सालों से संघ पर इल्जाम लगाया जाता है कि 1942 के अंग्रेजो, भारत छोड़ो आंदोलन में संघ ने भाग नहीं लिया. सावरकर के माफीनामे, अटल जी की गवाही पर संघ को कठघरे में खड़ा किया जाता है. भले इन आरोपों में कोई सच्चाई न हो, लेकिन ये संघ, बीजेपी की एक छवि निर्मित करने में सहयोग देते हैं. सालों बाद सच धूमिल होता है, छवि रह जाती है.
गोरखपुर में हुई मौतें अब फेसबुक पर जगह नहीं पा रही, चंडीगढ़ के बराला द्वारा स्टाकिंग, सेना के जवान द्वारा सोशल मीडिया पर खाने की क्वालिटी को लेकर वीडियो जारी करना, ऐसे तमाम के तमाम मुद्दे स्मृति से कुछ ही दिनों में गायब होने लगते हैं. उनकी जगह नए मुद्दे ले लेते हैं. बहस चलती रहती है, मुद्दे बदलते रहते हैं.
सच्चाई क्या थी, ये अहम् नहीं रह जाता. महत्वपूर्ण है हर मुद्दे के बाद बनने वाली छवि. दो साल के बाद चुनावो में सरकार किस छवि के साथ आएगी ?
अकारण नहीं है कि लगभग शुरू से, 2014 से विरोधियों का ऐसा प्रलाप है कि मोदी सरकार अम्बानी-अडानी की सरकार है. दस लाख के सूट की बात यों ही नहीं उड़ी, राहुल गाँधी ने मोदी सरकार को सूट-बूट की सरकार यूं ही नहीं कहा.
सच हो न हो, लेकिन तमाम विपक्ष, उsके पिट्ठू, मोदी और उनकी सरकार की यही छवि जनता में उतारना चाहते हैं. मोदी सरकार शिक्षा विरोधी है, उसने शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में बजट आधा कर दिया. सरकार को पढ़ी-लिखी जनता नहीं पसंद. ये संघ का एजेंडा है. ये सरकार विज्ञान विरोधी है.
याद कीजिये स्वच्छता अभियान का कैसे-कैसे विरोध हुआ, गैस सब्सिडी का कैसे मज़ाक उड़ा. विमुद्रीकरण के समय कैसी-कैसी अफवाहें फैली कि बीजेपी नेताओं, कारपोरेट को पहले ही पता था, कैसे बिहार-बंगाल में ज़मीन खरीदी गयी.
विमुद्रीकरण पर पूरा जोर लाइन में लगने के दौरान मौतों पर रहा, तो GST में जोर लोगों की छूटती नौकरी पर है… लगातार अच्छे दिनों का मज़ाक, 15 लाख बैंक अकाउंट में जमा न होने का उलाहना.
पड़ोसी देशों से अच्छे सम्बन्ध न होने की दुहाई, कश्मीर में भड़की हिंसा, नवाज़ शरीफ की माँ के लिए साड़ी… ये सब हरकतें विरोध नहीं, सरकार का परसेप्शन जनता के मस्तिष्क में बिठाने के लिए है.
अवार्ड वापसी अभियान इसी की कड़ी था. पीछे हामिद अंसारी इसी छवि को और पुख्ता करने के लिए कह गए कि मुस्लमान भयभीत हैं. देश में असहिष्णुता का माहौल है. सोनिया गाँधी का संसद में भाषण, लालू-तेजस्वी के हालिया भाषण सब इसी छवि बनाने की कवायद की कड़ी हैं.
सोशल मीडिया पर लिखने वाले तमाम मोदी विरोधी कथित बुद्धिजीवी लोगों की पोस्ट को इसी छवि बनाने की कोशिशों की छवि के रूप में देखिये और आने वाले कमेंट्स में इस कोशिश का असर देखिये.
तमाम मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया आज इसी छवि का परिणाम है, जो आज हर तरह से मोदी सरकार के खिलाफ है… ऐसे में हमारा क्या कर्तव्य है?