बिजली की कहानी – 5 : एक नया प्रयोग – बिजली सप्लाई कम्पनी

विद्युत् अधिनियम 2003 लागू होते वक़्त बिजली वितरण कम्पनियों का सकल घाटा 23000 करोड़ रु था जो अब घाटा और कर्ज मिलकर 8 लाख करोड़ रु से अधिक हो गया है, यह चिन्ता का विषय है. विद्युत् अधिनियम 2003 की असफलताओं से हमारे नेता कोई सीख नहीं ले रहे और नौकरशाहों की सलाहों पर विद्युत् क्षेत्र में नए प्रयोग कर रहें है. ऐसा ही एक नया प्रयोग आने वाला है जिसे इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2014 कहा जाता है. पूर्व UPA सरकार के अनुभवहीन बिजली मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के द्वारा यह बिल बनावाया गया था, जिसे NDA की वर्तमान केंद्र सरकार पास करेगी.

इस बिल के प्रावधानों के अनुसार बिजली वितरण व्यवसाय को दो भागों में बाँटा जायेगा. अर्थात प्रत्येक बिजली वितरण कंपनी को दो भागों में तोड़ कर दो पृथक पृथक कम्पनियां बना दी जायेंगी – वितरण (नेटवर्क) कम्पनी तथा बिजली सप्लाई (आपूर्ति) कम्पनी. वितरण कम्पनी का कार्य सब-स्टेशनों, ट्रांसफार्मरों, लाईन, विद्युत् संयत्रों, सर्विस केबल आदि का निर्माण व रखरखाव करना तथा बिजली खरीदना व सप्लाई कम्पनी को देना होगा.

सप्लाई कम्पनी का कार्य उपभोक्ताओं को कनेक्शन देना, उनके यहाँ मीटर लगाना, मीटरों की रीडिंग लेना, बिल जारी करना, बिल बांटना, बिल का भुगतान लेना, कनेक्शन काटना और राजस्व वसूली होगा. अर्थात वित्तीय व्यवस्था सप्लाई कम्पनी के अधीन होगी. वितरण कम्पनी सरकारी होगी तथा सप्लाई कम्पनी निजी होगी. बिजली वितरण के क्षेत्र में निजीकरण की शुरुआत इन्हीं सप्लाई कम्पनियों से की जाएगी. सरकार इन निजी सप्लाई कम्पनियों को लाइसेंस प्रदान करेगी. सप्लाई कम्पनी के रूप में एक और बिचौलिया बढ़ जाएगा. सरकार का सोचना है कि ऐसा करने से देश की बिजली व्यवस्था ठीक हो जाएगी.

इस बिल को निम्नलिखित उदाहरण से समझा जा सकता है – जैसे मेरी एक दुकान है और उसमे काम बहुत बढ़ गया है, घाटा भी हो रहा है. मैं पूरा काम नहीं संभाल पा रहा और ग्राहकों को ठीक से सेवा नहीं दे पा रहा हूँ . तो मैंने दुकान में एक नौकर रखा. यह नौकर ग्राहकों को मेरा सामान दिखाने , सामान उठाने, रखने, देने का कार्य करेगा. लेकिन दुकान के गल्ले पर मै ही बैठूँगा. वित्तीय व्यवस्था मेरे हाथ में ही रहेगी क्योकि मै मालिक हूँ. लेकिन इस नए बिल में गल्ले पर बैठना व वित्तीय व्यवस्था नौकर (निजी कम्पनी ) को दी गयी है और मालिक (सरकार) सामान उठाने रखने का काम करेगा . अब नौकर ही मालिक को खर्चा देगा.

निजी सप्लाई कम्पनी अपने खर्चे और लाभ निकाल कर शेष वित्त वितरण कम्पनी को देगी, और फिर वितरण कम्पनी से ट्रांसमिशन कम्पनी तथा बिजली उत्पादन कम्पनी धनराशी प्राप्त करेंगे. अर्थात समस्त वितरण, ट्रांसमिशन तथा बिजली उत्पादन कम्पनियाँ अब निजी सप्लाई कम्पनी के रहमोकरम पर चलेंगी. शैलेन्द्र दुबे सहित देश के अनेक विद्युत् विशेषज्ञों ने बिजली मंत्री पीयूष गोयल से मिलकर उक्त बिल निरस्त किये जाने का अनुरोध किया है.


इस बिल की विस्तृत जानकारी http://www.prsindia.org/billtrack/the-electricity-amendment-bill-2014-3507/ पर प्राप्त की जा सकती है.

निजी घरानों पर निर्भरता के चलते सबको किफायती दर पर बिजली उपलब्ध कराने का दावा कामयाब नहीं हो सकता है. पारेषण क्षमता में कमी, बिचौलियों के लाभ और महंगी बिजली खरीदने को मजबूर सरकारी वितरण कम्पनियां इसमें सबसे बड़ी बाधा हैं। देश में बिजली की कुल उत्पादन क्षमता तीन लाख मेगावाट से अधिक है, जबकि अधिकतम मांग 147000 मेगावाट है फिर भी 30 करोड़ लोग बिजली से वंचित हैं। उ.प्र. जैसे अनेक प्रान्तों में लोगों को बिजली कटौती झेलनी पड़ती है.

निजी घरानों के साथ महँगी बिजली खरीद के 25-25 साल के करारों के चलते बाजार में सस्ती बिजली होते हुए भी वितरण कम्पनियाँ यह बिजली नहीं खरीद पा रही हैं. अतः बिजली आपूर्ति में निजी कंपनियों को लाइसेंस देने के बजाये ऐसे कानूनों में बदलाव ज़रूरी है जिससे बाजार में सस्ती बिजली उपलब्ध होते हुए भी वितरण कंपनियां महँगी बिजली खरीद के करार को मानने हेतु बाध्य न हों. केन्द्र और राज्य सरकारों को यह तय करना होगा कि सबको किफायती दर पर बिजली मुहैय्या कराना देश की प्राथमिकता है या निजी घरानों को बिजली आपूर्ति के लाइसेंस देना.

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