जब से सर्वोच्च न्यायालय के 9 न्यायधीशों की बेंच ने सर्वसम्मति से लोगों के निजता के अधिकार को उनका मूलभूत अधिकार बताया है, तब से सोशल मीडिया से लेकर मीडिया में लोग इस तरह झूम रहे हैं जैसे उनकी कोई लाटरी निकल आयी हो! कुछ इस लिये झूम रहे हैं, क्योंकि उनको लग रहा है कि सर्वोच्च न्यायलय में मोदी सरकार की कोई हार हो गयी है और कुछ इसलिये झूम रहे हैं क्योंकि उनको लग रहा है कि जैसे पूर्व में फ़र्ज़ीवाड़े की कमाई से ज़िन्दगी जी रहे थे, वह स्वर्णिम दिन फिर वापस आ गये हैं.
यह शायद सब इसलिये भी हुआ है क्योंकि लोगों को ब्रेकिंग न्यूज़ पर बेमौसम ब्रेक डांस करने की लाइलाज आदत पड़ चुकी है. अपने फैसले में जहाँ सर्वोच्च न्यायलय ने निजता के अधिकार को एक भारतीय का मौलिक अधिकार बताया है, वहीं पर सरकार को इस पर उचित प्रतिबन्ध लगाने से रोका भी नहीं है.
अपने फैसले में कोर्ट ने कहा है कि किसी की भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता, उसका पूर्ण अधिकार नहीं है, बल्कि वह यह संविधान में प्रदत्त निग्रह के ही अंतर्गत है, जिसकी विवेचना केस दर केस होगी (Personal liberty is not an absolute right but liable to the restriction provided in constitution which will be examined on the case to case basis).
आगे इसको और साफ करते हुये न्यायालय ने कहा है कि इस मुद्दे पर राज्य की वैधानिक चिंताओं और एक व्यक्ति के व्यक्तिगत अधिकार के बीच सावधानीपूर्वक व संवेदनशीलता से सामंजस्य बनाना होगा.
आगे, राज्य के वैधानिक उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालते हुए यह 9 न्यायाधीश कहते हैं की राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करना, अपराध को रोकना व उसका अन्वेषण करना, नवाचार को प्रोत्साहन देना व ज्ञान का प्रसार करना और समाज कल्याणकारी योजनाओं में अपव्यय को रोकना, राज्य के वैधानिक लक्ष्य होते है (requires careful and sensitive balance between individual interests and legitimate concern of the State. Legitimate aims of the State would include for instance protecting National Security, preventing and investigating crime, encouraging innovation and the spread of knowledge, and preventing dissipation of social welfare benefits).
अब जब मैं इसको बार-बार पढ़ता हूँ तो मेरी और भी नहीं समझ में आता है कि लोग किस बात से खुश हैं? सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसला जरूर दिया है लेकिन वह सिर्फ एक निबंध है जिसका कोई भी दूरगामी परिवर्तनशील परिणाम नहीं आने वाला है. इस फैसले ने जहाँ Right To Privacy की वकालत करने वालों को भंगड़ा करने की पूरी इजाज़त दी है, वहीं सरकार को उसके वैधानिक लक्ष्यों की कहानी सुनाते हुये, भंगड़ा करने वालों के हुड़दंग से निपटने के लिए लट्ठ को तेल पिलाने से रोका भी नहीं है.
हाँ एक बात ज़रूर सही है कि भारत के हरीशचंद्रों को कोई डर नहीं है, उनकी निजता का अधिकार सुरक्षित है. लेकिन मेरी चिंता यह है कि यहां तो 100 में से 99 भारतीय बेईमान है तो फिर उसकी कैसी निजता?