अशोभनीय अफवाहों पर ना जाएं, जैसा समझ रहे हैं, वैसा कुछ भी नहीं हुआ

जहाज का कप्तान बहादुर था, अपनी वीरप्पन स्टाइल वालरस मूछों के लिए भी जाना जाता था. वो दौर समुद्री डाकुओं का भी दौर था और ऐसे ही एक दिन उसके जहाज पर डाकुओं के जहाज का हमला हुआ. कप्तान चीखा, मेरी लाल कमीज़ लाओ! फ़ौरन हुक्म की तामील हुई और लाल कमीज़ पहने कप्तान, हमलावर लुटेरों से जा भिड़ा! जंग देर तक चली, कई घायल हुए, लेकिन आखिर हमलावरों को मार भगाया गया. सबने रम पी, नाच-गा कर ख़ुशी मनाई.

लेकिन हमला ना तो पहला था ना आखिरी, चुनांचे कप्तान सावधान ही रहता. चंद रोज़ ही बीते थे कि हार से खिसियाये डाकुओं ने और साथी जुटा लिए. इस बार दो-तीन हमलावर जहाज कप्तान के जहाज पर टूट पड़े और कप्तान फिर चीखा, मेरी लाल कमीज़ लाओ! लाल कमीज़ पहन कर वो फिर दुश्मनों से लड़ा और जीता. जीत के जश्न में कप्तान के लकी रेड शर्ट की भी चर्चा रही.

साथियों ने पूछा, “जनाब इस लाल कमीज़ का राज क्या है”? कप्तान बोले, “अक्सर सेनापति के घायल होते ही फौज भाग जाती है. मेरे घायल होने की स्थिति में भी तुम सब पूरे जोश से लड़ो इसलिए ये लाल कमीज़ पहनता हूँ! मैं घायल हुआ भी तो लाल कमीज़ पर लड़ाई के बीच कोई खून देख नहीं पायेगा. मनोबल बना रहेगा”.

रम के शोर शराबे में भी खुद को साथियों के लिए कुर्बान करने के इस जज़्बे को सुन कर सन्नाटा छा गया. फिर अचानक तालियाँ बजी, खूब वाह-वाह हुई. जहाज आगे बढ़ता रहा, और एक दिन वो शत्रु देश के इलाके से गुज़र रहा था. मनोबल और खून का रंग ना दिखने की बात अब सबको याद हो गई थी.

शत्रु सेना ने जब कप्तान के जहाज का झंडा देखा तो अपने इलाके से गुज़रने की उन्हें सज़ा देने की सोची. फ़ौरन दुश्मन का बेड़ा तैयार हुआ. आन की आन में पचास जंगी जहाज़ों ने कप्तान के जहाज़ को घेर लिया. जहाज़ी अपने कप्तान को जानते थे, आखिरी आदेश के लिए उन्होंने कप्तान की तरफ देखा. कप्तान फिर चीखे, “मेरा पीला पायजामा लाओ”!

अब रैली में जो राबड़ेय सीनियर का पायजामा था, वो पहले से ही पीला था, कोई बाद में नहीं हुआ था. ये जो #पों_पों_पों में जोड़कर कुछ छाम्प्दायिक जीव अशोभनीय अफवाहें फैला रहे हैं उन पर ना जाएँ. आई इंसिस्ट, वैसा कुछ भी नहीं हुआ जैसा आप समझ रहे हैं.

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