सामान्यतः मैं दुनिया के हर विषय पर लिखता हूँ… बस, डॉक्टरी पर नहीं लिखता. सच कहूं… डरपोक कह लीजिए… अपने मित्रों सहपाठियों को नाराज़ नहीं करना चाहता… लेकिन आज मुँह खोल कर कहूँगा… लोगों को नाराज़ करने के रिस्क पर कहूँगा… भारत में डॉक्टरी का जो स्तर है, वह शर्मनाक है…
मैं अपने कॉलेज का बैक बेंचर था… मुश्किल से पास होने वाला. तो जो डॉक्टरी सीखी, पास करने के बाद सीखी. मेरे बैच के टॉपर टाइप तोपों ने कुछ खास सीखा होगा तो वह मेरे से छूट गया. भारत से मुझे एम डी, डी एम टाइप बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ करने का अवसर भी नहीं मिला… तो बड़े वाले तोप डॉक्टर साहब लोगों ने क्या और कितना सीखा, हो सकता है मैं मिस कर गया होऊं, पर जो दिन प्रतिदिन की डॉक्टरी सामान्यतः होती है उसकी बात करूंगा.
2005 में इंग्लैंड आया था, 8-9 महीने काम करके लौटा था… तो तब मैंने पहली बार arterial blood gas (ABG) की मशीन देखी थी. लौट कर जमशेदपुर गया तो यह मशीन हमारे ICU में लगी हुई मिली, पर इतनी महंगी मशीन है, बोलकर कोई डॉक्टर इसे छूता नहीं था…सिर्फ एक ICU सिस्टर उसे यूज करती थी.
तो सिस्टर से सीख कर मैंने इसे इस्तेमाल करना शुरू किया. तब एक ABG का चार्ज लगता था 600 रुपये… तब पल्स ऑक्सिमेट्री ICU के अलावा कहीं नहीं था. ऑक्सीजन देने का तरीका भी विचित्र था. रबर कैथेटर जो एक नाक में घुसा रहता था… जिससे किसी को भी ऑक्सीजन मिलने का कोई भरोसा नहीं होता. अगर आप ऑक्सिमेट्री इस्तेमाल ही नहीं कर रहे तो जानेंगे कैसे कि मरीज को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल रहा है. हाई फ्लो ऑक्सीजन विथ रिज़र्वायर बैग का तो सवाल ही नहीं था… इतनी ऑक्सीजन बर्बाद कर रहे हो…
भारत में तब तक Advanced life support जैसी ट्रेनिंग का नाम भी नहीं सुना था. कंसलटेंट लेवल के लोगों को भी सीपीआर देते देख कर तरस आता था… पसलियाँ कड़कड़ा जाती थीं, क्योंकि चेस्ट कम्प्रेशन गलत दिया जाता था. मरीज यूँ बच जाए तो बच जाए… सीपीआर के बाद तो नहीं बचेगा… उस पर घमंड का कोई अंत नहीं.
सारे डॉक्टर साहब लोग तोप हैं, आप कोई सवाल नहीं पूछ सकते… कोई सीधे मुँह मरीज से बात नहीं करता… मरीज भी लोकल नेता जी को लेकर आता है, वरना डॉक्टर बात ही नहीं करेगा… एनेस्थेटिस्ट को छोड़ कर किसी की बेसिक एयरवे ट्रेनिंग नहीं है….
लेकिन ऐसा नहीं है कि हमारे यहां डॉक्टर पढ़े-लिखे और मेहनती या इंटेलीजेंट नहीं हैं. और ऐसा नहीं है कि हमारे यहाँ स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार नहीं हुआ है. ये बड़े-बड़े कॉरपोरेट हॉस्पिटल खुले हैं… बड़ी से बड़ी सर्जरी होती है, भारी भरकम टेस्ट होते हैं… सीटी स्कैन, एम आर आई, PET स्कैन सब होते हैं…
तो इन सारे संस्थानों की प्रेरणा क्या है? जहाँ पैसा है, वहाँ सब सुविधा है… 2 लाख की एंजियोग्राफी और वाल्व रिप्लेसमेंट हो जाएगा, लेकिन एक एक्सीडेंट के लिए 100 रुपये का नेक कॉलर नहीं मिलेगा… इमरजेंसी सेवाओं में कुछ नहीं मिलेगा… क्योंकि वहाँ मरीज से कस्टमर का संबंध बैठाना मुश्किल है…
और डॉक्टरों की आपसी बातचीत बस यही होती है… इसकी प्रैक्टिस इतने लाख की है, उसकी उतने लाख की… इस कांफ्रेंस में इतनी दारू पीयी, उस रिसोर्ट में रुके…
उसके बीच आप अगर कुछ कहो, तो यह ताने सुनकर आओ कि ‘बड़ा अपने को इंग्लैंड वाला समझता है… यह इंग्लैंड नहीं है’… तो सेफ है कि मिलो-जुलो तो दारू-लड़की-क्रिकेट की बात करो और अच्छे दोस्त बने रहो…
मोदी-योगी ने डॉक्टरी नहीं पढ़ी… उनके बस का नहीं है इस छत्ते में हाथ डालना… जिन्होंने पढ़ी है वे अपने लाख-करोड़, प्रैक्टिस, नर्सिंग होम में व्यस्त हैं, या इंग्लैंड-अमेरिका में मस्त हैं… तो यह गोरखपुर भी कोई अकेला नहीं है, और यह मानसून भी कोई आखिरी नहीं है…