कुछेक दिन पहले एक सीरीज़ लिखी थी GST पर. उस सीरीज की एक पोस्ट इन लाइनों से शुरू हुई थी – “पता नहीं मेरी पोस्ट ध्यान से पढ़ी जाती है या नहीं. खैर पिछली पोस्ट में मैंने खास लिखा था कि डिमॉनेटाइजेशन इनकम टैक्स बेस बढ़ाने के लिए आया था, GST का मुख्य उद्देश्य सेल्स टैक्स का बेस बढ़ाना है. एक भारत एक टैक्स, क्रांति, आजादी के बाद का सबसे बड़ा टैक्स सुधार ये सब दिखावा है. लोक लुभावन बातें हैं.”
पहली लाइन, “पता नहीं मेरी पोस्ट ध्यान से पढ़ी जाती है या नहीं” इसे लिखने का खास कारण इसी सीरीज़ में लिखी एक पुरानी पोस्ट थी – “इसके पहले मोदी सरकार ने डिमॉनेटिजेशन किया था जिसका घोषित उद्देश्य काले धन का खात्मा था, करप्शन पर लगाम थी. लेकिन एक सेकेंडरी कहिये या मुख्य उद्देश्य कहिये डिमॉनेटिजेशन का उद्देश्य सरकार के लिए इनकम टैक्स बेस बढ़ाना था. कैशलेस इकॉनमी इसीलिए लायी गयी क्योंकि इससे कम्पनीज़ को अपनी इनकम छिपाना मुश्किल होगा. सब कुछ सामने होगा, कंपनी का भी और किसी व्यक्ति का भी. सबका रिकॉर्ड होगा.”
लगभग यही बातें मैंने दिसंबर में लिखी पोस्ट में भी लिखी थीं – “ये सच है कि विमुद्रीकरण काले धन पर तात्कालिक रोक लगा सकता है. लेकिन भविष्य में फिर काले धन के संग्रह पर रोक नहीं लगा सकता, न ही करप्शन को रोक सकता है. जब तक विमुद्रीकरण के साथ साथ और सरकारी नीतियां लागू न हों, विमुद्रीकरण का फायदा नहीं मिलता.”
उपरोक्त पोस्ट में मैंने स्पष्ट लिखा था कि विमुद्रीकरण से करप्शन, ब्लैक मनी पर रोक नहीं लग सकती. ये सारी बातें एक बार फिर कहने का उद्देश्य यही है कि विमुद्रीकरण कभी भी करप्शन, ब्लैक मनी, आतंकी गतिविधियों, नक्सली हिंसा पर नकेल, नकली नोट पर लगाम लगाने के लिए नहीं आया था. ये सरकार का कभी उद्देश्य था भी नहीं.
अपनी एक और पोस्ट में जो नवम्बर में लिखी थी उसमे मैंने एक खास लाइन लिखी थी – “दिक्कत ये है लोग यही नहीं समझते कि काला धन है क्या, इसके कितने रूप हैं. सही काम करके कमाया गया काला धन क्या है और भ्रष्टाचार करके कमाया गया काला धन क्या है. अपराध की कमाई क्या है? लोग ये भी नहीं समझते कि कैश में काले धन का क्या अर्थ है, ज़मीन-सोने में काले धन का क्या अर्थ है? फिर लीगल और इल-लीगल काले धन को कैसे समझेंगे. लीगल काला धन कैसे कमाया और बचाया जाता है, वो तो असंभव है समझना.”
यहाँ अंतिम लाइन खास है, लीगल काला धन. अब देखिये रिश्वत, भ्रष्टाचार जो आम आदमी, सरकारी अधिकारी, बाबू करता है वो नकद में होती है. कुछ हजार, कुछ लाख, हद से हद एकाध-दो करोड़, जैसे प्रॉपर्टी खरीदने में ब्लैक में दिया पैसा.
लेकिन राजनीतिक घोटाले तो हज़ारों करोड़ के होते हैं. रक्षा सौदे, और तमाम कॉरपोरेट सौदे. जहाँ सरकारी नीति से कॉरपोरेट जगत को बेशुमार फायदा पहुँचता है. जैसे 2G घोटाला, कोयला घोटाला और हाल में प्रकाश में आया ऑगस्टा हेलीकॉप्टर घोटाला. जिसमें रकम की राशि हज़ारों करोड़ में है.
क्या हज़ारों करोड़ कैश में दिए जा सकते हैं? ये राशि केवल बैंक के जरिये स्थानांतरित हो सकती है. बैंक मतलब सरकार की निगाह, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की निगाह, फिर टैक्स, और आय का कारण साबित न हुआ तो जेल, जुरमाना.
फिर………..
ये रकम कम्पनीज़ के अकाउंट में ट्रांसफर होती है, कर्जे के बतौर. एक फर्जी कंपनी खुलती है, जिसे रिश्वत की रकम कर्जे के तौर पर ट्रांसफर कर दी जाती है. जिसे कभी लौटाना नहीं होता, या फर्जी शेयर सेल दिखाई जाती है. फर्जी कंपनी के रद्दी शेयर, लाखों रूपये एक शेयर की कीमत के भाव बेचे जाते हैं. इस तरह आयी रकम परफेक्ट लीगल है.
लीगल काला धन, जैसे द्रमुक के मारन ब्रदर्स ने एयरसेल कंपनी में किया. लोकल प्रमोटर्स को हटाकर मलेशिया की कंपनी को लाये, लोकल प्रमोटर्स को विवश किया शेयर बेच कर अलग हटने के लिए.
बदले में मलेशिया की कंपनी ने सन टीवी के शेयर ख़रीदे, फर्जी कंपनियों को लोन के रूप में हज़ारों करोड़ दिए. आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मारन ब्रदर्स को बरी कर दिया है क्योंकि काला धन अब लीगल तरीके से दिखाया गया है.
क्या मोदी सरकार या विमुद्रीकरण ऐसे काले धन पर लगाम लगा सकता है?
इसे कैसे रोका जा सकता है इसके लिए हमें योरोपीय देशों और अमेरिका के कानून जानने होंगे और उम्मीद रखनी होगी कि मोदी सरकार आज, कल, परसो नहीं पर अगले दस सालों में कंपनी एक्ट में यथोचित सुधार करेगी.
इसी उम्मीद में अपने नवम्बर के एक स्टेटस में मैंने लिखा था – “मैं मोदी सरकार के साथ इसीलिए हूँ क्योंकि वो मात्र नोटबंदी करके करप्शन पर रोक नहीं लगा रही है. उसके पास ठोस योजनाएं हैं. पूरे भारत में सभी के बैंक अकाउंट खोलना इसी योजना का अगला चरण है.”
अब जब स्वयं अरुण जेटली कह रहे हैं कि नोटबंदी का उद्देश्य काले धन का खात्मा नहीं था. रिजर्व बैंक की रिपोर्ट इंगित कर रही है कि लगभग तमाम कैश, बैंको में वापस लौट आया है. तमाम विरोधी विमुद्रीकरण के फेल हो जाने पर गीत गा रहे हैं और समर्थक भी निराश हैं… मैं संतुष्ट हूँ.
काले धन, करप्शन के पैमाने पर नोटबंदी को नहीं आँका जा सकता. इन पैमानों पर इसे और सरकार को फेल होना ही था. सरकार के पास अभी भी मौका है कि बैंको में आये कैश की सख्त जांच करवाए और जुरमाना एवं टैक्स, ब्लैक मनी जमा करवाने वालो से वसूल करे. लेकिन इनकम टैक्स डिपार्टमेंट इसमें कितना सफल होगा, कहना मुश्किल है.
हाँ ये भी सत्य है कि जनता ने जितना धैर्य, संयम अनुशासन उन दिनों दिखाया, सरकार पर पूरा भरोसा प्रकट किया, सहयोग दिया और फिर चुनाव जितवाया. उन्हें जरूर धक्का लगेगा.
स्वयं सरकार ने जिस तरह उन पचास दिनों में लगातार नियम बदले ताकि काला धन बैंको में न आ पाए, और जनता ने उसकी सजा ही भुगती. उसके लिए सरकार को भी अफ़सोस ही होगा.
मेरे दूध वाले, सोसायटी की दुकान के नौकर, सोसायटी में मकान बना रहे तमाम मजदूर वर्कर्स के बैंक अकाउंट उस समय नोटों से फुल थे. काला पैसा वापस तो आना ही था.
विमुद्रीकरण, सरकार की एक बेहद विस्तृत योजना का एक अंग था. अभी वो पिक्चर खत्म नहीं हुई. अगर सरकार कामयाब हुई तो विमुद्रीकरण से हो रही हानि, तकलीफ सभी धुल जाएँगी. मेरा पूर्ण समर्थन है मोदी सरकार को.