5 वर्ष पूर्व गोरखपुर से एक पहचान वाले का फ़ोन आया कि यहाँ से डॉक्टर ने SGPGI रेफर किया है, मदद कीजिये आ रहे हैं एम्बुलेंस से लखनऊ. 5 घण्टे बाद वो लोग PGI पहुंचे उधर हमारे डॉक्टर मित्र ने कहा जितने मिनट ये महिला जी रही है उतना शुक्र मनाओ, लेकिन कष्ट झेलने से अच्छा है कि मर जाने की कामना करो और शाम तक वो मर चुकी थी. केस था डिलीवरी का, गोरखपुर के डॉक्टर ने सीधे पेट चीर दिया था जबकि महिला डायबिटिक थी और उस समय शुगर लेवल 500 के पास था. 4 दिन में उसका लीवर, किडनी आदि सब फेल करा के 3 लाख वसूल के PGI रेफर कर दिया अधमरी महिला को.
एक बार एक और रिश्तेदार का फ़ोन आया कि दिल में दिक्कत है और 2 साल से गोरखपुर में इलाज करा रहा हूँ… बहुत दिक्कत है, दर्द झेला नहीं जाता है. हमने तुरंत SGPGI आ जाने को कहा. वो आये और पूरा दिन तमाम जांच होने के बाद दिक्कत निकला गैस्ट्रो का. इलाज था 50 पैसे की omiperazole की एक टेबलेट रोज 30 दिन तक. उस दिन शाम को रिश्तेदार ने 2 साल के बाद भरपेट टेस्टी खाना खाया… 2 लाख रूपए फुंकने से बच गए… किस्मत अच्छी थी.
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अगर कोई पूर्वांचल के संत कबीर नगर, महराजगंज, सिद्धार्थ नगर, देवरिया, कुशीनगर आदि का लखनऊ में रहता है तो उसको मालूम होगा कि कैसे-कैसे मरीज़ लखनऊ आते हैं और ये लोग मदद करते हैं…
किसी जमाने में गोरखपुर में सिर्फ BRD मेडिकल कॉलेज, सदर हस्पताल और रेलवे का हस्पताल था. आम लोग BRD या सदर में इलाज कराते थे. 1978 में आए JE यानी जापानी इंसेफलाइटिसजिस के लिए इसमें से कोई हस्पताल तैयार नहीं था. शुरू के 10 वर्षों में JE ने प्रति वर्ष 10000 के ऊपर लोगों को अपना शिकार बनाया. 1986 आते-आते इसने विकराल रूप ले लिया. इस कारण से बच्चों की बीमारी के इलाज़ के लिए काफी डॉक्टर प्राइवेट क्लिनिक खोल के इलाज करने लगे.
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इस बीच काफी राजनैतिक घटनाएं घटीं बिहार और UP में, जिसके कारण JE पीछे रह गया और कभी इस पर कोई शोर नहीं मचा. 1990 में बिहार में आया लालू यादव का शासन… फिरौती, अपहरण और लूट का शासन… व्यापारियों के साथ उधर के डॉक्टरों से भी अपहरण और फिरौती का धंधा फलने-फूलने लगा.
1992 से बिहार से डॉक्टरों का पलायन शुरू हो गया. उनका मनपसंद अड्डा बना गोरखपुर. कई कारण थे… कलकत्ता या किसी और बड़े शहर में अन्य हस्पतालों और बड़े डॉक्टर के बीच खप जाने का डर, अपने बंधे-बँधाए मरीजों और जमे-जमाए काम के उखड़ने के डर ने उनको इन जगहों पर नहीं जाने दिया.
बिहार के हर जगह से गोरखपुर का अच्छा आने-जाने का रेल का साधन भी था जिससे ये मरीज आ सकते थे… तो न सिर्फ पश्चिमी बिहार के डॉक्टर बल्कि दूर अररिया और बक्सर, नवादा, बेगूसराय के डॉक्टर लोगों ने भी ठिकाना बनाया गोरखपुर को… यहाँ तक की गोरखपुर से कुछ ही दूर शहाबुद्दीन के सिवान के एकमा जैसे कस्बे के डॉक्टर भी पलायन करके गोरखपुर आ गए.
उस समय इन डॉक्टरों की क्लीनिंक का नाम होता था, उदाहरण के लिए… Sinha Heart Centre, Dr. S. K. Sinha (समस्तीपुर वाले) ह्रदय रोग विशेषज्ञ. या फिर वैशाली क्लीनिक, Dr. S. N. Singh (दरभंगा मेडिकल कॉलेज) बाल रोग विशेषज्ञ…
इस तरह मात्र दो से तीन वर्षों में गोरखपुर बिहार से पलायन किये डॉक्टरों से भर गया… यहाँ तक कि RMRI, पटना के काफी डॉक्टर भाग के गोरखपुर आ गए. इन डॉक्टरों के एजेंट उधर बिहार में ही होते थे जो कुछ पैसों के कमीशन के बदले मरीज गोरखपुर भेज देते थे.
इसके बाद UP के डॉक्टरों जो BHU, BRD, KGMU आदि से निकलते थे, ने इन बिहार से आये मरीज़ों और पूर्वी उत्तर प्रदेश के मरीजों से माल बनाने के लालच में, उन्होंने भी गोरखपुर को अड्डा बनाया…. गोरखपुर की कोई गली न बची जहाँ एक क्लिनिक, या नर्सिंग होम, या हॉस्पिटल न खुल गया हो, कोई केमिस्ट नहीं बचा जिसने डॉक्टरों से कॉन्ट्रैक्ट न कर लिया हो.
हर गली के 200 मीटर पर पैथोलॉजी या फिर सैंपल कलेक्शन सेंटर खुल गया… 1996 आते-आते गोरखपुर, पटना, बनारस, लखनऊ से बड़ा मेडिकल हब बन चुका था… कई डॉक्टरों ने गोरखपुर से दूर खलीलाबाद, फाजिलनगर, महराजगंज आदि में ब्रांच हॉस्पिटल भी खोल लिया था… दवा कम्पनियाँ गोरखपुर में स्पेशल हेडक्वार्टर बना चुकी थीं.
बिहार के कम से कम 25 जिलों और पूर्वी उत्तर प्रदेश के 25 जिलों का मरीज़ों का आंकड़ा… डॉक्टर, केमिस्ट, पैथोलॉजी, दवा कंपनी का गठजोड़… कुल मिलकर गोरखपुर के मरीज़ सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी बन चुके थे… मरीज़ मरते रहे… डॉक्टर, केमिस्ट, पैथोलॉजी, दवा कंपनी मस्त चाँदी काटती रहीं… आज गोरखपुर में 60% के ऊपर बिहार से पलायित डॉक्टर हैं और आने वाले मरीज़ों में सबसे ज्यादा गोपालगंज, सिवान, छपरा, चम्पारण, नरकटियागंज, बेतिया के मरीज होते हैं.
बिहार से फिसल कर गोरखपुर आ गये डॉक्टर के कारण बिहार के अपहरण और फिरौती उद्योग को झटका लगा तो वहां के बड़े अपराधियों… सूरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला, शहाबुद्दीन, तस्लीमुद्दीन, पप्पू यादव आदि ने गोरखपुर के लोकल गुण्डों की मदद से गोरखपुर के कई डॉक्टरों पर ताबड़ तोड़ हमले, हत्या और अपहरण किये… डॉक्टरों ने इन गुण्डों को हफ्ता देना चालू कर दिया… अमीर मरीज़ लुटते रहे, गरीब मरीज़ों के घर बिकने लगे क्योंकि हफ्ता वसूली का पैसा डॉक्टर मरीज़ों से ही वसूल कर रहे थे…
फिर 1998 में आयी कल्याण सिंह सरकार जो इन गुण्डों के पीछे पड़ गई… बड़े गुण्डे श्रीपत ढाड़ी, आनंद पांडेय, श्रीप्रकाश शुक्ल, बबलू सिंह समेत 100 के ऊपर मारे गए… बाकी जान बचाकर UP छोड़कर भाग गए… गुण्डे भाग गए लेकिन मरीज़ों पर डाक्टरों द्वारा वसूला जा रहा गुण्डा चार्ज बना रहा…
इस बीच 1999 में योगी आदित्यनाथ ने भी एक हस्पताल खोला जिसका नाम है श्री गुरु गोरखनाथ चिकित्सालय… ये 100 बेड का हस्पताल गोरखपुर आने वाले मरीज़ों के लिए बड़ा मददगार है. ये एक तरह से subsidized हस्पताल है, इसका खर्च गोरखनाथ मंदिर उठाता है. मरीज़ों से न्यूनतम पैसे लिए जाते हैं. यहाँ लगभग हर सुविधा मौजूद है.
यहाँ पर आर्मी से रिटायर काफी डॉक्टर अपनी सेवाएं देते हैं. यहाँ JE वार्ड भी है. यहाँ हर तरह की शल्य क्रिया की सुविधा उपलब्ध है. यहाँ कई रिटायर सरकारी और कुछ ज़मीर बचाए हुए प्राइवेट डॉक्टर भी सेवाएं देते हैं. तीन माह पहले हमारे एक रिश्तेदार का एक्सीडेंट में कालर बोन, कोहनी और कलाई टूट गया, यहाँ से इलाज कराया और सिर्फ 20 हज़ार में छूट गए.
इस सारे उठापठक ने बीच JE हर बार की तरह अंतिम पायदान पर पड़ा रहा… बच्चे और बुजुर्ग मारे जाते रहे… हर वर्ष गोरखपुर JE के नाम पर मेडिकल पर्यटन का केंद्र बनता गया… मायावती, राहुल गाँधी, शिन्दे, मुलायम, अखिलेश, कल्याण, राजनाथ आते रहे और JE पर भाषण देते रहे… और हज़ारों सरकारी बड़े-छोटे बाबू JE के नाम पर TA/DA बनाते रहे… WHO से अरबों रुपये आये… सब से सब खर्च भी हो गए… लेकिन मरीज़ जस के तस.
आखिर मेडिकल माफिया के लिए JE और गोरखपुर सोने का अण्डा देने वाली सुनहरी मुर्गी है… गोरखपुर ने बहुत कुछ देखा है… मेडिकल माफिया के बीच फंसे गोरखपुर के गली मोहल्ले में मरीज़ सिसकता है…
अगली कड़ी गोरखपुर के मेडिकल टूरिज़्म पर…