संघ की पोल खोल भाग-5 : स्वाधीनता संग्राम और संघ का योगदान

आपने अक्सर देखा होगा सोशल मीडिया पर कांग्रेसी यह पूछते मिल जाएंगे कि आज़ादी की लड़ाई में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में का क्या योगदान था? कुछ ही दिन पहले भारत छोड़ो आंदोलन की एनिवर्सरी थी, ऐसे में यह सवाल और भी प्रासंगिक हो जाता है. मैं सिलसिलेवार तरीके से आपको कुछ तथ्य बताता हूं कि RSS का कब, कहाँ और क्या योगदान रहा.

क्योंकि इतिहास की किताबों को ज्यादातर कम्युनिस्ट लेखकों और उसके बाद कांग्रेस शासित यूनिवर्सिटीज़ ने लिखा, तो यह स्वाभाविक था कि इसमें RSS के रोल को गायब कर दिया जाए. और हुआ भी वही, बल्कि RSS को अंग्रेज़ों का समर्थक और कम्युनल जामा पहनाकर इतिहास की किताबों में पेश किया गया.

[संघ की पोल खोल भाग-1 : First Hand Experience]

1939-40 की ब्रिटिश सरकार के गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार उस समय RSS की संख्या 1,50,000 स्वयंसेवकों की आंकी गई थी. सरकार ने द्वितीय विश्वयुद्ध के आरंभ में सेना में भर्ती के लिए बड़े पैमाने पर जगह निकाली. यह एक सुनहरा अवसर था अपने स्वयंसेवकों को मिलिट्री ट्रेनिंग दिलाने का ताकि बाद में जब विद्रोह करें तो अंग्रेजी सेना का डटकर मुकाबला किया जा सके.

इसमें हिन्दू महासभा सहित बाकी के हिंदू संगठनों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया जिसमें कि नाथूराम गोडसे की हिंदू राष्ट्र सेना भी शामिल थी. यह सभी अंग्रेजों से प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे, लेकिन RSS ने इस मुहिम का विरोध किया और किसी भी प्रकार से इस से जुड़ने से इंकार कर दिया.

[संघ की पोल खोल भाग-2 : संघ में जातिवाद]

इस पर अंग्रेजी हुकूमत खासा नाराज हुई और गृह मंत्रालय ने कानून की धारा Section 16 of the Criminal Law Amendment Act (XIV of 1908) के तहत RSS को बाकायदा बैन करने के लिए लिखा, लेकिन Central Province के मुख्य सचिव G.M.Trivedi ने 22 मई 1940 को ब्रिटिश सरकार को बताया कि यह संभव नहीं है क्योंकि इस से एक नया विद्रोह खड़ा हो जाएगा. इस से पूर्व 1930 में भी ब्रिटिश सरकार ने संघ को खत्म करने की नाकाम कोशिश की थी जिसके दुष्परिणाम ब्रिटिश सरकार को भुगतने पड़े थे.

इसके विपरीत संघ ने असहयोग आंदोलन में भाग ले कर ब्रिटिश सरकार को चौंका दिया. इस से अंग्रेज़ो को लगने लगा था कि हिन्दू महासभा और RSS का कोई लेना देना नहीं है. पुलिस के पाक्षिक Central Province & Berar police’s fortnightly में बाकायदा ब्रिटिश सरकार ने इस बात का उल्लेख किया कि कमज़ोर असहयोग आंदोलन में हेगडेवार और RSS के भाग लेने से नई चेतना आ गयी है और आंदोलन अब उग्र रूप से आगे बढ़ रहा है जिसे कंट्रोल करना संभव नहीं लग रहा.

[संघ की पोल खोल भाग-3 : कम्युनल संघ]

इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने चुन-चुन कर RSS के स्वयंसेवकों को जेल में डाल दिया क्योंकि अंग्रेज़ों को ज़्यादा बड़ा खतरा RSS से महसूस हो रहा था. नतीजतन सरसंघचालक और संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेगडेवार को एक साल सश्रम कारावास झेलना पड़ा. जो नमक हराम ये कहते हैं कि संघ की तरफ से कौन जेल गया उन्हें आज बताना चाहता हूँ कि भौकने से पहले अपनी आंखे खोल कर इसे पढ़ लें.

अब तक संघ सिर्फ शाखा लगाता था, शारीरिक शिक्षा, व्यायाम और अखंड भारत का पाठ पढ़ाता था, लेकिन अचानक संघ की राजनीति में सक्रियता और अंग्रेज़ों के विरुद्ध आंदोलन में देख कर ब्रिटिश सरकार चकित थी तो वहीं नेहरू-गांधी सहित कांग्रेस को यह डर सताने लगा कि कही संघ, आंदोलन और आजादी की लड़ाई का पूरा श्रेय ना ले जाये क्योंकि संघ से बड़ी तादाद में लोग जुड़ने लगे थे.

[संघ की पोल खोल भाग-4 : संघ प्रचारकों का पर्दाफाश]

जबकि यह संघ की एक सोची समझी रणनीति थी कि पहले अपना संख्याबल बढ़ाओ, लोगों को जोड़ो और फिर ब्रिटिश सरकार पर हमला करो. ब्रिटिश सरकार इस से बुरी तरह तिलमिला गयी और 15/16 दिसंबर 1932 को अपने Central Province Government Circular No.2352-2158 IV में यह आदेश जारी कर दिया कि संघ एक साम्प्रदायिक/ कम्युनल संगठन है और कोई भी सरकारी कर्मचारी इस से नहीं जुड़ सकता (संघ ने कई सरकारी कर्मचारियों को एक बेहद सुलझी हुई रणनीति के तहत जोड़ रखा था, जिसका पटाक्षेप आगे होगा).

जबकि असलियत यह थी कि ब्रिटिश सरकार संघ के राजनैतिक प्रभाव को खत्म करना चाहती थी जिसे कांग्रेस ने मौन स्वीकृति दे दी और कोई विरोध नहीं किया, तो क्या ये कांग्रेस और अंग्रेज़ों के बीच एक सेटिंग के तहत हुआ था? क्या यह कांग्रेस की अंग्रेजों के साथ मिल कर रची गयी साजिश थी? क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने ऐसा कोई प्रतिबंध कांग्रेस पर नहीं लगाया था.

7-8 मार्च 1934 को ब्रिटिश सरकार संघ को साम्प्रदायिक/ कम्युनल साबित करने में विफल रही, राघवेंद्र रॉव सदन के सभापति, सदन में एम.एस. रहमान द्वारा पूछे गए एक भी सवाल का जवाब नहीं दे पाए, और संघ के खिलाफ एक भी मुसलमान की शिकायत नहीं दिखा सके. इसके विपरीत एम.एस. रहमान व अन्य मुसलमानों ने RSS की जम कर तारीफ की. नतीजतन ब्रिटिश सरकार को अपना सर्कुलर वापस लेना पड़ा. ये ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस दोनों के लिए एक बड़ा झटका था क्योंकि अब संघ और मजबूत हो कर उभरने वाला था जो कि दोनों के लिए खतरा साबित हो सकता था.

संघ की ताकत दिन ब दिन बढ़ती जा रही थी, और साथ ही बढ़ती जा रही थी चिंता ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस की. येन केन प्रकारेण संघ को रोकना था. सो 5 अगस्त 1940 को Defence of India Rules के तहत Central Government द्वारा एक आर्डिनेंस लाया गया जिसमें आदेश दिया गया कि शाखा, व्यायाम और संघ की वर्दी पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाती है, जिसके विरोध में हजारों संघ स्वयंसेवकों ने गिरफ्तारी दी.

उन्हें जेल में कठोर यातनाएं दी गयी, आज़ादी की लड़ाई तो और भी कई संगठन लड़ रहे थे? फिर बार-बार सिर्फ संघ पर ही बैन क्यो? क्योंकि संघ सबसे प्रभावशाली हो चुका था, तो कौन थे वो लोग जो अंग्रेज़ों के साथ मिलकर संघ को खत्म करना चाहते थे? क्या सिर्फ श्रेय लेने की होड़ में संघ पर प्रतिबंध लगवाया जा रहा था? पर्दे के पीछे से कौन अंग्रेज़ों का साथ दे रहा था? क्या श्रेय लेने की होड़ में इतने अंधे हो गए थे वे लोग की आज़ादी तक से खिलवाड़ कर रहे थे?

संघ अब बढ़ चढ़ कर आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने लगा था. इसी साल अगस्त में चिमूर और अस्थि में अंग्रेज़ो के दमन के खिलाफ संघ के स्वयंसेवकों ने पुलिस थानों पर हमला बोल दिया. कांग्रेस अब बहुत पीछे छूट गयी थी और संघ आज़ादी के आंदोलन की अगुवाई कर रहा था. ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस की चिंता बढ़ने लगी थी कि कहीं संघ, सुभाष चंद्र बोस की Indian National Army (INA) के साथ मिल कर अंग्रेज़ों का तख्तापलट ना कर दे.

संघ ने राष्ट्रवादी भारतीय जो कि सरकार की आर्मी, नेवी, पोस्ट & टेलीग्राफ, रेलवे सहित अन्य प्रशासनिक सेवाओं में पदस्थ थे, पर अपनी पकड़ बेहद मजबूत कर ली थी, ताकि वक्त पड़ने पर एकदम से सब कुछ भारत के कंट्रोल में आ जाये, लेकिन इसकी खबर ब्रिटिश सरकार तक पहुँच गयी.

गृह मंत्रालय के अधिकारी जी.ए. अहमद ने अपनी 13 दिसंबर 1943 की रिपोर्ट में लिखा “the holding of all camps by any organisation whatever should be prohibited by an order under the Defence of India Rules. This will hit the RSS most, as its main activity is the organisation of camps.” (किसी भी संस्थान द्वारा शाखा लगाने पर पूर्ण प्रतिबंध हो, इस से RSS को सबसे ज़्यादा नुकसान होगा क्योंकि शाखा ही RSS की ताकत है). इसके बाद RSS की शाखाओं पर ताबड़तोड़ छापे मारे गए, हज़ारों की तादाद में स्वयंसेवकों को घर से उठा लिया गया, आज़ादी की लड़ाई के लिए एकत्र हथियार भी जप्त किये गए.

मज़े की बात ये है कि इस सब के बावजूद कांग्रेस पर ब्रिटिश सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया, क्योंकि ब्रिटिश सरकार को संघ से ज़्यादा खतरा महसूस हो रहा था कि कहीं रातों रात संघ तख्तापलट ना कर दे और बेआबरू हो कर ब्रिटिश सरकार को ना जाना पड़े. ब्रिटिश सरकार समझ चुकी थी कि अब भारत पर शासन करना संभव नहीं है और किसी भी समय अंग्रेजों को भारत से उखाड़ फेंका जा सकता है. अपनी इज़्ज़त और जान माल बचाने के उद्देश्य से अंग्रेज़ो ने कांग्रेस का इस्तेमाल किया, और कांग्रेस ने उनका बढ़ चढ़ कर साथ दिया क्योंकि कांग्रेस आज़ादी का श्रेय किसी और को नहीं देना चाहती थी.

इन तथ्यों को वामपंथी इतिहासकारों और कांग्रेस ने मिल कर अपने 70 साल के शासन में खूब दबाया, कुचला और दफन कर दिया. लेकिन कहते हैं ना सच को छुपाया नहीं जा सकता, आज सोशल मीडिया का ज़माना है हर चीज़ निकल कर बाहर आ रही है, आप सब भी असलियत लोगों तक पहुचाएं, अपने नाम की चिंता ना करें, देश हित में इसे आगे बढ़ाएं.

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