इस विषय पर पिछले लेख के बाद कुछ मित्र इस बात के साथ सामने आये कि जीव-हत्या और पशु-बलि की बात पर आप जो भी कहें पर हमारे यहाँ इसे करने का आदेश है तो ये हमारे लिये जरूरी हो जाता है.
उनकी इस दलील से हमें कोई एतराज़ नहीं है क्योंकि इस्लाम की तारीख में स्वयं रसूल के द्वारा कुर्बानी का जिक्र है, कुरान भी हज के मौके पर पशुओं के कुर्बानी की बात कहता है, पर मेरा आपसे कुछ और कहना है.
[जीव-हत्या और पशु-बलि : क्यों न सोच बदली जाये? भाग-1]
आपकी तारीख में, आपकी मज़हबी किताबों में जानवरों की कुर्बानी की बात है और इसलिये आप उसे मानते हैं पर आपकी उन्हीं किताबों में जानवरों के प्रति रहम, ममता और प्रेम का आदेश भी है. मगर आपके द्वारा आपकी अपनी ही मज़हबी किताबों के दूसरे पक्ष की अनदेखी करना मुझे समझ नहीं आता. ये समझ में नहीं आता कि अच्छी चीज़ों की बजाये ज़ालिमाना कृत्यों को आगे लाकर आप किस मानसिकता का प्रदर्शन करते हैं?
रसूल साहब के एक सहाबी अब्दुर्रहमान बिन अब्दुल्ला ने एक बड़ी सुंदर घटना बयान की है. वो कहते हैं कि हम लोग एक बार नबी (सल्ल०) के साथ सफर में थे, इस बीच नबी (सल्ल०) हाजत के लिये गये तब तक हमने एक चिड़िया देखी जो अपने दो बच्चों के साथ थी. हमने उसके चूज़ों को पकड़ लिया तो उसकी मां जमीन पर आकर तड़पने लगी, इसी बीच रसूल (सल्ल०) आ गये और ये मंजर देखकर बड़े सख्त नाराज़ हुये और फरमाया, किसने इस चिड़िया के बच्चों को तकलीफ दी है? इसके बच्चे को अभी वापस लौटाओ.
आपके नबी की सीरत से ही एक घटना और बयान हुई है जो अबू दाऊद में आई है. एक बार उनके कुछ सहाबियों ने चीटियों के कुछ बिलों में आग लगा दी, ये खबर जब आप तक पहुँची तो आप बहुत नाराज़ हुये और गुस्से में फरमाया, किसने इन चीटिंयों को ऐसी तकलीफ दी है? सहाबियों ने कहा, ये हरकत हमसे हुई है. तो उन्होंने गुस्से में फरमाया, आग के साथ सिवाए रब्बुल आलमीन के किसी को ये अख्तियार नहीं को वो किसी को आग में जलाये या उन्हें अजाब दे.
अबू दाऊद शरीफ में आता है कि एक बार एक सहाबी नबी की खिदमत में हाज़िर हुये, उनके हाथ में किसी परिंदे के बच्चे थे जो बेचैनी से चीख रहे थे. नबी ने उनसे पूछा, ये बच्चे कैसे हैं? सहाबी ने फरमाया, मैं एक झाड़ी के पास से गुजरा तो इन बच्चों की आवाज़ आ रही थी, तो मैं इनको निकाल लाया. इतनी देर में उन परिंदों की मां भी आकर सहाबी के सर के ऊपर बेचैनी से मंडराने लगी. रसूल साहब उस सहाबी पर नाराज़ हो गये और हुक्म दिया कि जाओ और जाकर अभी इन बच्चों को उस जगह पर छोड़ आओ जहां से लाये हो.
आपके नबी की सीरत में ऐसी एक-दो नहीं बल्कि हज़ारों मिसालें हैं जो तमाम मख्लूकों के प्रति उनकी रहमत का बयान करती है. अब्दुल्लाह बिन उमर रिवायत करते हैं कि जानवरों और परिंदों को लेकर नबी की दया इतनी ज़्यादा थी कि एक बिल्ली को तकलीफ देने वाली एक महिला के बारे में आप ने फरमाया था कि ‘यह औरत इस बिल्ली के कारण नरक में दाखिल होगी, जिसने इसे बांध दिया और न ही उसे छोड़ा ताकि वह जमीन के कीड़े-मकोड़े खा सके.
आपके नबी की सीरत से इतनी खूबसूरत चीज़ें पढ़ने के बाद मुझे समझ में नहीं आ रहा कि क्यों आप कभी अपने अंदर की इन खूबसूरत चीजों को दुनिया के सामने नहीं लाते? इन प्यारी बातों को सामने लाने की जगह जानवरों को तेज़ छुरी से जिबह करो, उसे दूसरे जानवर के सामने मत काटो जैसे वहशत और जुल्म से भरी बातों को ही सामने लाने में आपको किस गौरव का बोध होता है?
आपको क्यों अपने मज़हब के इस दूसरे सार्थक पक्ष की मार्केटिंग में दिलचस्पी नहीं है? आप कभी अपनी परम्पराओं की युगानुकूल व्याख्या करने क्यों नहीं आगे आते जबकि आपके मज़हब में इसके लिये गुंजाइशें रखी गईं हैं और इसका सबूत भी है.
एक बार नबी के पास एक बूढा गरीब अरबी बद्दू आया. आकर उसने उनसे कहा, या रसूल! हमें बकरीद का हुक्म दिया गया है. अल्लाह ने इस दिन को हमारी उम्मत के लिये ईद का दिन बनाया है पर मेरे पास तो कुर्बानी के लिये सिवाय एक दुधारू पशु के और कोई जानवर नहीं है, और ये पशु भी मुझे किसी और ने दिया है. तो क्या मैं उस दुधारू पशु की कुर्बानी कर दूं? इस पर रसूल ने फरमाया, नहीं.. फिर तू एक काम कर. अपने बाल कतरवा, नाखून तराश और मूंछे हल्की करवा, अल्लाह के नज़दीक तेरी पूरी कुर्बानी यही है.
इसका अर्थ ये है कि कुर्बानी का मतलब बेवजह की जीव-हत्या ही नहीं है और बात जब दुधारू पशु के कुर्बानी की हो फिर तो परहेज़ और भी आवश्यक है. नबी के सीरत की यह घटना कुर्बानी के कई मायने समझा देती है. एक बार सोचियेगा ज़रूर कि आपके ही एक बरगुजीदा पैगम्बर दाऊद के साथ हमकलाम होकर जबूर की तिलावत करने वाले परिंदों और जानवरों को मारकर खाने में कौन सा सबाब है?
अपने मजहब से प्यार-ममत्व और बंधुत्व की बातों को सामने लेकर आइये और मीठी तथा पशु-हिंसा रहित ईद मनाइये और ईश्वर की बनाई हर मख्लूक से प्यार कीजिये. बकर-ईद की बहुत सारी शुभकामनाएं.