सड़क किनारे फुटपाथ पे बने भोजनालय में लोगों को खाना खाते देखा है? ऐसे भोजनालय बड़े शहरों महानगरों में अक्सर फुटपाथ पे दिख जाते हैं. 10 – 20 रूपए में भर पेट खाना खिला देते हैं आज भी. पानी जैसी दाल जिसे दाल नहीं बल्कि पीला पानी कहना चाहिए. साथ मे दो या 4 रोटी और भात. हो गया खाना.
आपको इस सड़कछाप भोजनालय में बैठ के किसी बड़े रेस्त्रां वाली सर्विस की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. आजकल ठीक ठाक ढाबे में भी दाल फ्राई 80 रूपए की है और एक आदमी का भोजन का बिल औसतन 250 रूपए आता है. आपको 20 रूपए वाले भोजनालय से उस AC रेस्त्रां वाली सर्विस और साफ सफाई की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.
पर हमारी दशा उस ग्राहक वाली है जो एक बार किसी बहुत महंगे अच्छे रेस्त्रां में हो आया है, वहां का तौर तरीका देख आया है. और अब यहां फुटपाथ पे सड़क किनारे उड़ती धूल धक्कड़ और भिनभिनाती मक्खियों के बीच बैठा अंग्रेजी में ऑर्डर पेल रहा है कि भैया मेनू लाओ…
भारतीय रेल की दशा तो उस फुटपाथ वाले भोजनालय से भी बदतर है. क्या आप जानते हैं कि भारतीय रेल दुनिया का सबसे सस्ती परिवहन सेवा है? और इसे चला कौन रहा है? दुनिया का सबसे निकम्मा, कामचोर, काहिल, भ्रष्ट तंत्र… जिसमें राजनेता, अफसर, कर्मचारी, ठेकेदार सब शामिल हैं.
और ये बेचारी रेल प्रतिदिन सवा दो करोड़ ऐसे लोगों को ढोती है, वो जिन्हें न उठने बैठने, खाने पीने, हगने, मूतने, थूकने, खखारने… किसी चीज़ की तमीज़ नहीं…
क्या आप जानते हैं कि आज से 3 साल पहले भारतीय रेल में 50 किलोमीटर यात्रा करने का टिकट 7 रूपए का था, जो आजकल बहुत-बहुत ज़्यादा महंगा हो के 10 रूपए का हो गया है.
वैसे अगर आप रोज़ यात्रा करते हैं तो MST (Monthly Season Ticket) बनवा के ये यात्रा आप 2 रूपए प्रतिदिन में भी कर सकते हैं. आपकी समस्या ये है कि आपको 2 रूपए में अमूल मक्खन की पूरी टिक्की के फ्राई की हुई दाल मखनी चाहिए.
आपको ये पता होना चाहिए कि विकसित देशों में रेल यात्रा, हवाई जहाज से ज़्यादा महंगी है. भारतीय रेल पिछले 70 साल से गड्ढे में गिरी हुई थी. लालू यादव, रामविलास पासवान और ममता बनर्जी ने तो रेल का एकदम खून ही चूस लिया.
आज़ाद भारत में पहली बार कोई रेल मंत्री आया जिसने रेल का कायाकल्प करना शुरू किया है. आप पूरे देश में रेल से घूम आइये, चप्पे-चप्पे पे आपको काम होता दिखेगा. रेल में सबसे ज़्यादा मौतें मानव रहित रेल क्रासिंग पे होती थीं जिसपे किसी ने ध्यान न दिया.
सुरेश प्रभु ने ये बीड़ा उठाया और 2019 से पहले एक भी मानवरहित रेलवे समपार (Unmanned railway crossing) नहीं रहेगा. युद्ध स्तर पे इनके नीचे Under pass बनाये जा रहे हैं.
रेलवे स्टेशनों का विकास हो रहा है. जहां सिंगल लाइन है वहां दोहरीकरण और व्यस्त मार्गों पे DFC मने Dedicated Freight Corridor बनाये जा रहे हैं. रेलमार्गों का विद्युतीकरण चल रहा है. स्टेशनों पे सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं.
भारतीय रेल दुनिया का सबसे खस्ताहाल, सबसे बड़ा और सबसे व्यस्त रेल नेटवर्क है जो दुनिया मे सबसे ज़्यादा यात्रियों की ढुलाई तकरीबन मुफ्त में करता है. सिर्फ एक आदमी से ही आस है… सुरेश प्रभु से… उसका भी आप इस्तीफा मांग लीजिये.