जब आप अपने बच्चों को 12 साल तक शहर के सबसे नामी, सबसे प्रतिष्ठित और सबसे महंगे स्कूल में पढ़ाते हैं तो क्या आप उस स्कूल से, समाज से, या सरकार से अपने बच्चे के लिए एक सुरक्षित भविष्य की गारंटी मांगते हैं?
फिर जब आप उसे एक बेहद महंगे प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज, या मैनेजमेंट कॉलेज में लाखों रूपए खर्च कर पढ़ने भेजते हैं, तो क्या उस कॉलेज से या समाज से या सरकार से अपने बच्चे के लिए एक सुरक्षित भविष्य और करियर की गारंटी मांगते हैं?
आप कम से कम 16 – 18 साल तक अपने बच्चे को दिन-रात पान के पत्ते की माफ़िक सेते हैं, और अपने गाढ़े पसीने और खून की कमाई खर्च कर देते है, फिर एक दिन आपको पता लगता है कि आपके लौंडे को तो कोई 7000 रुपल्ली की नौकरी भी नहीं दे रहा…
भारत का एजुकेशन सिस्टम अपने विद्यार्थियों को करियर और भविष्य की कोई गारंटी नहीं देता, इसके बावजूद मैंने आज तक एक भी आदमी नहीं देखा जो इसकी विश्वसनीयता पे सवाल उठाये.
आखिर लोग बीटेक और एमटेक कर के भी तो बिल्डिंग मटेरियल, गिट्टी बालू सीमेंट बेच रहे हैं… 5 साल इलाहाबाद में IAS की तैयारी करने वाले भी तो एक दिन पेट पालते, नौकरी व्यवसाय करते नज़र आते ही हैं.
तो फिर लोग खिलाड़ियों के लिए ही क्यों सुरक्षित भविष्य की गारंटी मांगते हैं? आप competitive sports को सिर्फ मैडल और सरकारी नौकरी से ही क्यों तौलते हैं?
जिस किसी व्यक्ति ने दो-चार साल competitive sports की है, उस से बात करके देखिये… शराब, गांजा, भांग, स्मैक, हेरोइन या कोकीन का नशा, सुना है कुछ घंटों में उतर जाता है, इनसे जो किक मिलती है, वो कुछ घंटे की होती है… पर sports का नशा सारी ज़िन्दगी तारी रहता है जनाब… उसका खुमार ता उम्र रहता है…
कैसा भी शौक हो, प्रेमी प्रेमिका हो, कुछ दिन में सबका भूत उतर जाता है… सिर्फ और सिर्फ sports का एक नशा ऐसा होता है जिसकी खुमारी में आदमी सारी ज़िन्दगी जीता है… किसी खिलाड़ी से बात करके देखिये… वो आपको बताएगा कि मैदान में खेलते, हारते-जीतते और victory stand पे बिताए हुए पल, उसकी ज़िन्दगी के सबसे हसीन पल थे…
किसी पूर्व खिलाड़ी से बात कीजिये, वो आपको बताएगा कि उसे आज भी, 20 – 25 बरस बाद भी उन दिनों के सपने आते हैं, जब वो खेलता था… किसी खिलाड़ी को Time Machine में डाल दीजिये, मानो उसे अपना जीवन फिर से जीने का मौक़ा मिले, तो खिलाड़ी अपना नया जीवन भी उसी ground से शुरू करना चाहेगा…
ये है Sports… sports को सिर्फ और सिर्फ मैडल और नौकरी से जोड़ के मत देखिये। ये एक जीवन शैली है… ये वो अलौकिक सुख है जिसे प्राप्त करने का अधिकार हर बच्चे को है.
अपने बच्चे को इस सुख से वंचित मत कीजिये. उसे sports कराइये. प्रोफेशनल न सही, शौकिया ही सही… न ओलिंपिक तो ज़िला स्तर की ही सही.
अपने बच्चे को खेलने का मौक़ा दीजिये. प्रोफेशनल sports के लिए रोज़ाना 4 – 8 घंटे की ट्रेनिंग की ज़रूरत होती है. शौकिया स्पोर्ट्स के लिए सिर्फ एक घंटा भी काफी है. Let your child play and enjoy life.