चीन का पीछे हटना, भारत की जापान और अमेरिका से सामरिक दोस्ती की सफलता का परिचायक

पिछले 2 महीने से भूटान चीन सीमा स्थित डोकलाम क्षेत्र पर जो भारत चीन की सीमा पर तनातनी चल रही थी, उस पर फिलहाल विराम लग गया है. जून के महीने में डोकलाम पर अपना अधिकार बताते हुये चीने सेना भूटान के इस क्षेत्र में घुस गई थी जिसके विरोध में भारत ने अपनी सेना को भेज कर उन्हें रोक दिया था और तब से वहां चीन और भारत की सेनाएं एक दूसरे के आमने सामने खड़ी थी.

भारत द्वारा इस त्वरित सैन्य कार्यवाही से चीन की विस्तारवादी नीति को जहां बड़ा झटका लगा था, वहीं इससे आहत चीन, बराबर भारत को चेतावनी और युद्ध की धमकी भी दे रहा था. यहां यह महत्वपूर्ण है कि चीन की इस हिमाकत को भारत के वामपंथियों, मीडिया के एक वर्ग व कांग्रेस से भी भरपूर समर्थन मिला जो भारत की जनता को चीन से युद्ध की हालत में, कड़ी हार होने की संभावना का डर दिखा रहा था.

आज जब चीन और भारत में सैनिकों के अपनी-अपनी पूर्ववर्ती पोस्टों पर पीछे जाने पर समझौता हो गया है तो यह निश्चित रूप से भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी कूटनीतिक सफलता है. इससे जहां भारत का मान विश्व में बढ़ा है, वहीं चीन की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर एक चोट पहुंची है.

यदि चीन के पिछले इतिहास को देखें तो चीन की सेना का पीछे हटना, 21वीं शताब्दी में उसकी सबसे बड़ी कूटनीतिक और सैन्य विफलता के रूप में माना जायेगा. यह घटना इस लिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन, भारतीय मीडिया और कुछ विपक्षी दलों के सहयोग के बाद भी, डोकलाम विवाद को एक सीमित युद्ध में बदल पाने में सफल नहीं हो पाया. यह चीन के पास एक सुनहरा अवसर था जब वह विश्व में अपनी दादागिरी का लोहा मनवा सकता था लेकिन चीन अपने आंकलन में कहीं बुरी तरह चूक गया.

आज डोकलाम पर हुए समझौते की छाया, इसी अक्टूबर 2017 में होने वाले चीन कम्युनिस्ट पार्टी की पांच सालाना अधिवेशन पर जरूर पड़ेगी जहां चीन के राष्ट्रपति के भविष्य के साथ पोलित ब्यूरो के सदस्य तय होने है. इस अधिवेशन के परिणाम यह तय करेंगे कि भारत चीन का टकराव कितने वर्षों बाद होगा.

इस पूरे मुद्दे पर जहां भारतीय नेतृत्व मानसिक रूप से सदृढ़ निकला है, वहीं उसकी जापान और अमेरिका से सामरिक दोस्ती का भी सफलतापूर्वक परीक्षण हो गया है. जिस तरह से जापान और अमेरिका ने कूटनीतिक रूप से और सार्वजनिक रूप से भारत के दृष्टिकोण का समर्थन किया है, वह निश्चित रूप से चीन को नर्वस कर गया और उसी का ही परिणाम है कि चीन ने युद्ध में फंसने की जगह समझौता करना ज्यादा श्रेयस्कर समझा है.

मेरा विचार है कि हमे अभी सतर्क रहना चाहिए और बहुत ज्यादा आह्लादित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह एक अस्थायी व्यवस्था है. मुझे लगता है चीन फिलहाल अपनी सीमा पर बयाना न लेकर अपने उपनिवेश राष्ट्र पाकिस्तान को आगे करेगा. वैसे भी अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी क्योंकि मेरे लिये अक्टूबर 2017 बहुत महत्वपूर्ण है.

Comments

comments

LEAVE A REPLY