बचपन में दूरदर्शन पर एक शिक्षाप्रद सीरियल आता था, एक कहानी. वो मुझे इसलिए भी पसंद था क्योंकि एक ही एपिसोड में कहानी पूरी हो जाती थी. अब आगे क्या होगा देखने के लिए अगले हफ्ते की प्रतीक्षा नहीं करना पड़ती थी क्योंकि तब डेली सोप जैसा कुछ नहीं होता था, किसी भी कार्यक्रम का प्रसारण हफ्ते में एक बार होता था.
उन दिनों उस कार्यक्रम में एक कहानी देखी थी जिसमें एक गाँव की लड़की ब्याह के दूसरे गाँव जाती है. और फिर वो पति के प्रेम और ससुराल में इतनी मगन हो जाती है कि उसका समर्पण देखते ही बनता था. मुंह अँधेरे उठकर खेती बाड़ी में पति की मदद से लेकर, घर में गाय भैसों की देखभाल, आँगन की गोबर से लिपाई पुताई, खाना बनाना, नदी से पानी भर कर लाना, कपड़े धोना और भी घर गृहस्थी के जो काम उन दिनों गाँव की महिलाओं के होते थे, वो सब करती थी, लेकिन मजाल कि उसके चेहरे पर एक शिकन भी आए, क्योंकि उसके लिए पति और उसके घर के प्रति प्रेम और समर्पण का यही रास्ता था.
उस लड़की का किरदार उस ज़माने की कलाकार कृतिका देसाई ने निभाया था, चूंकि खुद भी गुजराती है और कहानी भी गुजरात के गाँव की थी तो उसने अपनी भूमिका के साथ पूरा पूरा न्याय किया था.
अब आगे कहानी में ये होता है कि उसके मायके के गाँव का कोई उसके ससुराल आता है और उसको दिनरात इस तरह काम में खपते देख दुखी हो जाता है… वो लौटकर उसके मायके वालों से शिकायत कर देता है कि आपकी बेटी तो बड़ी दुखी है उससे जानवरों की तरह काम लिया जाता है.
मायके वालों का प्रेम देखो, उनको भी लगने लगता है कि बेटी के ससुराल तरफ से इसी लिए कोई खबर नहीं आती होगी क्योंकि उन लोगों ने उसे बंधुआ मजदूर बना कर रख लिया है. घरवाले आव देखते है ना ताव, सीधे बेटी के ससुराल पहुँच जाते हैं, और उसे जबरदस्ती घसीटकर मायके ले आते हैं.
बेचारी लड़की को कुछ समझ नहीं आता, मायके वालों को समझा समझाकर परेशान हो जाती है, कि वो ससुराल में बहुत सुखी है, लेकिन मायके वाले समझते हैं कि माता पिता को दुखी नहीं करना चाहती इसलिए झूठ बोल रही है, उधर पति लेने आता है तो उसे भी मारकर भगा दिया जाता है.
इधर लड़की पति ससुराल के वियोग में दुखी रहने लगती है, ना खाना खाती है ना पानी पीती है. लोगों को लगता है दुखी है ससुराल वालों के कारण… लेकिन उसे कोई समझ नहीं पाता, इधर सदमे में एक दिन वो प्राण त्याग देती है…
जैसा कि हर बार कहती हूँ ये ‘एक कहानी’ की एक ही एपिसोड में ख़तम होने वाली कहानी यूं ही नहीं सुनाई. आज हमारी सरकार अपने राष्ट्र को समर्पित है, ना दिन देख रही है ना रात, बस उसका प्रेम और समर्पण देखते ही बनता है, दिन में 18 घंटे काम करनेवाली सरकार, ना हिन्दू देखती है ना मुस्लिम, सेक्यूलर होने का लांछन लेकर सबका साथ सबका विकास चाहने वाली सरकार, उसके पास अपना प्रेम न्यौछावर करने का और कोई तरीका है ही नहीं, बस उसे तो जो आता है वो है देश की सेवा.
आप क्यों इस सरकार के मायके से आए हुए शुभचिंतक बने घूम रहे हो, जो काम करेगा उसे अपनी गलतियों का (यदि कोई गलती की है), विरोधियों के षडयंत्र में फंसने का खामियाज़ा भी खुद ही भुगतना होगा. आप क्यों उसे खींचकर फिर मायके में बैठा देना चाहते हो? आपको यदि लगता भी है कि कुछ गलत हो रहा है तो कम से कम उसे एक मौका तो दो कि उसे अपनी गलती को सुधारने और दोबारा ऐसी गलती ना करने का समय मिले.
जानते हैं पिछले 70 सालों तक क्यों वामपंथियों का बोलबाला रहा हमारे देश में? क्यों हमारी जड़ों को दीमक की तरह खोखला कर गए? तब क्यों नींद नहीं खुली आपकी? तब क्यों ऊँगलियाँ नहीं उठी आपकी? क्योंकि वो जो भी सही गलत कर रहे थे उनको अपने ही लोगों का साथ था. हम चले हैं राजा हरीशचंद्र बनने…
भाई अभी क्या ज्यादा ज़रूरी है? सरकार का टिके रहना या उनकी टांग खिंचाई करना? 2019 के बाद करते रहिएगा उनके काम की आलोचना विवेचना, अभी दो साल और धैर्य रखिये, फिर बन जाइएगा राजा हरीशचंद्र, उठाइएगा जितनी ऊंगली उठाना है “अपनी” ही सरकार पर.
अभी कौटिल्य बनने का समय है, कूटनीति से ही सही, टिके रहना ज़रूरी है. आपकी ये तथाकथित इमानदारी और सरकार के कार्यों की आलोचना उन मतदाताओं को काट रही है जो अभी मोदी सरकार के पक्ष में ना सही लेकिन विरोधियों के पाले में नहीं पहुंचे हैं अभी. उन मतदाताओं को अभी मोदी सरकार की तरफ करना आवश्यक है जिसके लिए हमारे पास सिर्फ और सिर्फ दो साल है.
यदि 2019 में भी यही सरकार आती है तो समझना आपका धैर्य और सहयोग काम आ गया, वर्ना एक बार फिर हाथ मलते रह जाइयेगा और बन जाइएगा वामपंथियों के गुलाम. याद रखिये जब तक हमारी सरकार है तब तक ही आप आलोचना भी कर पा रहे हैं और विकास भी, जब सरकार ही नहीं रहेगी तो किसकी आलोचना करोगे और किसका विकास.
आप सभी राष्ट्रवादियों से हाथ जोड़ विनम्र निवेदन है इस कहानी को एक ही बार में पूरी हो जाने दीजिये… अगले एपिसोड में क्या होगा का रोमांच कहीं कहानी की नायिका को ही न ख़त्म कर दे.