आमंत्रण : अनुच्छेद 35A और जम्मू-कश्मीर की वास्तविकता को जानने का

कई दशकों से भारत में, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 बराबर चर्चा में रहा है. इसका कारण यह रहा है कि जब भी जम्मू कश्मीर राज्य और उसकी घाटी में पनपे इस्लामिक आतंकवाद और अलगाववाद की बात होती है, तो हम अनुच्छेद 370 को हटाने और उसकी वैधानिकता की बात करते रहे हैं. अब उसी क्रम में, पिछले कुछ महीनों से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35A का नाम लिया जा रहा है जिसके बारे में न तो कोई राष्ट्रवादी जानता था और न ही भारत में अब तक इसकी चर्चा मानवतावादी संगठनों, महिला उत्थान की नायिकाओं, वामपंथी बुद्धिजीवियों, दलितों के मसीहाओं और धर्मनिरपेक्षता के योद्धाओं ने की है.

आखिर में भारत के संविधान का अनुच्छेद 35A है क्या और उस पर अब जब चर्चा होने लगी है तो कश्मीर की घाटी के राजनीतिज्ञ और वहां का मुसलमान इतना तिलमिला क्यों रहा है? वो लोग तिलमिला रहे हैं और उसके बाद भी, मानवतावादी संगठन, महिला उत्थान की नायिकाएं, वामपंथी बुद्धिजीवी, दलितों के मसीहा और धर्मनिरपेक्षता के योद्धा चुप क्यों है?

भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद 35A, वह अनुच्छेद है जिसके माध्यम से जम्मू और कश्मीर की विधायिका को यह अधिकार मिलता है कि वह यह तय करे कि उस राज्य का ‘स्थायी निवासी’ कौन है और वह उनको विशेष अधिकार और सुविधाएं प्रदान करता है.

भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद, एक ऐसा अनुच्छेद है जिसको बिना भारत की संसद में चर्चा में लाये बिना, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अनुशंसा पर, राष्ट्रपति के आदेश  [The Constitution (Application to Jammu and Kashmir) Order, 1954] द्वारा 14 मई 1954 में जोड़ा गया था और इसी लिये इस 35A अनुच्छेद की वैधानिकता पर प्रश्नचिन्ह लग हुआ है.

यहां यह विडंबना है कि भारत के संविधान में इसकी उत्पत्ति, संसद की अनुशंसा से न हो कर बल्कि प्रधानमंत्री नेहरू की अनुशंसा पर हुई थी, जिसके लिए उन्होंने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 क्लास 1 का सहारा लिया था, जबकि यह अनुच्छेद 370 खुद संविधान में एक ‘अस्थायी, विशेष, संक्रमणकालीन शीर्षक’ से शामिल किया गया था.

इस अदूरदर्शी और बदनीयती से शामिल अनुच्छेद 35A के दुष्परिणामों पर तो विस्तार से फिर लिखूंगा लेकिन संक्षेप में यह समझा जा सकता है कि इसके आधार पर राज्य की विधानसभा ने यह निश्चित किया कि संविधान के लागू होने की तिथि (1954) से 10 वर्ष पूर्व से राज्य में रह रहे नागरिक ही स्थायी निवासी माने जायेंगे.

यदि कोई 1944 से पहले से रह रहा है लेकिन उसके पास स्थायी निवासी प्रमाणपत्र नहीं है, तो वह राज्य के नागरिकों के मूल अधिकारों का प्रयोग नही कर पायेंगे. अर्थात वह न सरकारी नौकरी प्राप्त कर सकता है, न वह ज़मीन खरीद सकता है और न ही मतदान कर सकता है.

आज 63 वर्ष बाद जम्मू और कश्मीर में इस अनुच्छेद 35A से कौन-कौन दोयम दर्जे का भारतीय बन कर रह गया, उस पर बाद में लिखूंगा लेकिन भारत में ही भारतीयों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने के पाप का पूरा श्रेय जवाहरलाल नेहरू को है जिन्होंने एक अस्थायी अनुच्छेद 370 के गर्भ से, संसद में बिना चर्चा कराये, अपनी अनुशंसा द्वारा राष्ट्रपति से अध्यादेश निकलवा कर अनुच्छेद 35A को जन्म दिया और भारत के कपाल पर बदनुमा दाग लगा दिया.

इसी सब पर, जम्मू कश्मीर स्टडी सेंटर ने अनुच्छेद 35A पर एक वृत्तचित्र बनाया है जिसका प्रदर्शन, शनिवार को 2 सितम्बर 2017 शाम 5 बजे ‘नेहरू मेमोरियल म्यूजियम & लाइब्रेरी’, तीन मूर्ति भवन, नई दिल्ली में होगा. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भूतपूर्व राज्यपाल जम्मू और कश्मीर श्री जगमोहन होंगे.

मेरा सभी मित्रों से आग्रह है कि इस कार्यक्रम में ज्यादा से ज्यादा लोग प्रतिभागिता करें जिससे उन्हें जहां जम्मू और कश्मीर की वास्तविकता को लेकर ज्ञानवर्धन होगा, वहीं जम्मू और कश्मीर व वहां रह रहे लोगों को लेकर मीडिया द्वारा प्रचारित नैरेशन को लेकर उठ रहे प्रश्नों का उत्तर भी मिलेगा.

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