बीमारी से असमय मौत दुखदायी होती है और इसके बारे में जानकर किसी अनजान की आँखो में भी आँसू आना स्वभाविक है. लेकिन जब बात ऎसी अनेक मौतों की ज़िम्मेवारी निर्धारित करने की हो तो सिर्फ़ भावनाओं से काम नहीं चल सकता, तथ्यों पर बात होनी चाहिये.
सामान्यतः ऎसी मौतों के लिये अस्पताल और डॉक्टर ज़िम्मेवार होते हैं, कहीं-कहीं परिवार भी ज़िम्मेवार होता है. सरकार तभी ज़िम्मेवार ठहराई जा सकती है जब उसकी नीतियों में दोष हो, वो अस्पतालों की स्थापना उसके संचालन के लिये बजट की व्यवस्था और लोगों में जागरूकता फैलाने के मामले में सक्रिय ना हो.
सरकार नैतिक रूप से तभी ज़िम्मेवार ठहरायी जा सकती है जब उसकी प्राथमिकता में सैफई महोत्सव हो या जीते जी अपनी मूर्तियों की स्थापना हो. सरकार प्रशासनिक स्तर पर तब ज़िम्मेवार मानी जायेगी जब वो दोषियों पर उचित कार्यवाही ना करे. क्या इनमें से किसी भी पैमाने पर योगी दोषी ठहराये जा सकते हैं?
नही, बिलकुल नही. बल्कि योगी जापानी बुखार के लिये अन्य सभी राजनेताओं से कहीं अधिक ज़मीन पर काम करते रहे हैं. फिर भी उन्हें पूरी तरह गोरखपुर दुर्घटना के लिये उत्तरदायी ठहरा देना कहां तक उचित हो सकता है. बस इतनी सी बात कहने में कहां की अमानवीयता हो गयी और सच को कहना मोदी भक्ति कैसे हो जाती है.
सच तो यह है कि मोदी विरोध एक लाइलाज बीमारी है एक तरह का मानसिक रोग, जिसमें रोगी को सपने में भी मोदी और अब योगी तंग करते हैं. और जहाँ तक रही मीडिया की बात तो वो एक बार फिर अपने मक़सद में कामयाब रहा.
यह जानते हुये भी कि अस्पताल में मौत के लिये डॉक्टर और अस्पताल प्रशासन ज़िम्मेवार होता है, मीडिया ने बड़ी चालाकी से एक खलनायक डॉक्टर को नायक बना दिया. लेकिन घोर आश्चर्य तब हुआ जब इस हत्यारे डॉक्टर को बर्खास्त किये जाने पर, वो लोग जो अब तक बच्चों की मौत पर आँसू बहा रहे थे उन्होंने तुरंत अपने आँसू पोंछे और हत्यारे डाक्टर के लिये नये-नये आँसू टपकाने लगे.
इन लोगों ने, जो अब मानवता का राग अलाप रहे हैं, से एक सवाल कि दोषी डॉक्टर पर कार्यवाही करना अमानवीयता कैसे हो सकती है? क्या वे चाहते हैं कि ऐसे डॉक्टर के लोभ पर मासूम बच्चों का जीवन दाँव पर लगाया जाये?