फ़िल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ में प्रेमनाथ, जॉनी अर्थात देवानंद को हंटर से पीट रहा है और पूछ रहा है कि बता तू कौन है. जॉनी पिट रहा है पर बता नहीं रहा. तभी जीवन उसके कान में सुझाव देता है – बॉस…. गलत आदमी को पीट रहे हो… इसकी माँ को पीटो तब ये जल्दी बतायेगा.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कल (18 अगस्त 2015) एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए हर उस व्यक्ति के लिए जो सरकार का वेतन भोगी है या सरकार के रहमोकरम पर पल रहा है… ये अनिवार्य कर दिया कि वो सरकारी स्कूल, कॉलेज में अपने बच्चे पढ़ाये. हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव को इसके अनुपालन (compliance) के लिए कहा है कि अगले सत्र से इसे अनिवार्य करो.
हर वो चीज़ जो सरकारी है उसकी दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है. फिर वो चाहे शिक्षा हो या स्वास्थ्य सेवा या अन्य कोई भी सेवा. हाई कोर्ट ने आदेश तो दे दिया पर इसका पालन कराना उसके लिए बेहद मुश्किल होगा. क्योंकि ये लोग तुरंत उसका कोई हल खोज लेंगे. कोई फर्जीवाड़ा मचा देंगे.
लड़का उनका दून स्कूल में पढता रहेगा और वो किसी सरकारी स्कूल से फ़र्ज़ी सर्टिफिकेट बनवा के दे देंगे कि हाँ भैया फलाने कलेक्टर साहब का छोरा हमारे स्कूल में दर्जा 4 में पढता है.
हाई कोर्ट को चाहिए कि सभी प्राइवेट स्कूलों को डंडा चढ़ाये… तुम्हारे स्कूल में फलाने फलाने का… मने किसी अंतरी मंत्री संतरी, किसी अलक्टर कलक्टर का… किसी विधायक, प्रधान, BDC, जिला परिषद अध्यक्ष, और ख़ास तौर पर किसी सरकारी स्कूल के मास्टर, DIOS या BSA का लड़का नहीं पढ़ना चाहिए.
समझे रामगढ़ वालों… अगर किसी भी प्राइवेट स्कूल में इनमें से किसी का लड़का पढता हुआ मिल गया… तो बेटा उलटा लटका के छील देंगे… उसके बाद मान्यता रद्द करेंगे सो अलग.
पर सिर्फ हाई कोर्ट के इस फैसले से कुछ न होगा. आज देश में कुल कितने बच्चे हैं और कितने सरकारी स्कूल हैं? सब सरकारी कर्मी अगर वहाँ बच्चा भेज भी दें तो बच्चा बैठेगा कहाँ?
सरकारों को शिक्षा में बहुत ज़्यादा निवेश करना पडेगा. सरकार को चाहिए कि वो एक-एक कर बड़े प्राइवेट स्कूलों का ज़बरदस्ती अधिग्रहण करना शुरू करे. उन्हें कायदे से चलवाए. सबसे पहले शिक्षा में घुसे इस मगरमच्छ को मारो. फिर सरकारी मशीनरी को दुरुस्त करो.
और सिर्फ शिक्षा ही नहीं स्वास्थ्य में भी यही रवैया चाहिए. कराओ साले… तुम भी इसी सरकारी अस्पताल में कराओ इलाज अपनी बीबी का.
इसके अलावा हर मंत्री संत्री कर्मचारी के घर से जनेटर बैटरी इन्वर्टर उठा और कूंच के फेक दो. अब बैठ साले अंधेरे में. कुछ दिन तू भी ढिबरी जला और तुम्हारी बीबी भी बिना पंखा के गर्मी में दिन काटे… तब तुमको समझ आएगा कि बिना बत्ती 18 घंटे के पावर कट में कैसे कटता है जीवन.
भारत में एक जुत्तम परेड और कम्बल परेड क्रांति की ज़रूरत है.