जूडो की एक खासियत है. आप को प्रतिस्पर्धी की ताकत का उपयोग कर के उसे मात देनी होती है. वो ताकत से अधिक कौशल का खेल है. कौशल की बात करें तो एक अलग उदाहरण दूँगा – क्रिकेट में लेट कट और लेग ग्लान्स. तेज गेंद को केवल दिशा देनी होती है. लेकिन यह भी देखना होता है कि उछलती गेंद बिलकुल all along the ground चली जाये. बहुत कौशल के शॉट्स हैं, गेंद को जज करने और कांटैक्ट में ज़रा भी चूके तो कैच उड़ना तय है.
जूडो का भी कुछ ऐसा ही है, आप में उतनी मानसिक क्षमता, अनुभव और शारीरिक गतिविधि में चापल्य आवश्यक है. सामने वाले का वज़न, शारीरिक गतिविधि का अंदाज लगाकर आप को उसे मात देनी होती है.
जूडो की प्रतियोगिताएं होती हैं लेकिन मूल रूप से यह खेल नहीं अपितु नि:शस्त्र युद्ध है. इसमें अक्सर यह होता है कि दो में से एक जूडो जानता है, दूसरा नहीं जानता. इसलिए जूडो का जानकार अपने प्रतिपक्षी के बलस्थानों को ही उसकी कमजोरी बनाकर उसे मात देता है. ये दो विभिन्न प्रणालियों का सामना है और जूडो का जानकार जानता है कि आप क्या करोगे, आप नहीं जानते कि वो क्या करेगा और आप ही ही ताकतों को वो कैसे आप के विरुद्ध प्रयोग करेगा.
वामपंथी अक्सर वही करता है. वो हिंदुओं के बारे में जानता है और आम पढ़ा-लिखा हिन्दू वामपंथ के बारे में बहुत कम जानता है. जैसे पढ़े-लिखे हिन्दू को उसकी पढ़ाई का वास्ता देकर कोई उसके पुराणों के बारे में तंज़ मारे कि आप के जैसा इतना पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी ऐसी बातों में विश्वास करता है? हद है, आप से तो ये उम्मीद नहीं थी !
अगर ये कोई सीनियर हो या बराबरी का व्यक्ति दस वामियों के भीड़ में ये तंज़ मारे और सब हंसने लगें तो हिन्दू वहीं शर्मिंदा हो जाता है. प्रोसेस इसी तरह चलाया जाता है, जितना वो झुँझलाता है उसके और मज़े लिए जाते हैं.
अब एक और बात बताते हैं. जूडो सीखने वाले नौसिखिये अक्सर डींग मारते पाये जाएँगे कि जूडो में तो सशस्त्र व्यक्ति को भी पलक झपकते नि:शस्त्र किया जाता है. कोई ब्लैक बेल्ट यह नहीं कहेगा. ऐसा नहीं कि नि:शस्त्र नहीं किया जाता, वो बात सच है, लेकिन उसके नियम व शर्तें (T&C) होती हैं.
सशस्त्र व्यक्ति से अक्सर पंगा नहीं लिया जाता, जान बचाकर निकल जाने में ही भलाई है. बिलकुल चारा न हो तो उससे करीब जाकर कोई दांव चलाने होते हैं. लेकिन यह किन्तु-परंतु वाला मामला है, और ज़्यादातर जान बचाने पर ही ज़ोर दिया जाता है. पिस्तौल वगैरह हो तो विशेष रूप से.
इसका वामपंथियों से क्या संबंध है तो यह कहूँगा कि जिस तरह एक पढ़े-लिखे हिन्दू को पुराण के लेकर अपमानित किया जाता है उसी तरह कोई वामी कुरान पढ़कर किसी पढ़े-लिखे मुसलमान से नहीं उलझता.
बाकी आप समझदार हैं. काम की बात कहीं से भी सीखनी चाहिए.