कोचिंग नगरी कोटा (राजस्थान) से एक बड़ी हृदय विदारक घटना सुनने में आई है. मधुबनी (बिहार) से वहां पढ़ने आये एक लड़के ने ट्रेन के आगे कूद के आत्म हत्या कर ली. उसकी माँ उस कोचिंग इंस्टिट्यूट के सामने दहाड़े मार-मार के रो रही थी. उस लड़के के सहपाठी सब दहशत में थे. वहां पढ़ने वाले बाकी लड़कों के माँ बाप भी दहशत में हैं. कहीं उनका बच्चा भी तनाव में कुछ उल्टा पुलटा न कर बैठे.
SSP कोटा ने सभी कोचिंग मालिकों से कहा है कि अपने इंस्टिट्यूट के बच्चों की काउंसलिंग करो… Specially Trained Counseller नियुक्त करो जो बच्चों के तनाव का स्तर भांप के, तनाव और डिप्रेशन के लक्षण पहचान के उन्हें counsel करें…
उस लड़के के सहपाठियों ने जो बताया उस से पता चला कि लड़का मधुबनी बिहार से यहां कोचिंग करने आया था. वहां मधुबनी में अपने स्कूल में और अपने गांव घर मुहल्ले का स्टार था… वो अपने स्कूल का टॉपर था. हमारे स्कूलों में टॉपर्स को विशेष दर्जा दिया जाता है.
सभी छात्रों की रैंकिंग की जाती है. जैसे आलू, टमाटर, सेब और दसहरी आम की ग्रेडिंग होती है न , वैसे ही छात्रों की भी रैंकिंग होती है. लुधियाना के पास एक गांव है आलमगीर… वहां के पम्मा पहलवान 150 एकड़ आलू की खेती करते हैं. उन्होंने एक ग्रेडर लगा रखा है… वो अलग-अलग साइज़ का आलू छांट के अलग करता जाता है… सबसे पहले सबसे छोटा आलू जिसे हमारे यहां छर्री कहते है, और सबसे अंत में सबसे बड़ा वाला आलू… य्य्ये बड़ा-बड़ा…
ऐसे ही हम अपने स्कूलों में भी बच्चों की रैंकिंग करते हैं… ये टॉपर, ये सेकंड आया, और ये थर्ड… इन सबको रिज़ल्ट वाले दिन प्रार्थना के समय मैडल पहना के बाकायदे सम्मानित किया जाता है… और बाकी? क्लास के 30 बच्चों में से 3 टॉपर निकाल के हम बाकी 27 को क्या संदेश देते हैं?
उनका क्या जो 1st , 2nd या 3rd नहीं आये??? टॉपर्स का सम्मान करके हम इन non rankers को हतोत्साहित तो नहीं कर रहे??? और ये टॉपर्स, ये क्या संदेश ले के जा रहे हैं स्कूल से?
मधुबनी का वो लड़का जो अपने कस्बे का स्टार था, कोटा की भीड़ में गुम हो गया. यहां आ के उसे पता चला कि उसके जैसे तो यहां डेढ़ लाख टहल रहे हैं… उसकी क्लास में जो 70 – 80 लड़के बैठे हैं, वो सब कहीं न कहीं के टॉपर ही हैं.
उनमें से आधे से ज़्यादा ऐसे हैं जो इस सिलेबस को 3 साल पहले ही पढ़ चुके हैं. जी हां… आजकल स्कूल, कक्षा 9 और 10 में ही 11वीं और 12वीं का सिलेबस पढ़ा देते हैं और फिर दो साल तक करो तैयारी JEE की….
कोटा की भीड़ में मधुबनी का टॉपर गुम हो गया. Support System कोई था नहीं… कोटा डरे सहमे लड़कों का शहर है… वो जहां आ के 95% लड़के फेल हो जाते हैं. जी हां, कोटा का Success Rate 5% ही है… डरे सहमे बच्चों का शहर… depressed बच्चों का शहर… अपने बाप की आकांक्षाओं के बोझ तले दबे बच्चों का शहर…
कहा जाता है कि महाभारत के बाद हस्तिनापुर अनाथ बच्चों और विधवाओं का शहर बन गया था… क्योंकि पिताओं और पतियों को युद्ध ने लील लिया था… उसी तरह कोटा आज डरे, सहमे, depressed लड़कों का शहर बन गया है…
मधुबनी वाले टॉपर को कोटा आ के अहसास हुआ कि असल मे वो टॉपर नहीं… वो तो इस भीड़ का हिस्सा भर है… वो मैडल, वो तालियां, वो वाह-वाह… वो सब झूठ था… अब पापा को क्या मुह दिखाऊंगा? इतना खर्चा कर रहे हैं वो मेरे ऊपर…
कोटा के सबसे महंगे इंस्टिट्यूट में पढ़ा रहे हैं… मुहल्ले में क्या मुह दिखाऊंगा… लड़के ने इसी तनाव में ट्रेन के आगे कूद के जान दे दी…
आपका बच्चा भी topper है क्या? हमेशा अपनी क्लास में First आने वाला? आप भी अपने बच्चे को ऐसे ही किसी कोटा में तो नही भेज रहे?
अपने बच्चे को सिखाइये कि स्कूल/ क्लास का टॉपर होना एक छलावा भर है. और ये इंजीनियरिंग 1000 अन्य व्यवसायों में से एक विकल्प भर है. इंजीनियरिंग से आगे जहाँ और भी हैं…
अगर इसमें एडमीशन न हुआ तो दुनिया खत्म नहीं हो जाएगी. अपने बच्चे के स्कूल में बोलिये कि वो बच्चों की Ranking करना और ये Topper निकालना बंद करें.
आलू की फसल में जो सबसे बड़ा होता है उसे काट के उबलते हुए तेल में तला जाता है. जो सबसे छोटा होता है वो बीज बन जाता है, उसे जमीन में गाड़ दो तो नई फसल, नई संतति का सृजन होता है.