नियम जब तक व्यावहारिक नहीं होंगे, क्या संदेश देंगे भावी पीढ़ी को

अभी हाल में एक विद्यार्थी जो CBSE के विद्यालय में पढ़ता है, मौसमी बुखार जिसे कि आजकल वायरल बुखार कहते से हैं से पीड़ित हुआ. जितने लोग भी NCR में रहते हैं वह जानते हैं कि प्रदूषण, गंदगी और कम बारिश के कारण इस मौसम में इस प्रकार की बीमारी से पीड़ित होना एक स्वाभाविक बात है.

उस विद्यार्थी के परिवार वाले अपनी भारतीय परंपरा के अनुसार गिलोय, तुलसी इत्यादि का काढ़ा पिलाते रहे. वैसे भी बहुत से चिकित्सकों का मानना है कि इस प्रकार की बीमारी अपना समय ले कर जाएगी. NCR में आपको लोग हफ्तों तो क्या महीनों तक इस के प्रकोप में रहते हैं. अंतर मात्र इतना है कि शरीर का बुखार अवश्य चला जाता है पर महीनों तक गले में खराश, खांसी इत्यादि रहती है.

इसी कारण बच्चा लगभग 15 दिनों तक विद्यालय न जा सका. इस कारण बच्चा कुछ मासिक परीक्षाएँ नहीं दे पाया. उसकी पढ़ाई की भी हानी हुई. अब जब बच्चा विद्यालय गया और उसके अपनी बीमारी के विषय में बताया. अब विद्यालय प्रशासन उससे कह रहा है कि चिकित्सक से प्रमाण पत्र ले कर आओ. अब अभिभावक इत्यादि का कहना जब हम चिकित्सक के पास गए ही नहीं तो कोई भी चिकित्सक इसका प्रमाणपत्र कैसे देगा. अब प्रशासन अपनी जगह ठीक कह रहा है. अंत में शायद एक झूठा प्रमाण पत्र बनवाना पड़े.

मेरा प्रश्न है कि क्या नियमों के आधार पर हम बच्चों को असत्य का पाठ नहीं पढ़ा रहे हैं. यही बच्चा जब स्वतंत्र भारत में अभी हाल में मनाए जा रहे स्वतन्त्रता दिवस कार्यक्रम पर क्या संदेश ले कर जाएगा. उसे तो छोड़िए उसके सब सहपाठी क्या स्वतंत्र देश में सत्य का पाठ समझ जाएँगे? उसे हम किस मुख से सत्य या अहिंसा या धर्म का पाठ पढ़ा सकते हैं.

मेरी मान्यता है कि नियम जब तक व्यावहारिक नहीं होंगे अपनी भावी पीढ़ी को क्या संदेश दे कर जाएँगे.

अब इससे मिलती एक और बात पर हम विचार करें आज कल समस्त निजी विद्यालय अपने अपने परिणामों के प्रति सजग हैं, होना भी चाहिए क्योंकि उन्हें इस बाज़ार में अपनी वरीयता बनाए रखनी है और वैसे यह उनका दायित्व है. अब आइये इसके लिए किए गए प्रयासों पर चर्चा करते हैं.

विद्यालय इसकी एक परीक्षा ले कर उनके अभिभावकों को बुलाने की धमकी देता है और अंत में बोर्ड का admit card रोक लेने की. अब प्रश्न यह है कि उच्च न्यायालय तक यह बात हो चुकी और न्यायालय यह कह चुका है कि pre board में कम अंक प्राप्त होने पर भी विद्यालय को admit card रोकने का अधिकार नहीं है. आप google पर ढूंढेगे तो ऐसे कई link मिल जाएँगे.

अब जब हम अपने विद्यार्थी से यह कहते हैं कि admit card नहीं देंगे तो वह मन ही मन मुस्कुरा कर जानता है कि विद्यालय प्रशासन असत्य बोल रहा है. इस प्रकार की घटनाओं से उसके मन पर क्या प्रभाव पड़ेगा कि जब विद्यालय ही असत्य का सहारा लेता है तो मुझे किस मुख से सत्य की उम्मीद रखता है.

मुझे विद्यालय की नीयत पर लेश मात्र भी संदेह नहीं है परंतु क्या इस प्रकार के असत्य के अतिरिक्त सत्य पर आधारित बातें कर के क्या हम अपनी युवा पीढ़ी को प्रेरित नहीं कर सकते?

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