पतित धंधों को बंद करने बहन-बेटियों का रेप, भाइयों का क़त्ल हो जाने तक का इंतज़ार क्यों?

सनातनियों के समक्ष कुछ गम्भीर प्रश्न छोड़ रहे हैं राम-रहीम, रामपाल, रामवृक्ष, राधे मां, निर्मल बाबा आदि प्रकरण. इन या ऐसे लगभग सभी मामलों में एक बात कॉमन है कि कहीं भी सनातन परम्परा का ख़याल नहीं रखा गया है. नाम से लेकर रिवाज और प्रैक्टिस तक सब कुछ मनमाना है. किसी का भी सनातन ग्रंथों से कोई लेना देना नहीं है.

यह सही है कि अन्य मज़हबों की तरह एक ही खांचे में आप हिंदुत्व को नहीं समेट सकते हैं. यही इसकी सबसे बड़ी ताक़त और कमज़ोरी भी है. मोटे तौर पर गुरु शिष्य परम्परा समेत नए आश्रम, मठ मंदिर आदि के निर्माण का कोई वैदिक-पौराणिक आधार होना चाहिए.

आपको दुःख होगा जानकर की प्रातः स्मरणीय परम्पराओं को समेट कर रखने वाले भारत के अनगिनत मठ आदि जहां आज अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, वहां रातों रात खड़ा कोई आश्रम अजीब-अजीब हरकतों के साथ चमक-दमक, सुर्खी और समृद्धि हासिल कर लेता है. इन्हें मान्यता देने या फिर आयकर छूट समेत तमाम सरकारी सहूलियतें देते समय यह सिद्ध करने तो कहा ही जाय कि किस ग्रंथ के तहत वे किस सनातन परम्परा का हिस्सा हैं.

मोटे तौर पर जितने भी हालिया स्कैंडल सामने आए हैं, उनमें घर-परिवार, बाल-बच्चे वाले कारोबारी आदि ही सामने आए हैं साधुओं का वेष धर. समाज और धर्म को इन पर अंकुश लगाने आगे आना चाहिए. इसके अलावा अक्सर देखा गया है कि इनके अनुयायी समाज के ऐसे बंधु हैं, जिन्हें आज भी मुख्यधारा के सम्प्रदायों में उतनी स्वीकार्यता नहीं है, तो अपनी आध्यात्मिक प्यास को शांत करने वे विवश हो ऐसे पाखंडियों की शरण में पहुंच जाते हैं.

कहने को और अनेक बातें हैं लेकिन सूत्र में एक ही और बात कह कर इस लेख को ख़त्म करूंगा. शिरडी के साईं से लेकर कांग्रेस और अब गुरमीत सिंह तक … जो भी आपको ‘राम-रहीम’ को साथ लाने की बात करे, उससे सावधान हो जाइए. समझ जाइए की दाल काली है.

तलवार के बल पर फैले क़बीलाई यवनों की तो बात छोड़िए, सनातन भारतीय परम्परा के तहत आने वाले किसी भी सम्प्रदाय का किसी अन्य में आज तक विलय का कोई उदाहरण ज्ञात नहीं है. कभी आपने रामानंदी-निम्बार्क़ी, सन्यासी-वैरागी या फिर बुद्ध-महावीर जैसे किसी खिचड़ी सम्प्रदाय के बारे में नहीं सुना होगा. सभी सम्प्रदाय यहां एक-दूसरे के प्रति अगाध प्रेम रखते हुए भी अपने-अपने अस्तित्व के साथ सहस्राब्दियों से क़ायम हैं.

निष्कर्ष : तो आगे से कोई भी राजनीतिक या पेशेवर समूह कभी राम-रहीम को साथ लेने की बात करे तो सावधान हो जाया कीजिए. अलर्ट हो जाइएगा क्यूंकि फिर साध्वियों की तरह ही राष्ट्र, संविधान आदि के बलात्कार की पूर्व पीठिका तैयार हो रही होगी. सेवादारों की तरह ही नागरिकों को नपुंसक बनाने, पीड़िता के भाई की तरह ही न्याय का क़त्ल किए जाने की रूपरेखा बन रही होगी. ऐसे में जागरूक हो जाया कीजिए. सनातन के नाम पर चल रहे ऐसे तमाम पतित धंधों को बंद कराने के लिए बहन-बेटियों का रेप, भाइयों का क़त्ल हो जाने तक इंतज़ार मत किया कीजिए.

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