जब इधर एक सर्वे में अब तक के सबसे बेहतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घोषित किया जा चुका है उसके बाद तो होश में आना चाहिए इस देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस को. उसकी लाचारी, उसकी राजशाही, उसकी आकंठ डूबी परिवारभक्ति ने देश में लगभग विकल्पहीनता का दौर लाकर खड़ा कर दिया है. यह किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए शुभ नहीं होता. तो ऐसा अशुभ कांग्रेस क्यों कर रही है?
इन सब के बावजूद जब मैं कर्नाटक में जा रहे युवराज के स्वागत में लगे इस पोस्टर को देखता हूँ तो हैरत नहीं होती, कांग्रेस पर तरस आता है. इस पोस्टर से आखिर कांग्रेस क्या जताना चाह रही है? क्या ये मानसिक रूप से विकलांगता नहीं है? हालांकि कांग्रेस की ओर से काफी तर्क दिए जा सकते हैं. किन्तु क्या इससे लाभ होगा? वो खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी चलाते हुए मौका देती है विरोधी पार्टी को कि लीजिये हजम कर लीजिये हमें ताकि देश में बस इतिहास बनकर रह जाएं. दिमागी तौर पर इतनी लाचारी? इतनी चरणपकड़ मानसिकता?
इस पोस्टर से दो चीजें समझ में आती है, एक तो ये कि कांग्रेस को अपने युवराज पर विश्वास नहीं है कि अभी भी उसे इंदिरा गांधी से काम चलाना पड़ रहा है. दूसरा यह कि वो राहुल को इसी पोस्टर की तरह समझती है? बताइये राहुल गांधी के आगमन का स्वागत दादी की गोद में बैठे बालक राहुल के चित्र के साथ. यकीन कीजिये आज का दौर आज के नेताओं पर अधिक टिका है अन्यथा बेहतर प्रधानमंत्री में मोदी नंबर वन नहीं आते. ये सिर्फ सर्वे में दर्शा दिया गया इस नाते मैं नहीं लिख रहा, बल्कि दिवालिया होती एक सबसे बड़ी पार्टी की दयनीय हालत को देखकर लिखने में आया है.
मैं सोचता हूँ कोई एक ऐसा बन्दा नहीं जो उठकर अपनी पार्टी को गांधीपॉवर से बचा ले? पूरा यूपीए बिछा रहता है. चलिए कांग्रेस की सहयोगी दलों को छोड़ दें मगर खुद कांग्रेस में नहीं दिखता कि उनका उनके सामने ही जानते-बूझते पतन हो रहा है? ये सारे कांग्रेसी जानते हैं किन्तु कहते नहीं, कि वो जिस चहरे के साथ पार्टी चुनावी रण में होंगे उसमे किसी भी प्रकार से ताकत नहीं कि वो दुनिया में लोकप्रिय होते जा रहे मोदी का मुकाबला कर सके.
मोदी को मोदी बनाने में कांग्रेस का बहुत बड़ा योगदान है और लगातार वो इस योग को डबल करती जा रही है. राहुल के चेहरे से कोई समस्या नहीं है, किन्तु क्या देश में इस चहरे से जन जन को प्रभावित कर सकने की आभा प्रकट हो सकती है? हर बार मोदी मोदी मोदी का जाप और विरोध करती हुई कांग्रेस क्या यह सोचती है कि लोग मोदी के खिलाफ हो जाएंगे?
नहीं. बदलना होगा उसे. उसे अरविन्द केजरीवाल जैसे नेताओं को पैदा करना होगा जिसने समय को भांप लिया है. हालांकि केजरीवाल ने भी इसे तब भांपा जब लगभग लगभग उनकी राजनीति में दीमक पैदा हो गए, फिर भी भले उन्हें देशव्यापी सफलता न मिले मगर अपने राज्य को बचा सकने की संभावनाएं दृढ़ बना सकते है.
भाजपा की जीतें कहीं विकल्पहीनता के नाते देश के गले न चढ़ जाए. मजबूत विपक्ष का होना आवश्यक है. और ये कहने में संकोच नहीं कि इस दौर में विपक्ष के पास कोई नब्ज पहचानने वाला नेता शेष नहीं है. सब भाजपा की अक्लमंदी के आगे नतमस्तक होकर उसके ही जाल में फंस कर नृत्य करने के लिए मजबूर हैं और मज़ा ये कि उन्हें पता ही नहीं चल रहा कि वो जो ठुमका लगा रहे हैं उसकी कोरियोग्राफर भाजपा ही है.
अंत में ओशो की बात – जिनको बचपन से ही सब तरह की सुरक्षा मिली हो और संघर्ष का कोई मौका न मिला हो, चुनौती न मिली हो वहां प्रतिभाएं पैदा नहीं होती.
– अमिताभ श्री