पंद्रह अगस्त के सरकारी कार्यक्रम के बाद एक मुस्लिम बहुल बस्ती में स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर मिला. मैं वहां पहले भी सामाजिक सरोकारों के सिलसिले में जाता रहा हूँ और प्रयास करता रहा हूँ कि वहां के बच्चों के मन में देशभक्ति के बीज बो सकूँ और उन्हें राष्ट्र के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में खडा कर सकूँ.
स्वतंत्रता दिवस पर मुझे कुछ हद तक अपने उन प्रयासों का सदपरिणाम देखने को मिला जिसने मेरे मन में मेरे प्रयासों की दशा दिशा के सही होने की पुष्टि की और साथ ही मुझे और अधिक लगन के साथ कार्य करने की प्रेरणा दी.
कार्यक्रम में उस लगभग पच्चानवे प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाली बस्ती में झंडारोहण के बाद बच्चों द्वारा ना केवल उच्च स्वर में अमर शहीदों का जयघोष किया गया बल्कि भारतमाता की जय और वन्देमातरम के नारों से भी पूरे क्षेत्र को गुंजायमान कर दिया गया. झंडारोहण के बाद बच्चों ने ना केवल देशभक्ति के गीत सुनाये बल्कि मेरे द्वारा बताई गयी आज़ादी से सम्बंधित बातों को भी पूर्ण मनोयोग से सुना.
भारत पर हुए आक्रमणों की बात करने के क्रम में मेरे द्वारा ये पूछे जाने पर कि महमूद गज़नवी कौन था, एक बच्चे ने पहले कभी मेरे द्वारा उनके बीच सुनाई गयी कहानियों के आधार पर जवाब दिया कि महमूद गज़नवी एक हमलावर था, एक गुंडा था, जिसने भारत पर हमला करके इसे लूटा था और हजारों लोगों का क़त्ल-ए-आम किया था. मुझे नहीं लगा कि उस बच्चे के द्वारा दिए गए इस जवाब पर वहां मौजूद किसी भी व्यक्ति के चेहरे पर कोई शिकन आई हो या उसे बुरा लगा हो.
इस प्रसंग ने इस धारणा को मेरे मन में फिर से पुष्ट कर दिया कि शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा आप पीढ़ी की पीढ़ी बदल सकते हैं और बच्चों को वो बना सकते हैं, जो आप उन्हें बनाना चाहते हैं. ये मुस्लिम बच्चे अगर किसी मदरसे में पढ़ रहे होते तो काफिरों के प्रति नफरत सीख रहे होते, किसी वामपंथी संगठन के तले चलने वाले किसी कार्यक्रम में इस देश के प्रति वैरभाव सीख रहे होते और किसी मिशनरी संगठन में ईसाइयत का पाठ पढने के साथ साथ देश के प्रति विरोध का भाव सीख रहे होते.
परन्तु बचपन से उन्हें राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ाने पर उनके मन में भी देशभक्ति की वही प्रबल भावना जग रही है जो किसी भी नागरिक में अपेक्षित है. हम सभी को चाहिए कि हम अपने आसपास के ऐसे बच्चों को एकत्र कर, छोटे स्तर पर ही सही, उन्हें शिक्षित करने का प्रयास करें और उन्हें पढ़ाते हुए ही बीच बीच में ऐसे प्रसंग उपस्थित करें जो उनके मन में राष्ट्र पर मर मिटने की बलिदानी भावना उत्पन्न करें.
यही देश को सशक्त बनाने के एकमात्र उपाय है क्योंकि एक बहुत बड़ी ऐसी जनसँख्या के रहते, जिसके मन में देश समाज को लेकर कोई सोच ही नहीं है, कोई भावना ही नहीं है, हम भारत को परम वैभव पर ले जाने के स्वप्न भी नहीं देख सकते.