मीडिया असल में किसी सेठ की दूकान है, जो धंधे में अधिक से अधिक लाभ के लिए वो सब कर रहा है जो बाजार कर सकता है. वो अपने नायक (?) पैदा करता है, धर्म क्षेत्र में, खेल के मैदान में, सिनेमा के रुपहले परदे पर, समाज सेवा की आड़ में, और नकली बौद्धिक को उस ऊंचाई पर ले जाता है जहां कोई सवाल ना पूछा जा सके, और फिर इन नायकों के द्वारा अपना धंधा चमकाता है.
वो झूठ, सनसनी, अंध विश्वास, प्लांटेड स्टोरी, एक पक्षीय रिपोर्टिंग, अश्लीलता, आदि-आदि करते हुए अधर्म और अराजकता फैलाने से भी बाज नहीं आ रहा और वो चंद सिक्कों के लिए समाज विरोधी और देश विरोधी होते हुए मानव विरोधी भी हो चुका है.
हम सब इसके बारे में जान चुके हैं और समझने भी लगे हैं, मगर हमने अब तक इसको लेकर किया क्या है? सिवाय इसके कि इसे प्रेस्टीट्यूट, दलाल, खबरंडी आदि-आदि नाम रख दिए. मगर क्या हम जानते नहीं कि यह कितने बेशर्म हैं.
इनका खेल अब भी जारी है. उलटे अब यह बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच कर षड्यंत्र करने लगे हैं. जो हमारे जीवन के सुख, चैन और शांति को भी भंग कर रहा है, और हम सब अपने विनाश को चुपचाप देख रहे हैं. और बहुत अधिक हुआ तो उसके फैलाये रायते को सोशल मीडिया में समेटने में प्रयासरत हैं.
शुरू-शुरू में ऐसा लगा कि सोशल मीडिया का प्रभाव उस पर पड़ रहा है मगर अब लगता है उसका तोड़ भी मीडिया ने ढूंढ लिया है. अब एक रायता फैला कर जब तक सोशल मीडिया में समेटा जा सके, दूसरा फैला दिया जाता है और हम पीछे-पीछे इधर से उधर हाँफते दौड़ते नजर आते हैं.
सवाल यह उठता है कि दस-बारह मीडिया की दूकान, पूरे देश और समाज में अपना खेल, खेल सकती हैं तो क्या हम करोड़ों जन में से दर्जन भर ऐसे सोशल मीडिया के योद्धा नहीं बना सकते जो, कोई ऐसी रणनीति बनाये कि मीडिया को निष्प्रभावित किया जा सके.
यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर नि:स्वार्थ भाव से काम करने पर नाम और दाम दोनों मिलेगा. क्या हिन्दुस्तान में प्रतिभाओं की कमी हो गई है? लगता तो कुछ ऐसा ही है, वरना इस अछूते क्षेत्र में कोई तो संगठित होकर अब तक उतर चुका होता.
हर युग के योद्धा और सुधारक का रूप-स्वरुप अपने समय के हिसाब से होता रहा है, कलयुग को भी अपने योद्धा और सुधारक का इंतज़ार है. अपने अंदर देखिये, स्वयं को टटोलिये, अपने सामर्थ्य को पहचानिये, कहीं वो आप ही तो नहीं, जिसका इंतज़ार बेसब्री से किया जा रहा है.