बाढ़ और किसान, कारण और निवारण : भाग 1

हर वर्ष कुछ हद तक बाढ़ का कहर हमारे देश में मँडराता रहता है. परंतु क्या कारण है कि आजकल इसी बाढ़ के कारण जीवन अस्तव्यस्त हो जाता है. इसी प्रकार शहरों में आप देखिये तो गुजरात के बड़े बड़े शहर और मुंबई, चेन्नई जैसे शहर भी बाढ़ से बच नहीं सकते. हर वर्ष तमाम इंतजाम का दावा हर सरकार करती है परंतु वर्षा के अधिक होते-होते सभी दावे धरे के धरे रह जाते हैं.

आइए सब से पहले उस बाढ़ के कारण को समझें जो कि नदियों के किनारे पर रहने वाले लोगों को अत्यधिक प्रभावित करता है. हमारी प्रकृति ने इस देश की संरचना में उपजाऊ मिट्टी के साथ-साथ नदियां भी दी हैं. इन नदियों का उपयोग करके वर्षों या सदियों से किसान अनाज उगा कर सबका पेट भरता रहा है. सब ठीक-ठाक चल रहा था कि अनियोजित ढंग से उद्योग लगने लगे. अनियोजित इसलिए कहा जा रहा है कि अधिकांश उद्योग अपने कार्यप्रणाली में जिस भी प्रकार के द्रव्य प्रयोग में लाते हैं उसके निष्कासन का पर्याप्त प्रबंधन नहीं करते और उसे नाली में बहा दे कर अपने उत्तरदायित्व से मुक्ति पा लेते हैं.

अब गंगा नदी को ही ले लीजिये, इसका धार्मिक महत्व होने के बाद भी ऋषिकेश से लेकर बंगाल की खाड़ी तक इसके किनारे पर बड़े-बड़े उद्योग अपना प्रदूषित जल डालते रहते हैं. बहुत से स्थानों पर रासायनिक कूड़ा कर्कट भी डाल दिया जाता है जो कि जीव जंतुओं के लिए हानिकारक है. यदि आप कानून और समाज से स्तर पर बात करेंगे तो इस प्रकार के कूड़ा कर्कट को कहीं भी डालने से पहले उसका उपयुक्त उपचार करना आवश्यक है परंतु ऐसे अधिकांश स्थानों पर होता नहीं है. जिससे जल दूषित होता है इसके साथ ही जितना भी ठोस पदार्थ है वह गाद के रूप में नदी की तलहटी में बैठ जाता है जिसके कारण से नदी की गहराई जल के लिए कम हो जाती है. कई स्थानों पर तो अब नदी की गहराई 70% तक गाद इत्यादि से भर गयी है.

ऐसा नहीं है कि पहले गाद नदी को नहीं भरती थी. परंतु पहले इसमें रसायनिक और प्रदूषण की मात्रा नहीं होने के कारण यह गाद अपने आप में धरती को उपजाऊ बनाने में मदद करती थी इसलिए किसान इस गाद को बुवाई से पहले नदी से निकाल कर अपने खेतों में डाल देता था.

Green Foundation की रिपोर्ट के अनुसार अकेले कर्नाटक में 26,000 गावों में 36,000 तालाब या हौद बनाई गयी हैं जिनसे यह मिट्टी शुद्ध करके धरती में मिलाई जाती थी. अब इसमें प्रदूषण और रासायनिक मल अधिक होने के कारण इसकी शुद्धि की विधि किसानों के पास नहीं हैं तो किसान इसे करता नहीं है. दूसरे अब किसान को अपनी उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकार और विदेशी कंपनियों ने रासायनिक खाद का विकल्प दे दिया है. जिसके शीघ्र परिणामों के कारण किसान उस दुष्चक्र का शिकार हो गया है.

अब नदी में गाद भरने के बाद नदी का पानी अपने किनारों से बाहर आने लगेगा जिसके कारण किनारे के गांवों में अब जल भराव होने लगा है. इसीलिए जो आबादी प्रभावित हो रही है वह पहले से कहीं अधिक हो रही है. आपकी उपजाऊ भूमि भी कम होती जा रही है. सरकार और प्रशासन इत्यादि इस प्रकार की त्रासदी आने तक चुपचाप बैठी रहती है, उसके बाद विस्थापितों को कुछ भोजन, राहत शिविर में रहने की व्यवस्था इत्यादि करती है. कुछ भारतीय अपने दूसरे भारतीयों के लिए बढ़-चढ़ कर दान इत्यादि देंगे. इन सबका प्रयास सराहनीय है परंतु यह मात्र शीघ्रगामी परिणाम हैं. अगले वर्ष यह तबाही न हो इसके लिए इस वर्ष के सारे खर्चे, राहत सामग्री और व्यक्तियों की मेहनत किसी काम नहीं आती. यह सिलसिला बदस्तूर वर्षों से चला आ रहा है.

अब तक हमने समझा कि इस बाढ़ के कारण पहली बात तो हमारी उपजाऊ भूमि कम हो गयी, दूसरे किसान अपने घर से विस्थापित हुआ, तीसरे हर वर्ष खर्च किया पैसा मात्र उस समय की राहत सामग्री देने के काम आता है. इसका सबसे बड़ा कारण जो हमारे यानि मनुष्य निर्मित है वह है नदी की तलहटी में गाद या मिट्टी का जमना.

अब आते हैं इसके निवारण के लिए. अंतिम रूप में तो नदी की गाद की सफाई करने की ही आवश्यकता रहेगी. अब रही बात कि इस गाद का क्या करेंगे. क्योंकि यह गाद रासायनिक रूप से प्रदूषित है इसका सीधे-सीधे खेत में प्रयोग हानिकारक रहेगा तो इसका उचित शोधन करके ही यह खेत में प्रयोग की जा सकती है.

दूरगामी परिणामों के लिए अंतिम रूप में जो उद्योग उन नदियों में प्रदूषित जल डालने में लगे हैं उनको अपना जल/ मल शोधन करके डालने के लिए बाध्य किया जाये. यही सबसे अधिक कठिन कार्य रहेगा. अधिकांश उद्योग किसी न किसी राजनैतिक दल से संबन्धित होते हैं. चूंकि उनसे धन आता है कोई भी सरकार आसानी से उन पर कार्यवाही नहीं करती है. यह वही लोग हैं जो अपनी संतानों की लिए विद्यालय में जाकर कहेंगे कि हमारे बच्चों को प्रदूषण की जानकारी दीजिये और वही स्कूल बच्चों को पर्यावरण दिवस वाले दिन खूब ज़ोर-शोर से कार्यक्रम कर ज्ञान बाटेंगे पर ज़मीनी हकीकत कुछ और ही रहेगी.

इस जल पर कुछ करने के लिए हमारे ही देश में बहुत लोग काम कर रहे हैं. मेरे मित्र अवधेश कुमार उपाध्याय ने आगरा के लिए जल संवर्धन का बड़ा काम किया है और अभी भी प्रयासरत हैं. उन जैसे लोग सरकार को ऐसी नीतियाँ बनवाने में कारगर सुझाव दे सकते हैं.

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