रेल दुर्घटनाएं बेहद दु:खद हैं, पर दुर्घटनाओं पर राजनैतिक रोटियाँ सेंकना भी उतना ही दुखद है. महज एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के आधार पर आप बुलेट ट्रेन की सोच को कटघरे में खड़ा कर देते हैं और ये भूल जाते हैं कि देश में बड़ी संख्या में रेलें बिना दुर्घटना के चलती हैं.
देश में प्रतिदिन 13 हज़ार 313 यात्री-रेलें बिना रेल-दुर्घटना के चलती हैं जिसमें प्रतिदिन 2 करोड़ 20 लाख यात्री सकुशल यात्रा करते हैं, लेकिन आप, मोदी के अंध-विरोध में, इस सकारात्मक तथ्य को नकारते हुए मात्र एक या चंद दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के आधार पर बुलेट ट्रेन की सोच का मज़ाक बनाने लगते हैं.
क्या आप ये कहना चाहते हैं कि देश के किसी हिस्से में 2G नेटवर्क किसी दिन ठीक से नहीं चला तो देश को 3G नेटवर्क के विषय में सोचना ही नहीं चाहिए? कहीं रेडियो ठीक से न चला तो देश में टेलीविज़न-सेवा नहीं आनी चाहिए थी?
कई जगहों पर ‘बेसिक’ टेलीफोन की सुविधा भी नहीं थी जब मोबाइल फोन सेवाएं लाई गयी थीं और परिणाम सामने है. विमान-सेवाएं शैशवावस्था में थीं जब देश ने देशी संचार उपग्रह लांच किया और आज हमारा अपना संचार-तंत्र है.
जून 1953 में सेम्पौर रेल-दुर्घटना हुई लेकिन उसके दो महीने के अन्दर इंडियन एयरलाइन्स ने विमान सेवाएं आरम्भ कीं जो आज आम आदमी की लगभग पहुँच में हैं.
1988 में पेरुमन रेल दुर्घटना में 108 यात्रियों की दु:खद मौत हुई लेकिन उसके तीन महीने के अन्दर देश में तीव्रगति शताब्दी एक्सप्रेस आरम्भ की गयी और आज अनेक शताब्दी/ राजधानी रेलें चलती हैं – तो ये सब गलत हो गया?
अमरीका ने जब विज्ञान की अग्रिम उपयोगिता पर व्यय आरम्भ किया तब वहां औसत जीवन-काल मात्र 47 वर्ष, पक्की सड़कें मात्र 144 मील, स्कूली छात्र मात्र 6 प्रतिशत, और ‘डॉक्टर’ कहे जाने वाले लोगों में से कॉलेज डिग्री-होल्डर केवल 10 प्रतिशत थे.
विज्ञान और तकनीकी का क्रियान्वयन ‘क्रमवार’ नहीं होता, ‘समानांतर’ में होता है. ऐसा नहीं होता कि पहले पैसेंजर रेल सेवाएं शत प्रतिशत दुरुस्त हो जाएं तभी देश तीव्र गति रेल सेवाएं आरम्भ करे; सभी आयाम समानांतर में विकसित होते हैं.
अर्थशास्त्रीय अनुमान के अनुसार समाज में मात्र 25 प्रतिशत विकास धन-निवेश से होता है, 75 प्रतिशत विकास विज्ञान-तकनीकी के प्रयत्न-त्रुटि परीक्षण या कार्यान्वयन से होता है. एक और बैल खरीद कर अधिक खेत जोतने से उपज उतनी नहीं बढ़ गयी जितनी ‘ट्रैक्टर’ के अविष्कार और उपयोग के आरम्भ से बढ़ गयी.
लेकिन अगर आप वामपंथी हैं तो ये बातें आपको समझ नहीं आएंगी, क्योंकि मोदी और भाजपा के अंध-विरोध में आप होश खो बैठे हैं. आपकी हास्यास्पद दलीलों पर मार्क्स की आत्मा भी अपनी कब्र में बेचैनी से करवट बदल रही होगी.
आंकड़ों का स्त्रोत :
(1) Indian Railways’ Statistical Publication
(2) Journal ‘Asia Net India’
(3) Rober L Piccioni’s book ‘Einstein for Everyone’