भारतीय रेल में सुरक्षा व्यवस्था इतनी लचर क्यों है? अच्छा रेल छोड़िए, भारत में सुरक्षा संरक्षा कहां चाक चौबंद चौकस है? हिंदुस्तानी हेलमेट लगा के काहे नहीं चलता? वही हिंदुस्तानी जब चंडीगढ़ में बाइक-स्कूटर चलाता है तो हेलमेट क्यों पहन लेता है? क्योंकि हम हिंदुस्तानी हेलमेट अपनी सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि पुलिस और चालान से बचने के लिए लगाते हैं.
वही हाल सीट बेल्ट का है. चंडीगढ़ में कोई आदमी ड्राइविंग करते हुए फोन नहीं सुनता. चंडीगढ़ पुलिस तुरंत 2000 रूपए का चालान बना देती है. किसी को नहीं बख्शती. विधायकों. मंत्रियों, नेताओं और डीजीपी के बेटों को भी नहीं बख्शती. रज़िया सुल्ताना विधायक और एडीजीपी रिजवान अहमद के लड़के की सफारी तो चंडीगढ़ पुलिस उठा के ले गयी.
[रेलवे के लिए सिर्फ़ एक आदमी से आस है, आप उसका भी इस्तीफ़ा मांग लीजिए]
दरअसल हम भारतीयों का सुरक्षा को ले के “चलता है”, “कुछ ना होता, कोई फर्क ना पड़ता”…. ये वाला रवैया है हमारा सुरक्षा संरक्षा के प्रति. आपके साथ दुर्घटना रोज़ाना नहीं होती. जीवन में एक बार होती है. सुरक्षा को नापने का पैमाना लाखों-करोड़ों में होता है.
किसी भी बड़े कारखाने में लिखा होता है कि इतने Million Man Hours में zero accident… मने अगर एक कारखाने में 1000 आदमी रोज़ाना 8 घंटे काम करें तो वहां एक दिन में 8000 man hours काम हुआ. अगर 3 शिफ्ट चलती हैं तो 24000 Man Hours… यानि कि एक साल में 87 लाख 60 हज़ार Man Hours काम हुआ और एक भी दुर्घटना नहीं हुई.
किसी भी Foreman की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा ये कि उसकी मिल में सालों साल कोई दुर्घटना न हो… वहां बोर्ड पे लिखा हो… इतने करोड़ Man Hours और Zero Accident…ऐसे में Foreman अपनी work force को समझाता है कि अगर आप सुरक्षा के प्रति सावधान नहीं रहेंगे तो बोर्ड पे हमारा रिकॉर्ड Zero से शुरू होगा…
सुरक्षा नियमों का पालन दीवानगी से होना चाहिए. सुरक्षा नियम राष्ट्रीय चरित्र दर्शाते हैं. एक-एक जान कीमती है. Youtube पे तो हम देखते हैं कि पश्चिमी देशों में लोग कुत्ते बिल्ली पक्षी की जान बचाने को अपनी जान की बाज़ी लगा देते हैं. हमारे देश में आदमी की जान की कीमत ही क्या है?
आज कोई सरकार अगर सुरक्षा नियम कड़े कर दे तो उसके बहुत जल्दी अलोकप्रिय होने का खतरा पैदा हो जाता है. नितिन गडकरी ने प्रस्ताव दिया था कि ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पे भारी जुर्माना और कैमरा और सैटेलाइट से निगरानी कर नियम तोड़ने वालों का चालान कर दिया जाए.
मोदी बोले, अबे रहन दो, इत्ता टाइट मत करो… देशवासी नाराज हो जाएंगे और 2019 में लालू को ले आएंगे.
इंग्लैंड, अमरीका और सिंगापुर में सड़क पे कूड़ा फेंक के दिखाओ न? भारत में क्यों नहीं हो सकती ये सख्ती? सूअर को नाली से निकालने की कोशिश की तो सूअर नाराज हो जाएंगे.
सुरक्षा हो या स्वच्छता, या फिर समय की पाबंदी (Punctuality), इनके प्रति ढुलमुल रवैया हमारा राष्ट्रीय चरित्र है. मूल चरित्र है. हम इन विषयों को हल्के में लेते हैं.
ऐसे में अगर खतौली और औरैया होते रहे तो किमाश्चर्यम? राष्ट्रीय चरित्र को मोदी और प्रभु बदल देंगे? रातों रात?