्वालिटी टाइम बिताना चाहिये ताक़ि बच्चे खुद को असहाय और अकेला ना समझें. उन्हें सख्ती से डाँटने के बजाय उसके दोस्त बने. अब दोस्त बनने का मतलब यह नहीं है कि अनुशासन और छूट का अंतर ही आप भूल जायें. अपने बच्चों को ना करना सिखायें और सही तथा गलत में फर्क करना भी सिखायें. उनके दोस्त, उनके शौक को समझने की कोशिश करें.
लंबे समय तक वीडियो देखने की आदत से भी ऐसे गेम्स की लत बच्चों में लगती है, बच्चे पूरी तरह hypnotized हो जाते है, उन्हें ऐसे कामों में खूब मजा लगने लगता है जैसे: भूत के साथ डेट पर जाना, घर के किसी कोने में एलियंस से बातें करना आदि. ऐसा लगातार होते रहने से बच्चा घर के बाकी सभी सदस्यों से कटने लगता है और गेम के हर चैलेंज को एक्सेप्ट कर आखिरी लेवल को पार करने के जुनून में उसका पूरा बॉडी लैंग्वेज और बिहैवीयर पैटर्न बदल जाता है.
अगर आप बच्चे के इस बदलते लक्षण को नहीं समझ पा रहे तो फौरन किसी मनोवैज्ञानिक सलाहकार की मदद लें ताकि बच्चों में इस तरह के गेम के प्रति बढ़ते जुनून को रोक जा सके.
हालाँकि कुछ देशों ने इस तरह के गेम्स पर पाबंदी लगा दी है. हमारे भारत मे ” TRY ” भी अपने अधिकारों का पूरा प्रयोग करते हुए इस पर रोक लगा सकती है. फिलहाल ऐसे किसी पाबंदी की सूचना मिलने से तक आप इस तरह के गेम्स वेबसाइटों को ब्लॉक भी कर सकते हैं.
इस गेम में तो प्लेयर खुद का नुकसान, आत्महत्या कर लेता है. अब न जाने भविष्य में कौन से गेम वेबसाइट आयेंगे जो इससे भी ज्यादा खतरनाक हो सकते है. हो सकता है उस गेम में प्लेयर अपने किसी खास की जान लेने पर आमादा हो जाये?
“मोबाइल गेम खेलते समय बच्चों को मज़ा आता है. इससे दिमाग़ के कुछ हिस्से में इस अनुभव को बार-बार महसूस करने की चाह पैदा होती है.”
“इस तरह के गेम में जो भी टास्क दिए जाते हैं, उससे खेलने वाले की उत्सुकता बढ़ने के साथ ही यह भावना भी पैदा होती है कि ‘मैं यह करके दिखाऊंगा’. उसे यह पता ही नहीं होता कि उसका अंजाम क्या होगा.”