गुरमीत राम रहीम की गिरफ्तारी के बाद मीडिया उठा आँख मलते हुए!

अपने आपको सबसे तेज होने का दावा करने वाले न्यूज चैनल के साथ सारे चैनल बाबा राम रहीम को लेकर रोज नये खुलासे कर रहे है… कभी हनीप्रीत को लेकर तो कभी जेल में उसके कैसे दिन कट रहे है उसको लेकर ऐसे अंदाज में खबरे दिखा रहे है कि जेम्सबॉन्ड भी इन पत्रकारो की रिपोर्टिंग देखकर शर्मा जाये.

13 मई 2002 को एक लड़की (तथाकथित साध्वी) प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी को पत्र लिखती हैं, जिसमें वो अपने साथ हुए अत्याचार के बारे में बताती हैं… पत्र की कॉपी वो पंजाब हरियाणा के मुख्यमंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों को भी भेजती हैं… मामले का संज्ञान पंजाब हरियाणा का हाईकोर्ट लेता हैं और 24 सितम्बर 2002 को इस पत्र की सच्चाई जानने के लिये जांच के आदेश देता हैं… 15 साल तक जांच चलती हैं और बाबा दोषी पाया जाता हैं और आज वो जेल में है तो ये न्यूज चैनल ऐसे खुलासे कर रहें हैं मानो उन्होंने ही इस सारे मामले को उजागर किया हो.

उल्लेखनीय हैं कि उक्त साध्वी ने उस पत्र की कॉपी अनेक न्यूज एजेंसियों, मीडिया घरानों और समाचार पत्रो को भी भेजी थी… पर उस वक्त किसी भी न्यूज एजेंसी और समाचार चैनल ने उस पत्र पर कोई ध्यान नहीं दिया… किन्तु अपवाद स्वरूप सिरसा से निकलने वाले एक सांध्य दैनिक समाचारपत्र “पूरा सच” इस पत्र को अपने अख़बार में छापता हैं.

पर इस पत्र के प्रकाशन के बाद उसी दिन उस पत्रकार को उसके घर के बाहर सबके सामने खुलेआम गोलियों से भून दिया जाता हैं. तब भी ये प्रेस्टिट्यूड मीडिया और न्यूज चैनल अपने ही साथी पत्रकार की हत्या पर चुप्पी साध लेते हैं. ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने पत्र मिलने के बाद साध ली थी.

बाबा यहीं नहीं रुका वो इन 15 सालो के दौरान कई गवाहों की हत्या करवाता रहा. सबूतों को मिटाने की कोशिश करता रहा. तब ये मीडिया उसके इंटरव्यू और उसकी फिल्मों के प्रचार में लगा हुआ था. वही मीडिया और न्यूज एजेंसियां आज बाबा को लेकर रोज खुलासे कर रहीं है मानो बाबा का सारा कच्चा चिठ्ठा इन्होंने ही खोला हो.

बाबा को दोषी करार दिये जाने में भले ही 15 साल लग गये हो पर इस अपराधी को जेल पहुंचाने का सारा श्रेय मामले की जांच करने वाले अधिकारी और वो न्यायाधीश है जिन्होंने ने हर तरह के दबाव को नजरअंदाज कर सत्य का साथ दिया.

मीडिया आज भले ही जोर शोर से इस मामले को दिखा रहा हैं और तालियां बजा बजाकर खुशियां मना रहा है तो आम नागरिकों को ठीक वैसा ही महसूस हो रहा है जैसे किसी बच्चे के जन्म लेने के बाद उसमे किसी प्रकार का कोई योगदान न होने पर भी किन्नर बाद में आकर जोरशोर से तालियां बजाते हैं और शगुन के पैसे की मांग उस बच्चे के परिजन से करने लगते है!

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