बरगद की एक विशेषता होती है, बड़े से बड़ा बरगद भी अपने घेरे के नीचे अपना बीज भी पनपने नहीं देता. वो बीज किसी पक्षी की विष्ठा से कहीं और जा गिरेगा, वहीं जीवट से जीने की कोशिश करेगा. अगर किसी बिल्डिंग के खांचे में गिरा तो वहीं पनपेगा, अपनी जड़ें जैसे-तैसे प्लास्टर में से छिद्र ढूंढकर अंदर पसारेगा और कहीं पानी का जुगाड़ कर लेगा. जैसे ही पानी मिला, सभी जगह की जड़ों को पोषण पहुंचाएगा और खुद का कद इतना बढ़ाएगा कि एक दिन बड़ी क्षति के साथ बिल्डिंग की दीवार को पाकिस्तान जैसे अलग कर देगा. बरगद का पेड़; जैसे इस्लाम! इस पर लिखा यह पुराना पोस्ट की आज रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर याद आयी इसलिए आप की सेवा में पेश कर रहा हूँ.
बरगद का पेड़ तो हम सभी बचपन से ही देखते आए हैं. जिस तरह से अपनी-अपनी परवरिश हुई है, इस पेड़ से अलग-अलग तरह से परिचित भी हैं. आइये आज इसको एक अलग नजरिए से देखते हैं, इस्लाम से तुलना करते हैं. जैसे-जैसे देखते जाएँगे, साम्य स्पष्ट होते जाएँगे. जहां आवश्यक होगा वहीं अधिक स्पष्टता के लिए टिप्पणी होगी, लेकिन ज़्यादातर जरूरत नहीं होगी, आप समझदार हैं, खुद ही समझ जाएँगे.
बरगद का पेड़ तो बहुत विशाल होता है लेकिन उसके फल छोटे से बेर से भी छोटे होते हैं. फलों के अंदर उसके बीज होते हैं जो Pin के मुंडी से भी छोटे होते हैं. कौवे तथा कुछ और पक्षी इसके फल खाते हैं और उनकी विष्ठा से इसके बीज अन्यत्र फैलते हैं. यूँ ही पेड़ से तोड़कर मिट्टी में लगाएँ तो नहीं उगता ऐसे मुझे एक अनुभवी नर्सरी वाले ने बताया था. वैसे पक्षियों के विष्ठा से प्रसार अनुभवित है.
अपार जीवट और क्षमता है इसमें. इतना छोटा सा बीज है लेकिन सही माहौल मिलने पर विशाल वृक्ष बन जाता है. शुरुवात में यह पेड़ परजीवी होता है, किसी और पेड़ या पौधे पर इसका बीज गिरता है, वहीं अपनी जड़ें बनाता है और वहीं जड़ें धरती तक पहुँचा कर स्थिर होता है, अधिक ताकतवर बनता है. इस प्रक्रिया में, जिस पेड़ या पौधे पर उसने आधार पाया है उसका जीवनरस यह आगंतुक बरगद चूस लेता है, उसका शोषण कर के उसे खत्म कर देता है, उसे रोशनी पाने नहीं देता जो सभी वनस्पतियों के लिए आवश्यक होती है. उसपर शिकंजा सा कस लेता है, इसलिए बरगद को strangler fig (strangler = गला घोंट कर मारनेवाला) भी कहा जाता है.
यह रिफ्रेन्स मूल इंग्लिश में पढ़ने लायक है, कहीं मेरे अनुवाद में कोई कमी आए तो – In a banyan that envelops a support tree the mesh of roots growing round the support tree eventually applies very considerable pressure and commonly kills the tree. Such an enveloped dead tree eventually rots away. याने बरगद जिससे आधार पाता है उसी पेड़ के इर्द गिर्द अपनी जड़ों का घना जाल फैलाता है. इन जड़ों द्वारा काफी दबाव बनाया जाता है जिससे आम तौर पर आधार देने वाला पेड़ जीवित नहीं रह सकता. ऐसे घेर कर मारे गए पेड़ अंतत: सड़-गल कर मिट जाते हैं.
समय के साथ बरगद की जटाएँ जो वास्तव में उसकी शाखाओं से निकलती जड़ें हैं, लंबी हो कर जमीन तक पहुँचती हैं, और समय के चलते इतनी पुष्ट होती हैं कि जैसे कोई और प्रजाति के पेड़ के तने बराबर की मोटी और मजबूत हो जाती हैं. बरगद का विस्तार इसी तरह होता है. एक विशेषता यह भी होती है कि इन सभी शाखा और जटाओं का केंद्रीय तने से सीधा संबंध होता है.
एक विशेषता है कि बरगद की छाया में कोई अन्य पेड़ नहीं पनपता. उसका अपना बीज भी बढ़ नहीं सकता. इस्लामी सत्ता के ऐसे ही उदाहरण याद होंगे ही.
बरगद अपने आप में एक पूर्ण व्यवस्था (ecosystem) होती है. अपने आश्रितों का पालन करती है. सहसा बरगद पे जो पक्षी आश्रय लेते हैं, पेड़ को छोड़कर दूसरे पेड़ पर घौंसला नहीं बनाते. ऐसा नहीं कि यहाँ बरगद पर बहुत सुख चैन से रह रहे हों, साँप, बिल्लियाँ, उल्लू आदि उनके बैरी होते ही हैं लेकिन उनके कारण पक्षी बरगद छोड़कर नहीं जाते. अक्सर उनकी एकता इतनी होती है कि कोलाहल और हमलों से वे अपने शत्रु को भगाने में सफल होते हैं. बरगद निवासी पक्षी उसके फल खाकर अन्यत्र बीट कर आते हैं जिस कारण अन्य जगहों में भी यह पेड़ उगने शुरू हो जाते हैं.
बीज पहले जड़ें विकसित कर लेता है उसके बाद प्रकाश में प्रकट होता है. छोटे से छोटे बरगद को भी उखाड़ने के लिए काफी ज़ोर लगाना पड़ता है, जितना बाहर दिखता है उससे कहीं गहरी उसकी जड़ें जमीन के अंदर होती हैं, और पूरा न उखाड़ा जाये तो दुबारा पनप जाता है.
चूंकि इसकी जड़ें जमीन में न केवल गहरी जाती हैं अपितु दूर तक भी जाती हैं, इसे अपने घरों के नजदीक लगाना सही नहीं. इसकी जड़ें मजबूती से नींव के भीतर जहां भी दरार मिले, वहाँ घुस जाती हैं और आप की इमारत की नींव को नुकसान पहुंचाती हैं.
इसके फल खाकर कौवे आप की इमारत पर जगह जगह बीट करेंगे जिससे इसके बीज आप के दीवारों में या जहां भी पानी के आने जाने के पाइप हों वहाँ जड़ पकड़ लेंगे. देखते ही देखते बहुत पुष्ट तथा भारी हो जाएँगे और आप की दीवारें, फर्श का सत्यानाश कर देंगे.
एक दिन बिल्डिंग का बड़ा हिस्सा ही अलग गिरा देंगे और फिर भी इनकी जड़ें बाकी हिस्से में रहेंगी जिनसे निजात पाना कष्टप्रद होगा. अपने देश का बँटवारा हुआ था, याद है ना कैसे हुआ? जो हमलावर आए थे, वे तो संख्या में उतने न थे जितने 1947 तक बन गए थे.
इसलिए निवास के आसपास बरगद उगने नहीं देना चाहिए, बड़ा हो कर आप के घर का ही नुकसान करेगा. लेकिन कुछ नासमझ लोग उसे श्रद्धा का स्थान मान कर समय रहते उखाड़ नहीं फेंकते अपितु उसकी पूजा कर के उसे सींचते रहते हैं. उससे क्या नुकसान होता है यह उन्हें पता नहीं होता. मज़ार, चंगाई सभा इत्यादि के बारे में क्या अलग से कहना पड़ेगा?
बरगद को पूजनीय माना जाता है, लेकिन यह भी माना जाता है कि इस पर भूत प्रेतों का भी निवास होता है जो काफी उपद्रवी माने जाते हैं. पूजा से किसको क्या फल मिला है पता नहीं लेकिन भूतिया पेड़ के कारण घर उजाड़ने – छोड़ देने या कौड़ियों के दाम बेचने के किस्से सुनने में आते रहते हैं, आप ने भी सुने होंगे. बाकी तुलनाएँ भी अपनी जगह.
इनकी लकड़ियाँ बहुत काम की नहीं होती. न फल मनुष्यों के काम आता है. अब यह सुनने में आ रहा है कि बरगद के फलों की पाउडर पुरुषत्व के काम आती है. धूप में छाया जरूर देता है लेकिन ऐसे कई घने पेड़ हैं जिनकी छाया शीतल भी होती है.
तो यह रही बरगद और इस्लाम से एक तुलना. उम्मीद है रोचक रही होगी. अगर आप इससे सहमत हैं तो आप से अनुरोध करूंगा कि इसे शेयर करें, ताकि जो लोग इनके बारे में भ्रांतियाँ पालते हैं उन्हें सत्यता का आंकलन हो, क्योंकि इस तुलना या उदाहरणों को वे नकार नहीं सकते.
रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर अब वामी और मुसलमान दोनों रोना-धोना बहुत मचाएंगे. आज उनकी करुण तस्वीरें सब जगह फ़ैल रही हैं. कुछ समय पहले मरे हुए बच्चे की तस्वीर को ट्रोजन हॉर्स बनाकर इस्लाम यूरोप में घुसा. वहाँ भी पहले शरणार्थियों के ऐसे ही दीन चेहरे दिखाने वाले फोटो और वीडियो बहुत आए. आज क्या हो रहा है?
वैसे ये जो इतने सारे इस्लामी देश है दुनिया में, कोई भी इस्लामी देश अपने यहाँ मुस्लिम शरणार्थी नहीं लेता. उसे हमेशा कोई गैर मुस्लिम देश में भेजता है, फिर वहाँ का वाम संचालित मीडिया उन्हें आश्रय देने के लिए अपील करता है, दिल बड़ा करने की अपील करता है. साल भर में बरगद वहाँ फैलता है और मूल पेड़ का दम घोंटना शुरू कर देता है.
मुसलमानों का सबसे ढ़ोंगी स्टेटमेंट यह होता है कि पड़ोसी भूखा हो तो तुम्हें खाना उसके साथ बांटना चाहिए. उन्हें, जॉर्डन ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों का, पाकिस्तानी मर्डरर ए मोमिन ज़िया उल हक के हाथों जो नरसंहार करवाया था, उसकी याद अवश्य दिला दें. उस कांड को Black September के नाम से जाना जाता है, गूगल कर के देखिये. 25,000 से अधिक मारे थे, नरसंहार कहलाने का हकदार है यह कांड, कभीकिसी वा / मिये को इसकी बात करते देखा है? पूर्व पाकिस्तान में मोमिन ही मोमिन का कत्ल कर रहे थे. और ये सुन्नी से सुन्नी की हत्याओं की बात कर रहा हूँ. कहाँ गये आप के एक उम्मत के दावे, झूठों?
सीरियन शरणार्थियों को कुवैत या सऊदी ने क्यों नहीं दिया आश्रय? रोहिंग्या मुसलमानों को बंगलादेश क्यों आश्रय नहीं देता? वैसे बंगलादेशी जब यहां आ बसते थे तो उनके चेहरे भी याद होंगे आप को? और आज? इस्लाम को कब तक पहचानने से इंकार करते रहेंगे?