– चीफ जस्टिस सुप्रीमकोर्ट की अगुआई में 5 सदस्यों की पीठ ने 3:2 से तीन तलाक को गैर इस्लामिक करार देते हुए असंवैधानिक घोषित किया.
– जस्टिस खेर के 6 महीने के समय देने, स्थगित रखने और जस्टिस नाजिर के संवैधानिक करार देने के फैसले बेंच के मुकाबले माइनारिटी फैसले हैं, जिनका अंतिम फैसले पर कोई असर नहीं.
– तीन तलाक भारत में अब असंवैधानिक है. इसलिए इसे अपराध बनाने के लिए अगला काम हर स्थिति में कानून बनाना है. कानून बनाने के लिए पीठ के सभी 5 जजों ने कहा.
– भारत की दंड संहिता… आईपीसी के तहत इस गुनाह की सजा तय करने के लिए कानून बनाने का जिम्मा केंद्र सरकार का. जिसके लिए कोई समय सीमा नहीं दी है सर्वोच्च न्यायालय ने.
– नए कानून में तीन तलाक अपराध की दशा में तलाक देने वाले अपराधी पुरुष, कराने वाले मौलवी, सहयोग देने वाले सभी सहअभियुक्तों के लिए सजा, अपराध की धाराएं आदि भी बनानी होंगीं.
फैसले के इन बिंदुओं के बीच कुछ सवालों पर भी निगाह रखने की जरूरत है.
– कानून से अगर अपराध नहीं रुकते, तो इसका अर्थ यह नहीं कि कोई जिंदा समाज कानून तोड़ कर अपराध करने की आजादी रखता है, धार्मिक आज़ादी के हक के नीचे भी. कुरीतियों को जो अब अधार्मिक भी है, गैरकानूनी भी है…. को न होने देना, खत्म करना समाज का जिम्मा.
– केंद्र सरकार ने इस मुकदमे में सुप्रीमकोर्ट के मांगे जाने पर अपने दिए हलफनामें में साफ-साफ कहा था कि वह तीन तलाक के पक्ष में नहीं. इसलिए अब जब कानून बनाने की संवैधानिक तकनीकी जरूरत को पूरा करने की मंशा आदि पर कोई शक-सुबहा बेमानी.
“शाहबानों जैसी संवैधानिक दुर्घटना की कोई गुंजाइश नहीं”
– हिन्दू मैरेज एक्ट में आपराधिक तरीके से तलाक देने के खिलाफ कानूनी व्यवस्थाएं मौजूद हैं. नए कानून बनाने के लिए इसे आधार के तौर पर लिया जाना भी बेहतर.
– समान नागरिक कानून की तरफ बढ़ते इस फैसले से महिला अधिकारों के स्थापन की शुभ शुरुआत का स्वागत.